जब अटल जी ने सुनाई थी 'मौत से ठन गई' कविता, जोश से भर उठे थे कुशीनगर के युवा
जब अटल जी ने सुनाई थी 'मौत से ठन गई' कविता, जोश से भर उठे थे कुशीनगर के युवा

जब अटल जी ने सुनाई थी 'मौत से ठन गई' कविता, जोश से भर उठे थे कुशीनगर के युवा

पावानगर महावीर डिग्री कॉलेज के दीक्षांत समारोह में आए थे पूर्व प्रधानमंत्री जन्मदिवस विशेष कुशीनगर, 22 दिसम्बर (हि.स.)। भारतीय राजनीति के पुरोधा, कवि, प्रखर वक्ता पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेई का सानिध्य और उनको नजदीक से सुनने का अवसर कुशीनगर के युवाओं को भी मिला था। अटल जी 15 फ़रवरी 1997 को यहां के पावानगर महाबीर डिग्री कॉलेज फाजिलनगर के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करने आए थे। यूं तो अटल जी ने दीक्षांत समारोह में मौजूद युवाओं और छात्रों को राजनीति सहित जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिये कई गुर बताए। कई रोचक व प्रेरक प्रसंग सुनाकर ईमानदारी, निष्ठा और धैर्य को सफलता की सबसे बड़ी कुंजी बताया था। युवाओं को राष्ट्र निर्माण में लगने को प्रेरित किया। पर अटल जी कविता मौत से ठन गई ने युवाओं को सबसे ज्यादा इंस्पायर किया। पूरे रौ और अपने अलहदा अंदाज में अटल जी ने पूरी कविता पढ़ी थी। "ठन गई मौत से ठन गई जूझने का मेरा इरादा न था मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था मौत की उमर क्या है,दो पल भी नही जिंदगी सिलसिला आज कल की नही" अटल जी ने युवाओं को प्रेरित करने के लिये एक और प्रसंग भी सुनाया था। "एक सिस्टर कड़ी ठण्ड में स्कूल जा रही थी। पर उसके पास पैर में पहनने के लिये मोज़े नही थे। इस चिंता में वह व्याकुल थी कि तभी उसने देखा सामने से एक लड़की तेजी से स्कूल की तरह बढ़ रही है, लेकिन उसके दोनों पांव नही हैं। तब सिस्टर की आँख खुली और उसे लगा कि बिना पांव के लड़की संघर्ष कर रही तो वह बिना मोज़े के क्यों नही चल सकती।" दीक्षांत समारोह के आयोजक कॉलेज के प्रबन्धक, पूर्व सांसद व अटल जी के प्रेस सचिव रहे राजेश उर्फ गुड्डू पांडेय बताते हैं कि अटल जी मंच से जब यह कविता पढ़ रहे थे तो "पांडाल में दस हजार की भीड़ थी, पिन ड्राप साइलेंस, मानो जैसे समय ठहर सा गया हो" वकौल सांसद अटल जी का दीक्षांत समारोह में पूरा भाषण ही युवाओं पर फोकस था। वह चाहते थे युवा अभाव और संसाधन की चिंता किये बिना राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगे। हिन्दुस्थान समाचार/गोपाल/दीपक-hindusthansamachar.in

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