गोपाष्टमी : गौ प्रेमियों ने की गौमाता की पूजा-अर्चना, खिलाया पोषाहार
गोपाष्टमी : गौ प्रेमियों ने की गौमाता की पूजा-अर्चना, खिलाया पोषाहार

गोपाष्टमी : गौ प्रेमियों ने की गौमाता की पूजा-अर्चना, खिलाया पोषाहार

सुलतानपुर, 22 नवम्बर ( हि. स.)। गोपाष्टमी के मौके पर लोगो ने गौमाता की पूजा अर्चना एवं सेवा करके आशीर्वाद प्राप्त किया। गोपाष्टमी से जुड़ी तमाम किदवंतिया है। जिला मुख्यालय से मात्र 10 किमी की दूरी पर सगरा आश्रम बंधुआ कला में बृजरानी देवी गौशाला है। गौशाला के जिलाध्यक्ष अंकित अग्रहरि ने बताया कि समाज के गौसेवा प्रेमियों के सहयोग से यहाँ पर गायों की देखभाल होती है। रविवार को सभी गायों को नहलाकर पांच गायों को वस्त्र पहनाया गया, घंटी घुघरू पहनाकर उन्हें सजाया गया। लोगो ने पूजा की। नगर एवं गांव से लोग पहुँच कर गौमाता की पूजा किया। गोपाष्टमी का इतिहास कहा जाता है कि गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है। गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था। गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है। उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा। तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया । उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं झेल पायेंगे परंतु जब लगातार सात दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब आठवें दिन इन्द्र की आँखें खुली और उनका अहंकार दूर हुआ। तब वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा मांगकर उनकी स्तुति की। कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ‘गोविंद’ पड़ा। वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था। उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है। ऐसी मान्यता है कि गोपाष्टमी पर गायों को स्नान कराएं। तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें। गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, सात परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं। इससे मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गौशालाओं में यह बड़े महत्त्व का उत्सव है। इस दिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है। गौ कीर्तन-यात्राएँ निकाली जाती हैं। यह घर-घर व गाँव-गाँव में मनाया जानेवाला उत्सव है। इस दिन गाँव-गाँव में भंडारे किये जाते हैं। आर्थिक प्रगति के लिए वरदान है गोपालन देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए वरदान हैं। दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है। घी ओज-तेज प्रदान करता है। इसी प्रकार गोमूत्र कफ व वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है। गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है। जिस घर में गोबर का लेपन होता है वहाँ हानिकारक जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकते। पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा सकता है। ये हमारे पाप-ताप भी दूर करते हैं। गाय से बहुमूल्य गोरोचन की प्राप्ति होती है। देशी गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापो का नाश होता है। गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं। ‘स्कंद पुराण’ में गौ-माता में सर्व तीर्थों और सभी देवताओं का निवास बताया गया है। हिन्दुस्थान समाचार/दयाशंकर/दीपक-hindusthansamachar.in

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