कोरोना काल में लहसुन का बढ़ गया महत्व, खेती का है उपयुक्त समय

कोरोना काल में लहसुन का बढ़ गया महत्व, खेती का है उपयुक्त समय
कोरोना काल में लहसुन का बढ़ गया महत्व, खेती का है उपयुक्त समय

-केला, मिर्च के साथ सहफसली के रूप में उगाकर कर सकते हैं अधिक कमाई लखनऊ, 30 अक्टूबर (हि.स.)। कोरोना काल में लहसुन का महत्व ज्यादा बढ़ गया है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही कई रोगों में फायदेमंद लहसुन की खेती का यह उपयुक्त समय है। किसानों को इसी समय लहसुन को खेत में लगा देना चाहिए। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फास्फोरस का प्रचूर स्रोत के साथ ही लहसुन की खेती करने वाले किसानों के लिए यह सबसे फायदेमंद खेती है। सबसे बड़ी बात है कि इसका भाव बाजार में कम होने की स्थिति में किसान इसको सालों रखकर अच्छे बाजार भाव का इंतजार भी कर सकते हैं। इसको केला व मिर्च में सहफसली के रूप में भी उगाकर किसान आमदनी को बढ़ा सकते हैं। इस संबंध में उप निदेशक उद्यान अनीस श्रीवास्तव ने बताया कि लहसुन के खेत में ढेला नहीं रहना चाहिए। खेत की अच्छी जुताई करने के बाद खरपतवार को निकाल देना चाहिए। इसके बाद खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद डालकर खेत को तैयार करना चाहिए। इसके बाद समतल क्यारियां बनाकर उसमें इसको लगाना चाहिए। उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि इसको केले के खेत में या मिर्च के खेत में भी बुआई कर किसान अच्छी पैदावार निकाल सकते हैं। इसकी खेती से किसानों को काफी फायदा होगा। उन्होंने बताया कि लहसुन की खेती को बढ़ावा देने के लिए उद्यान विभाग भी किसानों को बीज उपलब्ध कराता है। इसके लिए किसानों को उद्यान विभाग में रजिस्टेशन कराकर आवेदन करना चाहिए। उन्होंने बताया कि लहसुन की किस्मों में गोदावरी, श्वेता, भीमा ओमेरी आदि प्रमुख हैं। गोदावरी माहू के लिए सहनशील है। रोपाई से पूर्व कलियों को कार्बेन्डाजिम .1 प्रतिशत की घोल से उपचारित करना चाहिए, जिससे कवकजनित रोगों के प्रभाव को कम किया जा सके। लहसुन के लिए बीज दर 400:500 किग्रा प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है। चयनित कलियां 10 सेमी की दुरी पर लगाई जाती हैं। इसका अंकुरण सात से आठ दिनों में होती है। इसमें खरपतवार की रासायनिक प्रबंधन के लिए पेंडिमेथेलिन 30 इ.सी. या आक्सीफलोरोफेन के साथ बुआई से पहले या बुआई के बाद प्रयोग किया जाता है। अनीस श्रीवास्तव ने बताया कि इसमें आर्द्र गलन रोग स्केलेरोषियम राल्फसी नामक कवक से होता है, जो कि पौधशाला में बीज अंकुरण के बाद पौधों की बढवार के समय प्रभावित करता है। इसके लिए बुवाई से पूर्व बीज का केप्टान से उपचारित करना चाहिए। वहीं बैंगनी धब्बा रोग अल्टरनेरिया पोरी नामक कवक से होता है। यह रोग पौधों की किसी भी अवस्था में आ सकता है। इसके लिए बुवाई से पूर्व बीजों को 2-3 ग्राम डाइथायोकार्बामेट प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। वहीं श्याम वर्ण रोग के लिए कार्बान्डाजिम दो अनुपात में डुबाना चाहिए। अनीस श्रीवास्तव ने बताया कि थ्रिप्स लहसुन का प्रमुख नुकसानदायक कीट है। यह कीट आकार में बहुत छोटे होते हैं अभ्रक तथा प्रौढ कीट नई पतियों का रस चूसते हैं। कीड़ों के रस चुसने से पत्तियों पर असंख्य सफेद रंग के निशान दिखते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/संजय-hindusthansamachar.in

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