किरायेदार, किराएदारी स्वीकार करने के बाद मुकर नहीं सकता : हाईकोर्ट
किरायेदार, किराएदारी स्वीकार करने के बाद मुकर नहीं सकता : हाईकोर्ट

किरायेदार, किराएदारी स्वीकार करने के बाद मुकर नहीं सकता : हाईकोर्ट

प्रयागराज, 22 अगस्त (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किरायेदारी कानून पर एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किरायेदार, किरायेदारी की स्थिति को स्वीकार करने के बाद उससे मुकर नहीं सकता। वह बाद में उच्च अदालत में यह नहीं कह सकता कि वास्तविक किरायेदार कोई और है, इसलिए किरायेदारी छोड़ने का आदेश उस पर लागू नहीं होगा। नौगहरा कानपुर नगर के प्रकाश चंद्रा की याचिका खारिज करते हुए यह निर्णय न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने दिया। याचिका में प्राधिकृत अधिकारी किरायेदारी कानून और अपर जिला जज कानपुर नगर के आदेशों को चुनौती दी गई थी। दोनों आदेशों में याची को किराये की दुकान 60 दिन में खाली करने का आदेश दिया गया था। याची की दलील थी कि दुकान 1960 में किराये पर उसके दादा ने ली थी। इसके बाद उसके पिता को विरासत के रूप में प्राप्त हुई। उसके पिता अभी भी जीवित हैं, इसलिए याची के विरुद्ध दुकान खाली करने का आदेश नहीं पारित किया जा सकता। याची का कहना था हालांकि यह बिंदु उसने प्राधिकृत अधिकारी और अपीलीय कोर्ट के समक्ष नहीं उठाया था। मगर इसे वह किसी भी समय और किसी भी न्यायालय के समक्ष उठा सकता है। कोर्ट ने याची को इस दलील को स्वीकार नहीं किया। कोर्ट का कहना था कि याची किरायेदार के रूप में दो अदालत में मुकदमा लड़ चुका है और अब इस स्थिति में आकर वह यह नहीं कह सकता कि वह किरायेदार नहीं है। कोर्ट ने याची की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि अधीनस्थ न्यायालयों ने किरायेदार और मकान मालिक की तुलनात्मक समस्या का आंकलन करने में गलती की है। कोर्ट ने कहा कि यह साबित है कि याची ने दुकान के लिए वैकल्पिक स्थान खोजने का कोई प्रयास नहीं किया। मकान मालिक रीतेश भार्गव द्वारा अपने व्यवसाय के विस्तार हेतु दुकान की आवश्यकता बताई गई है, जो सही प्रतीत होती है। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याची को दुकान खाली करने का नवंबर माह तक का समय दिया है। हिन्दुस्थान समाचार/आर.एन/विद्या कान्त-hindusthansamachar.in

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