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कृषि योजनाओं से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे गांव : डा. अतर सिंह

— 39 कृषि विज्ञान केन्द्रों ने पेश किया प्रगति रिपोर्ट कानपुर, 16 जून (हि.स.)। कानपुर जोन के सभी कृषि विज्ञान केन्द्र और कृषि विश्वविद्यालय लगातार नये—नये शोध कार्य किसानों के लिए कर रहे हैं। यही नहीं किसानों की समस्याओं का भी समय—समय पर निदान हो रहा है। इसके साथ ही कृषि योजनाओं से गांव के युवा किसान आत्मनिर्भर हो रहे हैं। ऐसे में योजनाओं के जरिये आत्मनिर्भरता की ओर गांव बढ़ रहे हैं। यह बातें मंगलवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अटारी जोन 3 कानपुर के निदेशक डा. अतर सिंह ने कही। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अटारी जोन 3 कानपुर तीन दिवसीय आनलाइन 28वीं कार्यशाला का आयोजन कर रहा है। कार्यशाला में जोन के सभी कृषि विश्ववविद्यालय और 88 कृषि विज्ञान केन्द्र भाग ले रहे हैं। दूसरे दिन मंगलवार को आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय अयोध्या के 30 कृषि विज्ञान केन्द्र एवं बांदा कृषि एवं प्रौ. विवि. के नौ कृषि विज्ञान केन्द्रों ने प्रतिभाग किया। सभी केन्द्रों ने चलाये जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रमों, समस्या समाधान के लिए क्षेत्र परीक्षणों व उनके परिणामों, दलहन-तिलहन के लगाये गये प्रदर्शनों व उनके परिणामों आदि की प्रगति रिपोर्ट एवं कार्ययोजना का प्रस्तुतीकरण किया। निदेशक डॉक्टर अतर सिंह ने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्रों ने बदलते हुए मौसम में जल संरक्षण, फसलों की किसानों की समस्या के आधाार पर प्रदर्शन व उसके परिणामों, पशुपालन व मत्स्यपालन में लाभकारी परिणामों के बारे में जानकारी दी। जिसका एक्सपर्ट पैनल ने मूल्यांकन किया। कार्यशाला में उपस्थित एक्सपर्ट पैनल के विशेषज्ञों ने कृषि विज्ञान केन्द्रों के कार्यों की, उनके द्वारा आयोजित प्रदर्शनों, प्रयोग की जा रही तकनीकों, विभिन्न परियोजनाओं के अन्तर्गत हुए कार्यों आदि की समीक्षा की एवं उन्हें सुझाव भी दिये। इस दौरान डा. एस.एस. सिंह, डा. रणधीर सिंह, सीएसए के निदेशक प्रसार एवं समन्वयक डॉक्टर ए के सिंह, डा. नरेन्द्र सिंह एवं सभी निदेशक प्रसार एवं केवीके अध्यक्ष उपस्थित रहें। यह संचालित हो रही योजनाएं निदेशक डा. अतर सिंह ने बताया कि किसानों को केवीके के माध्यम से दलहन बीज हब परियोजना के अन्तर्गत बीज उपलब्ध कराये जा रहे हैं। किसानों को पौध सामग्री भी उपलब्ध कराई जा रही हैं। डॉ सिंह ने कहा की प्रवासी श्रमिकों को विभिन्न रोजगारों के लिये प्रशिक्षित किया गया है एवं उनके द्वारा कितने लोग इसे शुरु कर रहे हैं इसकी जानकारी दी गई। आर्या परियोजना के माध्यम से ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित कर गांव में ही रहकर कृषि व्यवसाय को अपनाने के लिये आकर्षित किया जा रहा है। वायु प्रदूषण रोकने के लिये फसल अवशेष प्रबन्धन परियोजना चल रही है जिसमें फसल अवशेषों को जलाये बिना उनका प्रबन्धन करने के लिये किसानों को उपकरण व तकनीक उपलब्ध कराई जा रही है। मौसम से संबंधित समस्याओं के लिये निकरा परियोजना परियोजना चल रही है एवं मौसम सलाह उपलब्ध कराने के लिये डामू परियोजना चल रही है। इनके अलावा भी अन्य परियोजनायें जैसे फार्मर फर्स्ट, नेमा, किसानों की आय दोगुनी करना आदि केवीके के माध्यम से चल रहीं हैं। हिन्दुस्थान समाचार/अजय

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