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उप्र : पर्यावरण की मिसाल बने ट्री-मैन', हर रोज करते हैं 'पौधरोपण'

- शिक्षक अशोक गुप्ता 'सवा करोड़' वृक्ष लगाने का लिया है संकल्प - रविवार या छुट्टियों में अपने दोनों बेटों के साथ वृक्षों को देते हैं पानी प्रभुनाथ शुक्ल भदोही, 02 अप्रैल (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में एक शिक्षक पर्यावरण संरक्षण के लिए मिसाल बने हैं। उन्हें लोग 'ट्री-मैन' के नाम से बुलाते हैं। जूनियर हाईस्कूल में शिक्षक अशोक गुप्ता हर रोज पौधरोपण करते हैं। उन्होंने 'सवा करोड़' वृक्ष लगाने का संकल्प लिया है। पर्यावरण उपलब्धियों को देखते हुए 'लायंस क्लब' ने उन्हें 'वृक्ष पुरुष' की उपाधि से नवाजा है। शिक्षा में उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें राष्ट्रपति से 'शिक्षक पुरस्कार' भी मिल चुका है। अशोक गुप्ता के सामाने देश, काल और परिस्थितियां चाहे जो भी हों, वह पर्यावरण का दायित्व कभी नहीं भूलते हैं। देश में हो या विदेश में इसकी परवाह किए बगैर वह पौधरोपण जरुर करते हैं। उत्तर प्रदेश के अलावा वह दिल्ली, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडू, महाराष्ट्र समेत देश के दूसरे राज्यों में भी पौधरोपण कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने सिंगापुर और मलेशिया में भी वृक्ष लगाएं हैं। अक्तूबर 2017 से इस मुहिम में लगे हैं। अब तक उन्होंने 1270 दिन में 7000 से अधिक वृक्षों का रोपण किया है। वह शिक्षक के साथ अंतर-राष्ट्रीय एथलीट भी हैं। उन्होंने एशियाई और दूसरे खेलों में कई पदक भी जीते हैं। शिक्षक अशोक कुमार ने बताया कि एक बार वह खेल के सिलसिले में सिंगापुर गए थे। वहां हवाई अड्डे पर उतरने के बाद पौध लगाने लगे जिस पर वहां की एयरपोर्ट एथारिटी ने विरोध किया। लेकिन जब उन्होंने अपना संकल्प बताया तो एथारिटी के लोग बेहद खुश हुए और उनका सहयोग किया। लोग उन्हें 'इंडियन ट्री-मैन' के नाम से पुकारा। उन्होंने बाताया कि वे जहां-जहां पेड़ लगाते हैं वहां रविवार या छुट्टियों में अपने दोनों बेटों दुर्गाप्रसाद और आशुतोष के साथ जाते हैं। उन्हें पानी देते हैं और लोगों से पेड़ों की देखभाल करने की गुहार लगाते हैं। अभी तक उन्होंने जितने पेड़ लगाए हैं उनमें 80 फीसदी वृक्ष हरे-भरे हैं। इस कार्य से उन्हें बेहद शकून मिलता है। किसी व्यक्ति की तरफ से अगर उन्हें पेड़ों का सहयोग मिल गया तो ठीक है नहीं वह अपने पैसे से खरीदकर फलदार और छायादार वृक्षों को लगाते हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर उनके अंदर इतनी अधिक प्रेरणा है कि वह अपनी परिवारिक पीड़ा को भी भूल जाते हैं। कुछ साल पूर्व उनकी मां का निधन हो गया। वह गंगा घाट पर मां की चिता में मुखाग्नि देने के बाद जब संस्कार से निवृत्त हो गए तो खुद गंगा घाट पर पेड़ लगाया। उनके इस लगन को देख अंतिम संस्कार में गए लोगों की आंखें नम हो गई और सभी लोग उनके पर्यावरण के मुरीद हो गए। वहां मौजूद लोगों ने कहा, आप इंसान नहीं देवदूत हैं। आप अपनी पीड़ा भूलकर प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण में तल्लीनता से लगे हैं। पर्यावरण संरक्षण के उनके कार्य को देखते हुए स्थानीय स्तर पर कई सम्मान और पुरस्कार भी मिले हैं। भारत सरकार के जलशक्ति मिशन की तरफ से उन्हें 'भदोही का ब्रांड अंबेसडर' भी घोषित किया है। लेकिन जिला प्रशासन की तरफ से अभी तक उन्हें खिताब नहीं मिल पाया है। उनका पूरा समय शिक्षण और पर्यावरण संरक्षण में बीतता है। अपने घर में उन्होंने खुद एक छोटी नर्सरी सजा रखी है। सड़क पर बेकार पड़े 'पालीथिन' का उपयोग वह नर्सरी के लिए करते हैं। समाज में उनकी उपलब्धियों को पहुंचाना चाहिए। इस तरह के प्रशंसनीय कार्य करने वाले पर्यावरण हितैषी को पद्मश्री भले न मिले लेकिन 'पर्यावरण रत्न' तो मिलना चाहिए। हिन्दुस्थान समाचार/

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