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अम्बेडकर विवि की फर्जी बीएड डिग्री लिए हजारों टीचरों को झटका, हाईकोर्ट ने उनकी बर्खास्तगी पर हस्तक्षेप से इंकार

-अंक पत्र में छेड़छाड़ के आरोपी टीचरों की कुलपति की निगरानी में चार माह में जांच पूरी करने का निर्देश -जांच में बरी होने पर बर्खास्तगी होगी वापस, नियुक्त टीचरों से वेतन की वसूली पर रोक प्रयागराज, 26 फरवरी (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सन् 2005 में बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा से बीएड की फर्जी डिग्री के आधार पर प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त हजारों सहायक अध्यापकों की नियुक्ति रद्दकर बर्खास्त करने के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। अंकपत्र मे छेड़छाड के आरोपियो की जांच चार महीने मे पूरी करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने कहा कि यह जांच कुलपति के निगरानी में की जाय। न्यायालय ने एकलपीठ द्वारा विश्वविद्यालय को दिए गए जांच के आदेश को सही माना है और कहा है कि जांच होने तक चार माह तक ऐसे अध्यापकों की बर्खास्तगी स्थगित रहेगी। वह वेतन सहित कार्य करते रहेंगे। इनकी बर्खास्तगी का आदेश जांच के परिणाम पर निर्भर करेगा। न्यायालय ने जांच की निगरानी कुलपति को सौंपते हुए कहा है कि जांच में देरी हुई तो सम्बंधित को वेतन पाने का हक नहीं होगा। जांच की अवधि नहीं बढ़ेगी। न्यायालय ने कहा है कि जांच के बाद डिग्री सही होने पर बर्खास्तगी वापस ली जाय। न्यायालय ने सात अभ्यर्थियों जिन्होंने कोर्ट में दस्तावेज पेश किए, उनको एक माह मे प्रवेश व परीक्षा में बैठने का सत्यापन करने का भी निर्देश दिया है और कहा है कि यदि सही हो तो इनकी बर्खास्तगी रद्द की जाय। यह आदेश न्यायमूर्ति एम एन भंडारी तथा न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने किरण लता सिंह सहित हजारों सहायक अध्यापकों की विशेष अपील को निस्तारित करते हुए दिया है। अपील पर अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय व स्थायी अधिवक्ता राजीव सिंह ने प्रदेश सरकार की तरफ से प्रतिवाद किया। अशोक खरे, आरके ओझा व एच एन सिंह ने अपीलार्थियों का पक्ष रखा, जबकि विश्वविद्यालय की तरफ से अशोक मेहता व बोर्ड की तरफ से जे.एन. मौर्य ने बहस की । न्यायमूर्ति शमशेरी ने वरिष्ठ न्यायमूर्ति भंडारी के फैसले से सहमति जताते हुए अलग से हिन्दी भाषा में फैसला दिया। जिसमें उन्होंने गुरू के महत्व को बताते हुए कहा कि शिक्षा एक पवित्र व्यवसाय है। यह जीविका का साधन मात्र नहीं है। राष्ट्र निर्माण मे शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कोई छल से शिक्षक बनता है तो ऐसी नियुक्ति शुरू से ही शून्य होगी। न्यायालय ने कहा कि छल कपट से शिक्षक बन इन्होंने न केवल छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ किया है। अपितु शिक्षक के सम्मान को ठेस पहुंचाई है। मालूम हो कि आगरा विश्वविद्यालय की 2005 की बीएड की फर्जी डिग्री के आधार पर हजारों लोगों ने सहायक अध्यापक की नियुक्ति प्राप्त कर ली। उच्च न्यायालय ने जांच का आदेश देते हुए एसआईटी गठित की। जिसने अपनी रिपोर्ट में व्यापक धांधली का खुलासा किया। सभी को कारण बताओ नोटिस जारी की गयी। 814 लोगों ने जवाब दिया। शेष आये ही नहीं। बीएसए ने फर्जी अंक पत्र व अंक पत्र से छेड़छाड़ की दो श्रेणियों वालों को बर्खास्त कर दिया। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने अंक पत्र में छेड़छाड़ करने के आरोपियों की विश्वविद्यालय को जांच करने का निर्देश दिया था और कहा था कि बर्खास्त अध्यापकों से अंतरिम आदेश से लिए गये वेतन की बीएसए वसूली कर सकता है। खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश के इस अंश को रद्द कर दिया है। टीचरों की इस विशेष अपील पर हफ्तों बहस के बाद कोर्ट ने फैसला 29 जनवरी को सुरक्षित किया था। इन टीचरों को फर्जी मार्कशीट के आधार पर नौकरी ले लेने के कारण एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर बीएसए ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था। इन टीचरों ने अपनी बर्खास्तगी को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। एकल जज ने एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर इन टीचरों की बीएसए द्वारा की गई बर्खास्तगी को सही ठहराया था। बाद में इन टीचरों ने एकल जज के इस आदेश को दो जजों की खंडपीठ में चुनौती दी। कहा गया था कि बीएसए का बर्खास्तगी आदेश एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर पारित किया गया है, जो गलत है। कहा गया था कि पुलिस रिपोर्ट को टीचरों की बर्खास्तगी का आधार नहीं बनाया जा सकता है। कहा गया था कि बीएसए ने बर्खास्तगी से पूर्व सेवा नियमावली के कानून का पालन नहीं किया। जबकि सरकार की तरफ से बहस की गई कि इन टीचरों की बर्खास्तगी एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर की गई है। परन्तु एसआईटी की रिपोर्ट हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में आई है। हाईकोर्ट ने इस मामले में जांच कर एसआईटी को रिपोर्ट देने को कहा था। बहस यह भी की गई थी कि फर्जी डिग्री या मार्कशीट के आधार पर सेवा में आने वालों की बर्खास्तगी के लिए सेवा नियमों का पालन करना जरूरी नहीं है। हिन्दुस्थान समाचार/आर.एन./दीपक

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