भाषा के गायब होने से होती है सभ्यता व संस्कृति विलुप्त : प्रो रजनीश शुक्ल

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प्रयागराज, 22 फरवरी (हि.स.)। जिस देश की भाषा गायब होती है, उस देश की सभ्यता और संस्कृति भी गायब होती है। जब भाषा अपदस्थ होती है तो मनुष्य के कल्याण का विचार अपदस्थ होता है। यह बातें सोमवार को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति डॉ रजनीश कुमार शुक्ल ने ‘मातृभाषा का महत्व’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान में कही। क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज, झूंसी के अकादमिक निदेशक आचार्य अखिलेश कुमार दुबे के संयोजन में ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय ‘मातृभाषा का महत्व’ विषय पर केंद्रित कार्यक्रम में कुलपति ने वैश्विक स्तर पर मातृभाषा को समझने, सभी मातृभाषाओं का सम्मान करने एवं मातृभाषा के संवर्धन की दिशा में काम करने की बात कही। हिन्दी विभाग के आचार्य केके सिंह ने मातृभाषा से जुड़े विविध पक्षों पर चर्चा करते हुए व्यक्तिगत स्तर पर मातृभाषा का प्रयोग करने एवं संवेदनशील होने की बात कही। जनसंचार विभाग के आचार्य कृपाशंकर चौबे ने मातृभाषा के प्रयोग एवं हिन्दी भाषा के प्रयोग की शुद्धता पर ध्यान देने तथा क्षेत्रीय केंद्र की सह आचार्या डॉ अवंतिका शुक्ला ने मातृभाषा से जुड़े सामाजिक सरोकारों पर एवं डॉ. आशा मिश्रा ने मातृभाषा के प्रति व्यक्ति की निजी संवेदनशीलता एवं सामाजिक-सांस्कृतिक बिंदुओं को स्पष्ट किया। डॉ हरप्रीत कौर ने पंजाबी मातृभाषा एवं साहित्य पर चर्चा की। डॉ विजया सिंह ने मातृभाषा ‘मगही : बाजार और भाषा’ पर चर्चा की। डॉ. ऋचा द्विवेदी ने मातृभाषा के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए डेनमार्क के कवि ऑर्थर कुदनर की कविता का पाठ किया। डॉ प्रभात सिंह ने मातृभाषा के लिए किए गए विविध राजनेताओं के कार्यों पर तथा शिवाजी जोगदंड ने मातृभाषा मराठी के विकास एवं इतिहास के विविध बिंदुओं पर एवं डॉ अनुराधा पाण्डेय ने भारत की भाषाई विविधता एवं मातृभाषा के महत्व पर चर्चा की। केंद्र के अकादमिक निदेशक आचार्य अखिलेश कुमार दुबे ने मातृभाषा के महत्त्व पर चर्चा करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में केंद्र से डॉ विजय सिंह एवं सहायक कुलसचिव विनोद वैद्य, छात्र, शोधार्थी आदि भी जुड़े थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ अनूप कुमार ने तथा तकनीकी संचालन एवं सहयोग जयेंद्र जायसवाल और शिवाजी जोगदंड ने किया। हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त

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