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सिल्क इण्डिया एक्सपो का समापन, सर्वाधिक बिकी बैंगलोर की मैसूर सिल्क

लखनऊ, 21 मार्च (हि.स.)। आत्मनिर्भर भारत और लोकल फार वोकल के अंतर्गत सफेद बारादरी में 12 मार्च से शुरु हुए सिल्क इण्डिया एक्सपो 2021 का रविवार को समापन हो गया। प्रदर्शनी के समापन के दिन तक सबसे ज्यादा बिक्री बैंगलोर के कांजीवरम व मैसूर सिल्क साड़ी की हुई। दूसरे स्थान बिकने वाली साड़ियों में बंगाल की सिल्क और बनारसी सिल्क साड़ी रही। कर्नाटक में बैंगलोर से आये गणेश ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि लखनऊ में आने का उनका अनुभव इस बार का बहुत अच्छा नहीं रहा। फिर भी उन्हें खुशी है कि बीते नौ दिनों में उनके स्टॉल से एक लाख रुपये से ज्यादा की साड़ियां बिक गयी। उन्होंने बताया कि बैंगलोर की प्रसिद्ध कांजीवरम और मैसूर सिल्क की साड़ियों ने यहां भी अपना जलवा बरकरार रखा। शुरुआती दिनों से ही महिलाओं ने मैसूर सिल्क साड़ी ज्यादा पसंद की। मैसूर सिल्क साड़ियों को गर्मियों के दिन में बेहद पसंद करते भी है, ये बेहद हल्की होती है और पहनने में आरामदायक रहती है। इसके अलावा कांजीवरम को बाहरी आयोजनों में पहनने के लिए महिलाएं खरीदती हैं। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में शांति निकेतन के शब्बीर अली ने कहा कि बंगाल की साड़ी का बाजार लखनऊ में नहीं चल सका। महिलाओं ने मात्र 65 हजार की साड़ियां ही खरीदी हैं। उनके स्टॉल पर एक हजार से 16 हजार तक की साड़ी है। इस बार उन्हें मुनाफा नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि साड़ियों के बिक्री से जो कमाई हुई है, यहां रुकने में और खाने पीने के साथ साड़ियों ले आने व ले जाने में सब बराबर हो जायेगा। लखनऊ आने से पहले उनका स्टॉल इंदौर के एक्सपो में लगा था, वहां ऐसा हाल नहीं था। जैसा लखनऊ में देखने को मिला। गुजरात के सुरेंद्र नगर से आये दिलीप भाई और चंदा बेन ने बताया कि चोली घाघरा की बिक्री से उनको काम चलाने मात्र का फायदा हुआ है। लखनऊ के उनका अनुभव घूमने फिरने के हिसाब से ज्यादा फायदे में था। लखनऊ में लगे एक्सपो में उनको उस तरफ फायदा नहीं हुआ, जैसे अन्य स्थानों पर होता रहा। यहां 50 हजार के आसपास की ही बिक्री हुई। बनारसी सिल्क के स्टॉलों को लगाये दुकानदारों ने बताया कि बनारसी सिल्क हर मौसम में बिकती है। पावरलूम के जमाने में रंग बिरंगी साड़ियां बनने लगी है और यही महिलाओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। हैंडलूम की साड़ियों के बजाय पावरलूम पर बनने वाली बनारसी साड़ियां सस्ती होती है। किंतु आज भी विवाह शादी में हैंडलूम की साड़ियां ही खरीदी जाती है। हिन्दुस्थान समाचार/शरद/दीपक

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