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तुलसी के राम पुरुषोत्तम थे तो कबीर के राम कण-कण में थे व्याप्त: सतीश द्विवेदी

-बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में शुरू हुई 'कबीर के राम, तुलसी के राम' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी -पहले दिन बेसिक शिक्षा मंत्री रहे मुख्य अतिथि लखनऊ, 22 मार्च (हि.स.)। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के हिंदी विभाग और उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में 'कबीर के राम, तुलसी के राम' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुई। सोमवार को इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि उप्र सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी थे। इस अवसर पर डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी कहा कि लोक कल्याण की दृष्टि से यदि हम विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि तुलसी और कबीर दोनों के राम एक हैं। कबीर निर्गुण शाखा के विद्वान हैं, तो तुलसी सगुण शाखा के विद्वान हैं। उन्होंने कबीर के राम की कल्पना पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कबीर के राम किसी रूप, क्षेत्र या काल तक सीमित नहीं थे, वे इससे कहीं ज्यादा थे, कबीर के राम कण-कण में व्याप्त थे। तुलसी के राम पुरुषोत्तम थे, तो कबीर के राम आदर्श समाज के प्रतीक, उसके रचयिता और उस समाज के भविष्य भी थे। विशिष्ट अतिथि डॉ. राज नारायण शुक्ला कार्यकारी अध्यक्ष उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान लखनऊ ने कहा कि प्राचीन काल में भगवान राम और आधुनिक काल में भगवान बुद्ध दोनों का ही विश्व पर गहरा प्रभाव रहा है। भगवान बुद्ध की भांति ही प्राचीन काल में प्रेम और आदर्श की संस्कृति विकसित करने के लिए हम भगवान राम को याद करते हैं और न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के विभिन्न देशों में लोकगीत और चित्रों में भगवान राम का जिक्र मिलता है। ऐसे लोक गीत और लोक कथाओं में जब किसी का जिक्र मिलता है तो आम जनमानस पर उसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। राम की व्याख्या तुलसीदास ने साकार रूप में की और तुलसी के राम निराकार थे। कुलपति आचार्य संजय सिंह ने कहा भगवान राम का नाम लेना ही एक सुखद अनुभव है। मगर सिर्फ चर्चा के माध्यम से ही राम को पा लेना मुश्किल है इसके लिए कठोर तपस्या और मन में सेवा भाव का होना आवश्यक है। कबीर और तुलसी दोनों में ही लोक कल्याण की प्रबल इच्छा थी, कठोर तपस्या कर उन्होंने आत्म जागृति के माध्यम से राम को प्राप्त किया। हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. सर्वेश सिंह ने कार्यक्रम में सभी का स्वागत करते हुए कहा कि राम का होना भारतीयता के अस्तित्व से जुड़ा है, इसलिए राम के आदर्शों और उनके विचारों को सही रूप से देश के सामने प्रस्तुत करना हम सभी की ज़िम्मेदारी है। अक्सर समाज मे भगवान राम के बारे में कबीर और तुलसी द्वारा प्रस्तुत सगुण और निर्गुण ईश्वर की व्याख्या पर भ्रम पैदा किया जाता है। इसलिए इस संगोष्ठी के माध्यम से यह प्रयास किया जाएगा कि इस भ्रम को समाज से दूर किया जा सके। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया। कार्यक्रम के अंत में विभाग के आचार्य प्रोफेसर राम पाल गंगवार द्वारा सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया गया। हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/संजय

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