इस बार रक्षाबंधन पर्व सर्वार्थ सिद्धि सहित पांच सुखद संयोग में, सुबह 9.28 बजे तक भद्रा
इस बार रक्षाबंधन पर्व सर्वार्थ सिद्धि सहित पांच सुखद संयोग में, सुबह 9.28 बजे तक भद्रा

इस बार रक्षाबंधन पर्व सर्वार्थ सिद्धि सहित पांच सुखद संयोग में, सुबह 9.28 बजे तक भद्रा

अपरान्ह 1.35 बजे से शाम 4.35 बजे, शाम 7.30 बजे से रात 9.30 बजे के बीच बहनें बाध सकेंगी रक्षासूत्र वाराणसी, 02 अगस्त (हि.स.)। इस बार श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन सावन माह के पांचवे और आखिरी सोमवार को है। पूरे सावन माह में 11 सर्वार्थसिद्धि, 3 अमृत सिद्धि और 12 दिन रवियोग है। ऐसे में रखाबंधन पर्व पर भी पांच दुर्लभ योग है। समसप्तक, प्रीति, सर्वार्थ सिद्धि, आयुष्मान दीर्घायु और हर्ष योग में बहनें सुबह 9.28 बजे तक भद्रा काल के बाद पूरे दिन भाईयों को राखी बांध सकती है। ज्योतिषविद मनोज पाठक ने रविवार को बताया कि पूर्णिमा तिथि आज देर शाम 8. 43 बजे से लग जायेगी। सनातन परम्परा में उदयाकाल में ही त्यौहार मनाया जाता है। ऐसे में सुबह 9.28 बजे तक भद्रा काल के बाद बहनें भाइयों के कलाई पर रक्षासूत्र बांध सकती है। उन्होंने बताया कि राखी बांधने का सही मुहूर्त अपरान्ह 1.35 बजे से शाम 4. 35 बजे तक और शाम 7.30 बजे से रात 9.30 बजे के बीच है। मनोज पाठक ने बताया कि रक्षा बंधन के दिन अपराह्न में ही बहनों को राखी बांधनी चाहिए। अगर अपराह्न समय न हो तो प्रदोष काल में राखी बांधनी चाहिए। उन्होंने बताया कि बहनों को सुबह भद्रा काल में अपने भाई को राखी नहीं बांधनी चाहिए। पौराणिक कथा के अनुसार, रावण की बहन ने भद्रा काल में उसे राखी बांधी थी, जिस से रावण का विनाश हो गया था। उन्होंने बताया कि रक्षाबंधन पर सूर्य और शनि का समसप्तक योग बन रहा है। सनातन संस्था के गुरूराज प्रभु ने बताया कि रक्षाबंधन के दिन बहन द्वारा भाई के हाथ पर राखी बांधी जाती है। इसका उद्देश्य होता है, ‘भाई का उत्कर्ष और भाई बहन की रक्षा करे। उन्होंने बताया कि आजकल राखी पर ‘ॐ’ अथवा देवताओं के चित्र होते हैं । ऐसी राखी का उपयोग करने के उपरांत ये अस्त-व्यस्त पड़े हुए मिलते हैं । यह एक प्रकार से देवता एवं धर्मप्रतीकों का अपमान है, जिससे पाप लगता है। इससे बचने के लिए राखी को जल में विसर्जित कर देना चाहिए। रक्षाबंधन के इतिहास के बारे में गुरूराज प्रभु ने बताया कि 'पाताल के बलिराजा के हाथ पर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया। वह दिन था श्रावण पूर्णिमा।’ बारह वर्ष इंद्र और दैत्यों में युद्ध चला। अपने १२ वर्ष अर्थात उनके १२ दिन। इंद्र थक गए थे और दैत्य भारी पड़ रहे थे । इंद्र इस युद्ध में स्वयं के प्राण बचाकर भाग जाने के लिए उतावले थे। इंद्र की व्यथा सुनकर इंद्राणी गुरु की शरण में पहुंची। गुरु बृहस्पति ध्यान लगाकर इंद्राणी से बोले, ‘‘यदि तुम अपने पातिव्रत्य बल का उपयोग कर यह संकल्प करो कि मेरे पतिदेव सुरक्षित रहें और इंद्र की दांयी कलाई पर एक धागा बांधो, तो इंद्र युद्ध में विजयी होंगे।’’ इंद्र विजयी हुए और इंद्राणी का संकल्प साकार हो गया। उन्होंने बताया कि भविष्यपुराण में रक्षाबंधन मूलतः राजाओं के लिए था। राखी की एक नई पद्धति इतिहास काल से प्रारंभ हुई। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दीपक-hindusthansamachar.in

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