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शबे कद्र में संक्रामक रोगों से हिफाजत व मुल्क में अमन-चैन के लिए मांगे दुआएं : मौलाना फरीदुद्दीन कासमी

- रोजा रखने वाले और रोजा ना रखने वाले दोनों पर सदका ए फित्र वाजिब है कानपुर,07 मई (हि.स.)। माहे मुबारक रमजान लोगों के प्रशिक्षण और इंद्रियों पर नियंत्रण पाने का महीना है, इसमें रोजे जैसी इबादत से लोगों को कंट्रोल पावर हासिल होता है। अब जब रमजान के बाद शैतान खुल जायेगा और वह हमारी रमजान की कमाई को बर्बाद करने और प्रशिक्षण के असर को खत्म करके हमें फिर गुनाह करने के लिए उकसायेगा। ऐसे में अपने कर्माें व कमाई की हिफाजत करें और रमजान की नेकियों को बर्बाद होने से बचायें। यह विचार आज अलविदा की नमाज के बाद जामिया महमूदिया अशरफुल उलूम के उस्ताद मौलाना फरीदुद्दीन कासमी ने व्यक्त किया। मौलाना ने फरमाया कि रमजान खत्म के करीब आ गया। दो शबे कद्रें बाकी हैं। एक सप्ताह से भी कम समय बचा है। रोजा, तरावीह, नमाज, सदकात, जिक्र, तौबा, इस्तेगफार के साथ रोजाना नमाजों में, इफ्तार व सेहरी के समय विशेष रूप से शबे कद्र में खूब दुआ मांगे। अपने लिए, अपने घर वालों और निकट संबधियों के संक्रामक रोगों से हिफाजत के लिए, मुल्क में अमन व चैन की स्थापना और नफरत फैलाने वालों की साजिशों की नाकामी के लिए, जान, माल, ईमान, इज्जत आबरू की हिफाजत और वैश्विक शक्तियों की गुप्त या खुलेआम की जा रही साजिशों की नाकामी के लिए, जन्नत को पाने और जहन्नुम से हिफाजत की दुआएं करें। दुनिया के बेकार कामों और बहस आदि में ना पड़कर उससे बचते हुए सोचें कि हम अल्लाह से कितना करीब हुए, हमारी लाइन कितनी दुरुस्त हुई और यह सोच पैदा करें कि हमको अल्लाह के हुक्म, नबी की सुन्नत और सहाबा व बुजुर्गाें के नक्शे कदम पर चलकर इंशा अल्लाह जन्नत पहुंचना है, जहन्नुम (नर्क) से और जहन्नुम (नर्क) ले जाने वाले सारे कामों से बचना है। बस अल्लाह के आदेशों और नबी की शिक्षाओं के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना है। कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी कानपुर की अल-शरिया हेल्पलाइन से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर प्रश्न:-क्या सदका ए फित्र रोजा रखने वाले पर वाजिब है? उत्तर:- रोजा रखने वाले और रोजा ना रखने वाले दोनों पर सदका ए फित्र वाजिब है, जब तक सदका ए फित्र अदा नहीं करेंगे, जिम्मेदारी से बरी नहीं होंगे। प्रश्न:- सदका ए फित्र किस वक्त वाजिब होता है? उत्तर:- सदका ए फित्र का वजूब ईदुल फित्र की फर्ज होने पर होता है, लिहाजा जो शख्स फर्ज का वक्त होने से पहले इंतेक़ाल कर जाने या फकीर हो जाये, उस पर सदका ए फित्र वाजिब नहीं है। प्रश्न :- क्या एक दिन के सफर में रोजा कजा करने की इजाजत है या तीन दिन के सफर में? उत्तर:- 48 मील का सफर हो तो रोजा कजा करना दुरुस्त है, इससे कम के सफर में रोजा कजा करना दुरुस्त नहीं है, लिहाजा एक दिन या तीन दिन की कोई कैद नहीं है। प्रश्न:- फर्ज नमाज के बाद जो नफिल है, उसका वक्त कब तक रहता है? उत्तर:- जब तक उस नमाज का वक्त है, उन नवाफिल का वक्त भी उस वक्त तक है, मगर फर्ज के बाद फौरन पढ़ लेना बेहतर है। हिन्दुस्थान समाचार / महमूद

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