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अयोध्या महोत्सव में हो रहा लोकसंस्कृति व परम्पराओं का दर्शन : लक्ष्मीकांत वाजपेयी

अयोध्या, 28 फरवरी (हि. स.)। साहित्य सृजन की उत्कृष्टता को प्रदर्शित करते अयोध्या महोत्सव के मंच पर आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में शब्द सम्पदा का अपार भण्डार दिखाई दिया। कविता का भाव व उसके मंत्रमुग्ध करने वाले उच्चारण ने श्रोंताओं के अंतर्मन को झकझोर दिया। सम्मेलन का उद्घाटन भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने किया। विशिष्ट अतिथि के रुप में सूचना आयुक्त नरेन्द्र श्रीवास्तव उपस्थित रहे। अध्यक्षता राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल ने की। लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि अयोध्या महोत्सव आने पर लोकसंस्कृति व परम्पराओं का दर्शन हो रहा है। इस तरह के आयोजन हमारी संस्कृति व संस्कारों को समृद्ध करते है। विभिन्न प्रकार की कलाओं को प्रस्तुत करने के लिए अनुकूल अवसर प्रदान करते हैं। कवि सम्मलेन में बाबा सत्यनारायन मौर्य व कमलेश मौर्य मृदुल के रचनाओं की मधुर प्रस्तुति के दौरान पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा। कवि सम्मेलन की शुरुवात कवियत्री रुचि चतुर्वेदी ने सरस्वती वन्दन से किया। अजय शुक्ला अंजान ने हल्दी यु़द्ध पर अपनी सजीव प्रस्तुति के कारण दर्शकों के मुख में भारत माता की जय के उद्घोष स्वतः आने लगे। चेतक योद्धा बन गया और मुगलों को घोड़ा बना दिया, आज जयचंद नहीं हिन्दुओं से रामकृष्ण मांगता है देश की प्रस्तुति ने तालियों को खूब गड़गड़ाहट बटोरी। इसके बाद सुदीप भोला ने चौकीदारां के चक्कर में मेरी साईकिल की चाभी खो गयी जैसी रचनाओं से दर्शकों को खूब हंसाया। जलाये एक दिया हम उन वीरों के नाम के द्वारा लोगों को भाव विभोर कर दिया। प्रियंका राय ओम नंदिनी ने कितने अपमान सहे सरयू घाट ने, कोठारी बंधु के सम्मान को किंचत नहीं भूलेंगे की मंत्रमुग्ध करने वाली प्रस्तुति की। शम्भू सिंह मनहर ने हमारे देश की मिट्टी ये चंदन से भी पावन है, राम ने बनाया सेतु तुम का तोड़़ोगे की प्रस्तुति से श्रोताओं को हृदय में दस्तक दी। डा. अशोक बत्रा ने नेता पत्नी से बोले वोट मुझे देना प्रिये, पाकिस्तान लठ बिन कभी नहीं मानेगा जैसी हास्य व्यंग की प्रस्तुत करके लोगों को खूब हंसाया। संचालन कर रहे राम किशोर तिवारी ने राम की छवि हृदय में उतारा करु, गोपियों के आंसुओं का मोल कौन लिखेगा की मंत्रमुग्ध करने वाली प्रस्तुति की। अयोध्या महोत्सव न्यास के अध्यक्ष हरीश श्रीवास्तव ने ने कहा कि अयोध्या और लंका में बड़ा अंतर यह था कि यहां वाल्मिकि, वशिष्ट व विश्वामित्र थे। लंका में इनके समतुल्य कोई नहीं था। अवतारी भगवान को शिक्षा लेने के लिए इन्हीं के गुरुकुल में जाना पड़ा। सरस्वती के इन पुजारियों के साथ रहने का हमें अवसर सदा खोजना चाहिए। हिन्दुस्थान समाचार/पवन/दीपक

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