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पाश्चात्य शिक्षा पद्धति के विरोधी थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय - प्रो द्विवेदी

बलिया, 29 जून (हि.स.)। जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ द्वारा मंगलवार को ’पं. दीनदयाल उपाध्याय का शिक्षा दर्शन’ विषय पर एक ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। जिसमें महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. प्रभुनाथ द्विवेदी ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय पाश्चात्य शिक्षा पद्धति के विरोधी थे। वे इस बात के पक्षधर थे कि शिक्षा भारतीय परिवेश के अनुरूप होनी चाहिए। श्री द्विवेदी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार शिक्षा व्यक्ति को समाज से जोड़ने का कार्य करती है। शिक्षा से हम शरीर, मन, चेतना एवं आत्मा को जान पाते हैं। इस प्रकार शिक्षा सूक्ष्म से सूक्ष्मतर और अंत में सूक्ष्मतम तक की यात्रा सम्भव है। शिक्षा के तीन गुण हैं त्याग, तेज व तपस्या। जिनसे आज के छात्र और शिक्षक वंचित हैं। शिक्षकों में आचरण की पवित्रता होनी चाहिए। शिक्षा के तीन माध्यम हैं संस्कार, अध्ययन- अध्यापन एवं स्वाध्याय, जिन्हें अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय के शिक्षा दर्शन का केंद्रीय मूल्य राष्ट्रीयता है। वे राष्ट्रीय भाव के निर्माण और प्रसार को शिक्षा का मूल उद्देश्य मानते हैं। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. कल्पलता पांडेय ने कहा कि हमें अपने आदर्श महापुरुषों के दिन-प्रतिदिन के आचरण से सीख लेनी चाहिए। शिक्षा व्यष्टि को समष्टि से जोड़ती है। संस्कारों की शिक्षा बचपन से ही दी जानी चाहिए, तभी व्यक्ति के चरित्र का समुचित विकास होगा। गोष्ठी में प्रो. विवेक काटदरे, प्रो अंजलि वाजपेयी, प्रो. जे पी एन पांडेय, प्रो. दिलीप सरदेसाई, डा. गणेश पाठक, डॉ. अशोक सिंह, डॉ. शिवाकांत मिश्र, डॉ. निशा राघव, डॉ. ओंकार सिंह, डॉ. रमाकांत सिंह, डॉ. वीरेंद्र सिंह, डॉ. अजय बिहारी पाठक आदि जुड़े रहे। अतिथियों का स्वागत और परिचय डॉ. प्रमोद शंकर पांडेय, बीज व्यक्तव्य डॉ. रामकृष्ण उपाध्याय तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. जैनेंद्र कुमार पांडेय ने किया। हिन्दुस्थान समाचार/पंकज/विद्या कान्त

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