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तरकुलहा देवी मंदिर में एक साथ केवल पांच दर्शनार्थी पाएंगे प्रवेश

गोरखपुर, 12 अप्रैल (हि.स.)। चौरीचौरा तहसील स्थित तरकुलहा मंदिर में देवी पर भी कोरोना वायरस का प्रकोप हो गया है। नवरात्र में दर्शन के लिए यहां आने वाले दर्शनार्थियों को एक साथ दर्शन का अवसर नहीं मिलेगा। पांच-पांच की टोली में इन्हें दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश करना होगा। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तो करना ही होगा, मुंह पर मास्क लगाना भी जरूरी होगा। मंगलवार से प्रारंभ होने वाले चैत्र नवरात्र (रामनवमी) को देखते हुए गोरखपुर जोन के एडीजी अखिल कुमार ने सोमवार को मंदिर पहुंच मां तरकुलहा देवी का आशीर्वाद लिया। सुरक्षा व्यवस्था का निरीक्षण भी किया। साथ में पुलिस अधीक्षक उत्तरी मनोज कुमार अवस्थी से सुरक्षा व्यवस्था की जानकारियां लीं और जरूर दिशा निर्देश भी दिए। एडीजी जोन ने दिया निर्देश इस दौरान एडीजी जोन अखिल कुमार ने बताया कि कोरोना प्रोटोकॉल का पूर्ण रूप से मंदिर परिसर में पालन किया जाएगा। एक साथ केवल 5 व्यक्ति ही मंदिर के अंदर कर प्रवेश करेंगे। पुलिस कराएगी कड़ाई से अनुपालन एडीजी जोन के निर्देशों का अनुपालन संबंधित पुलिस अधिकारी व जवान कड़ाई से अनुपालन कराएंगे। इस दौरान पुलिस न सिर्फ अपने दायित्वों का निर्वहन करेगी बल्कि आम जनमानस की सुरक्षा का पूरा ख्याल भी रखेंगे। निरीक्षण के दौरान पुलिस अधीक्षक उत्तरी मनोज कुमार अवस्थी एसडीएम चौरी चौरा पवन कुमार क्षेत्राधिकारी चौरी चौरा जगत नारायण कनौजिया सहित अन्य संबंधित मौजूद रहे। एक महीने चलता है मेला चैत्र माह में पड़ने वाले नवरात्र में मंदिर परिसर में मेला लगता है। यह मेला रामनवमी से शुरू होता है और एक महीना तक चलता है। मेला में देश के विभिन्न हिस्सों से लोग आते हैं। यहां नेपाल से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या काफी अधिक होती है। बकरे की बलि की है परंपरा तरकुलहा देवी मंदिर में बकरा चढ़ाने की परम्परा है। लोग मन्न्नतें मांगने आते हैं और पूरी होने के बाद यहां बकरे की बलि देते हैं। फिर वहीं मिट्टी के बर्तन में उसके गोश्त को पकाते हैं और प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। माँ का आशीर्वाद ले अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका अंग्रेजी सरकार द्वारा भारतीयों पर बहुत अत्याचार किया जाता था। इससे खिन्न डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह ने मां तरकुलहा देवी की आराधना के बाद अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक बिगुल फूंका था। वे माँ के बड़े भक्तों में शुमार थे। वर्ष 1857 में जब स्वतंत्रता संग्राम चरम पर था, तब यहां माँ तरकुलहा देवी के स्थान पर आशीर्वाद लेने आने वालों में सुगबुगाहट शुरू हुई थी। यहां भी देश में आजादी की हुंकार उठी। गुरिल्ला युद्ध में माहिर बाबू बंधू सिंह भी उसमें शामिल हो गए। घने जंगल में अपना ठिकाना बनाया और जंगल से गुजरने वाली गुर्रा नदी के किनारे स्थित तरकुल के पेड़ के नीचे बनी मां की पिंडी की पूजन अर्चन कर योजना को मूर्त रूप देना शुरू किया था। बताते चलें कि हर साल रामनवमी से तरकुलहा देवी मंदिर परिसर में मेला का आयोजन होता है। इस देवी मां के मंदिर में आजादी के दीवाने बलि चढ़ाते थे। कभी गोरखपुर के घने जंगलों में विराजमान प्रसिद्ध मां तरकुलहा देवी मंदिर आज तीर्थ के रूप में विकसित हो चुका है। हर साल लाखों श्रद्धालु मां का आशीर्वाद पाने के लिए यहां आते हैं। मां भगवती का यह मंदिर स्वतंत्रता संग्राम का कभी एक प्रमुख स्थल रहा। गोरखपुर से बीस किलोमीटर दूर देवीपुर गांव में मां तरकुलहा देवी का यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। हिन्दुस्थान समाचार/आमोद

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