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भगवान शनि की जयंती पर विधि विधान से पूजन अर्चन, सरसों का तेल अर्पित

वाराणसी,10 जून (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में ज्येष्ठ मास के अमावस्या तिथि पर गुरूवार को सूर्य पुत्र भगवान शनि की जयन्ती श्रद्धालुओं ने उत्साह से मनाया। शनिदेव के मंदिरों में जाकर श्रद्धालुओं ने भगवान शनि की पूजा की और उन्हें दीया में सरसों का तेल अर्पित कर दानपुण्य किया। श्रद्धालुओं ने पीपल के वृक्ष पर जल अर्पित कर विधिवत पूजन के बाद दीप भी जलाया। जिन लोगों के उपर शनि की साढ़े साती और ढैय्या लगी है। उन लोगों ने खासतौर पर भगवान शनि की आराधना की। समर्थ लोगों ने वैदिक कर्मकांडी ब्राह्मणों से विशेष पूजन अर्चन करवाया। सनातन धर्म में मान्यता है कि जयंती पर विधि-विधान से पूजन अर्चन से भगवान शनि प्रसन्न हो जाते हैं। दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि देव का आशीर्वाद मिलता है। ज्योतिषविद् मनोज उपाध्याय बताते है कि शनिदेव के आराध्य महादेव है। ऐसे में उनकी पूजा भी जरूरी है। श्री संकट मोचन हनुमान की आराधना से भी भगवान शनि प्रसन्न रहते हैं। भगवान शनि की पूजा के बाद सरसों का तेल किसी पात्र में रखकर अपना चेहरा देखना चाहिए। उस तेल की कटोरी को दान करना चाहिए या फिर पीपल के वृक्ष के नीचे रख देना होता है। दानपुण्य काला कंबल, तिल, काली उड़द, लोहा का किया जाता है। बताते चले, अमावस्या बुधवार अपरान्ह 01 बज कर 57 मिनट पर ही लग गई थी। इसकी समाप्ति गुरूवार को शाम चार बजकर 22 मिनट पर हुई। ऐसे में उदया तिथि में गुरूवार को भगवान शनि की जयन्ती मनाई गई। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/विद्या कान्त

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