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गंगा को स्वच्छ बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की ही नहीं, हम सबकी भी - रामनाथ कोविन्द

वाराणसी, 15 मार्च (हि.स.)। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने गंगा को निर्मल बनाने में आम लोगों की सहभागिता पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार पर निर्भर रहने के बजाय आज हम सबका दायित्व बन जाता है कि गंगा को एक बार फिर हम निर्मलता के उसी स्तर पर ले जाएं जिसका विवरण हम संत कबीर, संत रविदास तथा प्राचीन काल के ऋषि मुनियों की वाणी में पाते हैं। राष्ट्रपति अपने तीन दिवसीय पूर्वांचल दौरे के अन्तिम दिन सोमवार को एक मीडिया हाउस की ओर से नदेसर स्थित तारांकित होटल में आयोजित 'गंगा, पर्यावरण और भारतीय संस्कृति' विषयक संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। संगोष्ठी का उद्घाटन कर राष्ट्रपति ने कहा कि गंगा को स्वच्छ रखना, पर्यावरण का संरक्षण करना और हमारी संस्कृति और धरोहर को समृद्ध बनाना केवल सरकारों का काम नहीं है। बल्कि सभी देशवासियों का सामाजिक और व्यक्तिगत दायित्व भी है। इस सोच को देशव्यापी स्तर पर अपनाने और आत्मसात करने की जरूरत है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि गंगा को नदी के रूप में नहीं देखना चाहिए बल्कि यह संस्कृति की संवाहक है। भारत रत्न शहनाई सम्राट मरहूम उस्ताद बिस्मिल्ला खान से जुड़े संस्मरणों का जिक्र की राष्ट्रपति ने कहा कि एक बार मुम्बई में बसने का आग्रह लोगों ने उनसे किया था। तब उनका उत्तर था कि यहां बस तो जाऊंगा लेकिन मुम्बई में गंगा कहां से लाओगे?। राष्ट्रपति ने संत रविदास की उक्तियां 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' और संत कबीर की पक्तियों 'कबिरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर' का उल्लेख कर कहा कि उस समय गंगा जल को ही निर्मलता की सबसे बड़ी कसौटी माना जाता था। उन्होंने कहा कि गंगा तथा उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र देश के 11 राज्यों में फैला हुआ है और इसे ‘गंगा रिवर बेसिन’ का नाम दिया गया है। इस क्षेत्र में देश की 43 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। यह सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र भी है। उन्होंने कहा कि ‘गंगा रिवर बेसिन’ की सभ्यता को जलीय सभ्यता कहा जा सकता है। गंगा-जल, सच में जीवन-जल है। इसलिए, ‘गंगा रिवर बेसिन’ में जल-संरक्षण करना तथा बाढ़ व कटान को कम करना, दोनों ही जरूरी हैं। इन दोनों उद्देश्यों के साथ गंगा की स्वच्छता और पर्यावरण के संरक्षण का लक्ष्य भी जुड़ा हुआ है। राष्ट्रपति ने कहा कि गंगा भारत की पहचान है। गंगा को केवल सिर्फ एक नदी के रूप में देखना पर्याप्त नहीं है। गंगा भारतीय संस्कृति की जीवनधारा है तथा अध्यात्म और आस्था की संवाहिका है। उन्होंने कहा कि जीवन के अन्तिम पहर में भी लोगों के मन में इच्छा होती है कि गंगाजल एक बूंद उनकी जिह्वा पर पड़ जाय। राष्ट्रपति ने कहा कि पहले लोग गंगा में स्नान करने से पहले भी स्नान करके जाते थे ताकि गंगा मैली न हो। उन्होंने कहा कि गंगा के प्रति ये श्रद्धा बताती है कि परम्परा और संस्कृति है। गंगा हमारे जीवन की शुरुआत और अंत तक हमारी पहचान है। उन्होंने कहा कि भारत की सभी नदियों में गंगा का अंश है। देश में हर जगह गंगा के श्रद्धालु है। आस्थावान लोग अन्य देशों की नदियों में भी गंगा का रूप देखते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे जीवन मूल्यों में गंगा की पवित्रता का अर्थ है कि हम मन, वचन और कर्म से शुद्ध बने। गंगा की निर्मलता का अभिप्राय है कि हम निर्मल हृदय के साथ जीवन बिताएं। अविरलता का अर्थ है बिना रुके हुए अपने जीवन पथ पर हम सतत आगे बढ़ते रहे। गंगा की अविरलता में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भगीरथ प्रयास का उल्लेख कर राष्ट्रपति ने कहा कि पूरे दुनिया और भारत में ऐसा प्रधानमंत्री नहीं हुआ। अस्सी घाट पर प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान और फावड़ा चलाने का उल्लेख कर देश के प्रथम नागरिक ने संजीदगी से कहा कि गंगा और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए सन 2015 में ‘नमामि गंगे’ नामक एकीकृत ‘गंगा संरक्षण मिशन’ कार्यक्रम की शुरुआत की गई। मुझे संतोष है कि सरकार द्वारा शुरू किए गए इस मिशन के अच्छे परिणाम दिखाई देने लगे हैं। उन्होंने कहा कि मुझे बताया गया है कि बनारस के घाट अब साफ सुथरे हैं। गंगा नदी व घाटों तथा बनारस शहर में स्वच्छता पर ज़ोर देने के कारण न केवल पर्यावरण संरक्षण को बल मिला है बल्कि पर्यटकों के लिए बनारस की यात्रा और अधिक आनंददायक हो गई है। अपने मातृ शहर कानपुर का उल्लेखकर उन्होंने कहा कि गंगा की पवित्रता, निर्मलता और अविरलता सदैव मेरे जीवन में मार्गदर्शन व प्रेरणा के प्रमुख श्रोत रहे हैं और आगे भी बने रहेंगे। काशी की महिमा का बखान कर बदलाव का भी किया जिक्र राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने फोरम में काशी की प्राचीनता और महिमा के साथ यहां के विभूतियों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बनारस में अध्यात्म, साहित्य और संगीत का अद्भुत संगम रहा है। आज से लगभग छब्बीस सौ वर्ष पहले इसी क्षेत्र में स्थित सारनाथ में गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम संदेश दिया था। आदि शंकराचार्य को काशी में ही यह ज्ञान प्राप्त हुआ था कि सभी प्राणियों में एक ही ब्रह्म व्याप्त है। उन्होंने कहा कि काशी, देश के सर्वाधिक भारत-रत्नों की जन्मस्थली व कर्मभूमि रही है। लाल बहादुर शास्त्री, डॉक्टर भगवान दास, उस्ताद बिस्मिल्ला खां और पंडित रविशंकर बनारस में पैदा हुए और यहीं उन्होंने अपनी प्रतिभा को तराशा। इनके अलावा, महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस को ही अपनी मुख्य कर्मस्थली बनाया। काशी के बदलते स्वरूप को बताया राष्ट्रपति ने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के नए स्वरूप एवं आसपास के क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। विश्वनाथ मंदिर की संकरी गलियों और गंदगी को देखकर गांधीजी व्यथित हो गए थे। अब परिस्थिति बदल रही हैं। निकट भविष्य में ही मंदिर का एक भव्य स्वरूप देशवासियों के सामने होगा। उन्होंने कहा कि काशी का यह बदलता स्वरूप अपनी पुरातनता को भी संजोये हुए है। परंतु, पुरातनता का मतलब जड़ता नहीं है। किसी भी देश व समाज की जड़ता उसके क्षय और पतन का कारण बनती है। इसीलिए बनारस के लोगों से मेरा आग्रह है कि पुरातनता और आधुनिकता के बीच संतुलन स्थापित करें। काशी की पत्रकारिता को सराहा फोरम में राष्ट्रपति ने काशी की पत्रकारिता को जमकर सराहा। उन्होंने कहा कि सन 1920 के बाद भारतीय पत्रकारिता पर गांधीजी का गहरा प्रभाव पड़ा था। गांधीजी स्वयं भी पत्रकार थे। गांधीजी के समकालीन पत्रकारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, बाबूराव विष्णु पराड़कर और मुंशी प्रेमचंद जैसे संपादक थे। उन्होंने कहा कि काशी में सक्रिय रहे बाबूराव विष्णु पराड़कर जैसी विभूतियों ने भारत की पत्रकारिता को नए आयाम दिए। उन्होंने राष्ट्रपति, संसद और संविधान जैसे नए शब्दों से हिन्दी को समृद्ध किया। समारोह में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और प्रथम महिला सविता कोविंद भी मौजूद रहीं। संगोष्ठी की शुरूआत राष्ट्रगान से हुई। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दीपक

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