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किसानों की आय दोगुनी करने में सहायक है नरेन्द्र हल्दी और धनिया की फसल

— प्रदेश में कृषि वैज्ञानिकों ने अब तक मसाला फसलों की 11 प्रजातियों का किया विकास कानपुर, 22 फरवरी (हि.स.) । भारत में नरेन्द्र नाम आते ही लोगों के जेहन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर दिखने लगती है, लेकिन हम जिस नरेन्द्र की बात करने जा रहे हैं वह धनिया और हल्दी की फसल की प्रजाति है। इन प्रजातियों की फसल किसानों की आय दोगुनी करने सहायक साबित हो रही है। यही नहीं उत्तर प्रदेश में अब तक कृषि वैज्ञानिकों ने मसाला फसलों की 11 प्रजातियों का विकास कर लिया है। भारत प्राचीन काल से ही मसालों की भूमि के नाम से जाना जाता रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन के अनुसार विश्व के विभिन्न भागों में 109 मसाला प्रजातियों की खेती की जाती है। भारत में भी विभिन्न प्रकार की मृदा एवं जलवायु होने के कारण 20 बीजीय मसालों सहित कुल 63 मसाला प्रजातियां उगाई जाती है। भारत विश्व में मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता एवं निर्यातक देश है। उत्तर प्रदेश में किसानों को उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्नतशील बीज, उन्नत कृषि तकनीक के साथ—साथ मसालों पर शोध एवं किसानों को प्रशिक्षण देते हुए मसाला उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा रही है। उत्तर प्रदेश के कृषक खरीफ में हल्दी, अदरक, मिर्च एवं प्याज आदि की खेती करते है तथा रबी मौसम में धनिया, सौंफ, मेथी, लहसुन, अजवाइन, कलौंजी एवं मंगरैल आदि की खेती करते हैं। प्रदेश में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अबतक विभिन्न मसाला फसलों की 11 प्रजातियों का विकास किया गया है, जिनमें हल्दी की 5 प्रजातियां विकसित की गयी है। जिनमें नरेन्द्र हल्दी-1, नरेन्द्र हल्दी-2, नरेन्द्र हल्दी-3, नरेन्द्र हल्दी-98, नरेन्द्र सरयु है। धनियां की प्रजातियां में नरेन्द्र धनियां-1 व नरेन्द्र धनिया-2 विकसित है। मेथी की 3 प्रजातियां विकसित की गई है। अदरक उत्पादन में भारत विश्व में सबसे आगे है। अदरक का प्रयोग मसाले, औषधीय तथा सामग्री के रूप में हमारे दैनिक जीवन में वैदिक काल से चला आ रहा हैं। खुशबू पैदा करने के लिये आचारों, चाय के अलावा कई व्यजंनो में अदरक का प्रयोग किया जाता है। सर्दियों में खांसी जुकाम आदि में किया जाता हैं। अदरक का सोंठ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अदरक को सुखाकर 15 से 20 प्रतिशत सोंठ प्राप्त की जा सकती है। गर्म एवं आर्द्र जलवायु में अदरक की खेती अच्छी होती है। लहसुन भी किसानों को एक अधिक आय देने वाली महत्वपूर्ण मसाले की फसल है इसके रोजाना प्रयोग करने से पाचन क्रिया में सहायता एवं मानव रक्त में कोलेस्ट्रॅल की भी कमी होती है। इसका उपयोग भोजन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे-अचार, चटनी, पाउडर एवं लहसुन पेस्ट बनाने में किया जाता है। उत्तर भारत में लहसुन की बुवाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। प्रति हेक्टेयर 5-6 कुन्तल बीज की आवश्यकता होती है जिससे औसतन 150 से 200 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त हो जाता है। मेथी का प्रयोग सब्जियों एवं खाद्य पदार्थों में किया जाता है। औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग जोड़ों के दर्द निवारण, मधुमेह रोग एवं प्रसूता स्त्री के दुग्ध वृद्धि के किया जाता है। मेथी की खेती हेतु 20 से 25 किलोग्राम बीज एवं कसूरी मेथी की खेती के लिए 10 से 12 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। इस प्रकार विधि से खेती करने पर देशी मेथी 15 से 20 कुन्तल एवं कसूरी मेथी 6 से 8 कुन्तल दाना (बीज) प्रति हेक्टेयर तथा पत्ती उत्पादन 70-80 कुन्तल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है। जीरा भी हमारी रसोई का एक अभिन्न घटक है। मसाला गुणों के साथ-साथ इसमें अनेक औषधीय गुण भी पाये जाते है, जिसके कारण इसका उपयोग पाचन वृद्धि, अतिसार से सुधार हेतु किया जाता है। उन्नत विधि से खेती करने पर 8 से 10 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है। हिन्दुस्थान समाचार/अजय/मोहित

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