नाग पंचमी पर नहीं लगेगा मेला, दाव-पेंच नहीं आजमा सकेंगे पहलवान
नाग पंचमी पर नहीं लगेगा मेला, दाव-पेंच नहीं आजमा सकेंगे पहलवान

नाग पंचमी पर नहीं लगेगा मेला, दाव-पेंच नहीं आजमा सकेंगे पहलवान

मीरजापुर, 21 जुलाई (हि.स.)। कोरोना वायरस का असर अब नगर के धार्मिक उत्सवों और संस्कृति पर भी पड़ने लगा है। नाग पंचमी पर ओझला सहित कई स्थानों पर मेले लगते थे और दंगल में प्रसिद्ध पहलवान अपने दांव-पेंच से लोगों को रिझाते थे। लेकिन इस बार यह नजारा देखने को नहीं मिलेगा। आषाढ़, सावन और भादों के महीने लोक देवी और देवताओं के लिए समर्पित हैं। इनमें कजरहवा पोखरा, आमघाट, ओझला सहित जिले के अनेको स्थानों के पूजन स्थलों पर विविध धार्मिक एवं सांस्कृति आयोजन होते हैं। लेकिन इस बार कोरोना वायरस के कारण यह सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं होंगे। नाग पंचमी के उपलक्ष्य में पिछले कई दशकों से हर साल जिले में हरियाली तीज से लेकर अष्टमी तक मेला सहित कई कार्यक्रम होते हैं। इनमें दंगल, नाग पूजन आदि हैं। ओझला मेला समिति के संचालक के राजबली निषाद के मुताबिक कोरोना वायरस से बचाव के कारण यह फैसला लिया गया है। इस बार मेला नहीं लगेगा और न ही दंगल होगा। नगर के सिविल लाइन निवासी पहलवान लवकुश यादव ने कहा कि इस बार कोरोना की दृष्टिगत दंगल का आयोजन नहीं किया जाएगा। इससे युवा पहलवान अपने दमखम नहीं आजमा पाएंगे और दर्शकों को भी दाव-पेंच नहीं देखने को नहीं मिल सकेंगे। कुश्ती की तैयारी आयोजन से पहले होती थी जो कोरोना के चलते इस बार नहीं हो सकी। कभी लगते थें जिले के दर्जनों स्थानों पर मेले विंध्य क्षेत्र में नाग पंचमी का बड़ा महत्व है। इस अवसर पर सपेरे नागों की कई प्रजातियां लेकर आते थे। इन नागों की पूजा और दर्शन के लिए भी भारी संख्या में लोग उमड़ते थे। लेकिन अब यह मेले लगभग लुप्त हो गए हैं। हालांकि ओझला का नाग पंचमी मेला अभी भी अपना अस्तित्व बचाए हुए है। लेकिन इस बार कोरोना वायरस के कारण यह भी प्रभावित हो गया है। ज्यादा नहीं सिर्फ एक दशक पीछे ही पलट कर देखा जाए तो नागपंचमी के आगमन को लेकर बच्चों में खासा उत्साह रहता था। क्षेत्र के अखाड़े और स्कूलों में दंगल और प्रदर्शन की तैयारियाँ काफी पहले से आरंभ हो जाती थीं। अब यह विधा लुप्त होती जा रही है। पारंपरिक के बजाए आधुनिक खेलों पर ध्यान आधुनिकता हर जगह हावी हो चुकी है। शहरों तथा गाँवों में आज भी कुश्ती और अन्य विधाओं के उस्ताद खलीफा हैं जो लोगों को दाँव-पेंच की कला सिखाने आतुर रहते हैं। लेकिन आज के युवा इस ओर से पूरी तरह विमुख हो चुके है। एक दौर था जब घर के बुजुर्ग बच्चों को डटकर खाने और खूब मेहनत करने के लिए प्रेरित करते थे। वर्तमान दौर में बच्चों का ध्यान टीवी और मोबाइल तक सिमटकर रह गया है। इसके भयावह नतीजे देख लोगों ने बच्चों को स्वस्थ रखने दौड़ने खेलने को प्रेरित किया। फर्क इतना है कि अब लोगों का ध्यान पारंपरिक खेलों की बजाए आधुनिक खेलों की तरफ हो गया है। हिन्दुस्थान समाचार/गिरजा शंकर/दीपक-hindusthansamachar.in

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