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कुशीनगर : 'चेपुआ मछली' के रहन-सहन का परीक्षण शुरू, खुलेगा 'रोजगार-संरक्षण' का द्वार

कुशीनगर, 17 फरवरी (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के पनियहवा से होकर गुजरने वाली 'नारायणी नदी' का पौराणिक महत्व है। कहते हैं इसी नदी में गज-ग्राह' का युद्ध हुआ था। इसी 'नारायणी नदी' में आकर भगवान विष्णु ने खुद ही 'ग्राह' के मुंह मे फंसे 'गज' की संरक्षण दिया था। उसे काल के गाल मर सामने से बचाया था। लेकिन अब यहाँ अपने 'स्वाद और अनोखी' प्रजाति के लिए विख्यात 'चेपुआ मछली' के संरक्षण का कार्य शुरू हुआ है। यह कार्य क्षेत्रीय विधायक जटाशंकर त्रिपाठी के अथक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। यहां पहुंची वैज्ञानिकों की टीम ने दूसरी बार सैम्पलिंग की है और पानी का नमूना भी लिया है। फिलहाल, बुधवार को भी टीम यहां अपने शोध कार्य से जुड़े कार्यों को अंजाम देने में जुटी है। इससे यहां मिलने वाली 'चेपुआ मछली' के संरक्षण की राह खुलती दिख रही है। अब यह न सिर्फ पनियहवा की शान रहेगी बल्कि इसकी पहुँच भारत के विभिन्न वातावरण और भौगोलिक क्षेत्रों में भी होगी। चेपुआ मछली पर शोध करने वाली संस्था एनबीएफजीआर (नेशनल ब्यूरो आफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेस) लखनऊ की तीन सदस्यीय टीम मंगलवार को कुशीनगर पहुंची थी। वह आज भी जिले में ही है। दिसम्बर 2019 में कुशीनगर पहुंची वैज्ञानिकों की टीम का यह दूसरा दौरा है। मछली का दोबारा सैंपल लेने आई टीम के सदस्यों ने मंगलवार को जहां नारायणी नदी (बड़ी गंडक) के पनियहवा घाट पर नाव से भ्रमण कर मछली के विचरण, उसके आहार, पानी की गुणवत्ता के बारे में जानकारी जुटाई, वहीं आज भी परीक्षण से जुड़ी बारीकियों को ध्यान में रखते हुए अन्य नमूनों को भी इकट्ठा करेगी। टीम बताती है एनबीएफजीआर के निदेशक डा. कुलदीप कुमार लाल के निर्देश पर कुशीनगर के पनियहवा पहुंची टीम के मुख्य वैज्ञानिक डा. केडी जोशी, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी डा. अजय कुमार सिंह, सहायक श्यामदेव ने बताया कि जल मापक यंत्र से पानी की गुणवत्ता मापी गई है। स्थानीय लोगों से भी जानकारियां जुताई जा रहीं हैं। चेपुआ पर शोध कार्य शुरू है। टीम का इस दूसरे का दौरे का यही उद्देश्य है। मृत-जीवित चेपुआ पर शोध कर रही टीम डा. केडी जोशी ने बताया कि उनकी टीम चेपुआ पर शोध कर रही है। जीवित और मृत चेपुआ के सैंपल पिछके दौरे पर भी लिया गया था। मृत चेपुआ को शोध के लिए कोचीन भेजा गया है, जबकि जीवित चेपुआ एनबीएफजीआर की निगरानी में रखी गई है। यहां मछली के प्रजनन की संभावना तलाशी जा रही है। नारायणी नदी की चेपुआ सिर्फ शैवाल ही खाती हैं। नदी से बाहर लाने पर कुछ देर बाद उसकी मौत हो जाती है। लखनऊ स्थित फार्म पर कृत्रिम ब्रीडिग टीम ने बताया कि चेपुआ मछली की काफी डिमांड है। यहां आने वाले पर्यटक अक्सर इसकी चर्चा करते रहते हैं। क्षेत्रीय विधायक ने भी इसमें रुचि दिखाई है। अब हमने लखनऊ स्थित फार्म पर कृत्रिम ब्रीडिग कराने का निर्णय लिया है। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में चेपुआ मछली की जरूरत है। बढ़ेगा रोजगार अवसर विधायक जटाशंकर त्रिपाठी की पहल पर नेशनल ब्यूरो आफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज की टीम चेपुआ की कृत्रिम ब्रीडिग की संभावना तलाशने दूसरी बार कुशीनगर आई तो स्थानीय लोगों की बांछें खिल गईं। नारायणी में पाई जाने वाली विशेष प्रजाति की इस मछली की कृत्रिम ब्रीडिग संभव हुई गई तो यहां रोजगार के द्वार खुल जाएंगे। न सिर्फ स्थानीय युवाओ के रोजगार का द्वार खिलेगा बल्कि यहां मछली मारकर आजीविका चलाने वालों को भी उन्नति का मार्ग मिल जाएगा। चेपुआ का पालन करने की मंशा रखने वाले भी रोजगार कर सकेंगे। यह अध्ययन कर रही टीम मुख्य वैज्ञानिक डा. केडी जोशी की टीम नारायणी के विभिन्न घाटों पर बारीकी से चेपुआ की गतिविधियों का अध्ययन कर रही है। खड्डा इलाके के मछुआरों से मछली के प्रजनन के समय की जानकारी से लगायत नदी से पानी में मिलने वाले तत्वों की जानकारी भी ली जा रही है। टीम इस बात का भी रिसर्च कर रही है कि क्यों चेपुआ प्रजाति की मछली केवल नारायणी में ही पायी जाती है। इस नदी के जल में वह कौन सा तत्व है, जिसमें चेपुआ की ब्रीडिग संभव है। अगर इस गुत्थी को सुलझा लिया गया तो कृत्रिम ब्रीडिग का रास्ता साफ हो जाएगा। हिन्दुस्थान समाचार/आमोद-hindusthansamachar.in

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