भगवान श्रीराम के वरदान से मनोकामनाओं के पूरक बने थे चित्रकूट के कामदगिरि
भगवान श्रीराम के वरदान से मनोकामनाओं के पूरक बने थे चित्रकूट के कामदगिरि

भगवान श्रीराम के वरदान से मनोकामनाओं के पूरक बने थे चित्रकूट के कामदगिरि

-राममंदिर निर्माण को लेकर प्रभु श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में हर्ष का माहौल -05 अगस्त को कामदगिरि पर्वत और मंदाकिनी के रामघाट तट पर घी के दीपक जलाकर संत करेगें खुशी का इजहार रतन पटेल चित्रकूट,02अगस्त (हि.स.)। आदि तीर्थ के रूप में विख्यात धर्म नगरी चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत का धार्मिक,आध्यात्मिक और पौराणिक दृष्टिकोण से समूचे विश्व में विशेष महत्व है। इसी पावन और पवित्र पर्वत पर प्रभु श्री राम ने सीता और अनुज लखन के साथ वनवास काल का साढे 11 वर्ष का समय व्यातीत किया था। भगवान श्रीराम ने ही पर्वतराज सुमेरू के शिखर कहे जाने वाले चित्रकूट गिरि को कामद यानि मनोकामनाओं के पूरक होने का वरदान दिया था। तभी से विश्व के इस अलौकिक कामदगिरि पर्वत के दर्शन मात्र से आस्थावानों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के चरित्र को जन-जन तक पहुंचाने वाले संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने ’रामचरित मानस’ में विश्व के अलौकिक ’कामदगिरि पर्वत’ की महिमा का बखान करते हुए लिखा है कि ’कामद भे गिरि राम प्रसादा,अवलोकत अपहरत विसादा। भगवान श्रीराम के इसी वरदान की महिमा के चलते देश भर से प्रतिवर्ष करोडोें श्रद्धालु चित्रकूट पहुंचकर पतित पावनी मां मंदाकिनी में आस्था की डुबकी लगाने के बाद मनोकामनाओं के पूर्ति के लिए कामदगिरि पर्वत की पंचकोसीय परिक्रमा लगाते है। कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत मदन गोपाल दास महाराज भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट की महिमा का बखान करते हुए कहते है कि चित्रकूट अनादि काल से अत्रि,वाल्मीकि समेत तमाम प्रख्यात ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रहीं है। त्रेता युग में जब अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम सीता जी और अनुज लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले थे तब उन्होेने आदि ऋषि वाल्मीकि से पूछा था कि साधना के लिए उत्तम स्थान कहां है और हमे कहां निवास करना चाहिए। जिसके जवाब में वाल्मीकि ऋषि ने कहा था कि आप तीनों चित्रकूट गिरि जाये। वहां आपका सभी तरह से कल्याण होगा। ऋषि वाल्मीकि की आज्ञा पर श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ चित्रकूट गये और चित्रकूट गिरि पर निवास करने लगे। चित्रकूट के इसी पावन पर्वत पर भगवान राम ने अपने वनवास का सर्वाधिक साढे 11 वर्ष व्यातीत किया था। चित्रकूट से जाते समय प्रभु श्रीराम ने चित्रकूट गिरि का मान बढाने के लिए कामद होने यानि मनोकामनाओं का पूरक होने का वरदान दिया था। इसी वरदान के कारण पूरे कामदगिरि पर्वत को भगवान श्रीराम का विराट स्वरूप मानकर आदिकाल से पूजन और प्रदक्षिणा की परम्परा शुरू हुई थी,जो आज भी अनवरत जारी है। देश भर से प्रतिवर्ष करीब दो करोड से अधिक श्रद्धालु चित्रकूट पहुंचकर कामदगिरि के दर्शन,पूजन और प्रदक्षिणा कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति करते है। वही कामतानाथ प्राचीन द्वार मंदिर के प्रधान पुजारी भरतशरण दास महाराज बताते है कि प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल का सर्वाधिक समय कामदगिरि पर्वत में निवास किया था। इसी पावन पर्वत पर प्रभु श्रीराम का दरबार सजता था औैर भगवान श्रीराम भक्तों का कल्याण करते थे। बताया कि कामदगिरि पर्वत पर ही तपस्या कर भगवान राम ने आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने की शक्तियां अर्जित की थी। जब भगवान श्रीराम तपोभूमि से जाने लगे तो चित्रकूट गिरि ने भगवान राम से याचना किया कि हे प्रभु आपने इतने वर्षो तक यहां वास किया। जिससे ये जगह पावन हो गई है। लेकिन आपके जाने के बाद मुझे कौन पूछेगा। तब प्रभु श्रीराम ने चित्रकूटगिरि को वरदान दिया कि अब आप कामद हो जाएंगे। यानि ईच्छाओं (मनोकामनाओं) की पूर्ति करने वाले हो जायेंगें। जो भी आपकी शरण में आयेगा उसके सारे विशाद नष्ट होने के साथ-साथ उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जायेगी और उस पर सदैव राम की कृपा बनी रहेगी। सुप्रसिद्ध भागवताचार्य आचार्य नवलेश दीक्षित एवं डॉ रामनारायण त्रिपाठी तपोभूमि चित्रकूट की महिमा का बखान करते हुए कहते है कि चित्रकूट आध्यात्मिक और धार्मिक आस्था का सर्वश्रेष्ठ केंद्र है। यह वह भूमि है जहां पर ब्रह्म,विष्णु और महेश तीनों देव का निवास है। भगवान विष्णु ने श्रीराम रूप में यहां वनवास काटा था, तो ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए यहां यज्ञ किया था और उस यज्ञ से प्रगट हुआ शिवलिंग धर्मनगरी चित्रकूट के क्षेत्रपाल के रूप में आज भी विराजमान है। भरत मिलाप मंदिर के महंत राममनोहर दास महाराज का कहना है कि धर्म नगरी के प्रमुख तीर्थ स्थल कामदगिरि पर्वत पर रहकर ही प्रभु राम ने तप-साधना कर शक्ति का संचय करने के साथ-साथ अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष का संकल्प लिया था। उन्होने बताया कि भगवान श्रीराम के वरदान से कामदगिरि बने चित्रकूट गिरि करोडों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवन दास बताते है कि वायु पुराण में चित्रकूट गिरि की महिमा का उल्लेख है। सुमेरू पर्वत के बढते अहंकार को नष्ट करने के लिए वायु देवता उसके मस्तक को उडा कर चल दिये थे। किंतु उस शिखर पर चित्रकेतु ऋषि तप कर रहे थे। शाप के डर से वायु देवता पुनः उस शिखर को समुेर पर्वत में स्थापित करने के लिए चलने लगे। तभी ऋषिराज ने कहा कि मुझे इससे उपयुक्त स्थल पर ले चलो नही तो शाप दे दूंगा। सम्पूर्ण भूमंडल में वायु देवता उस शिखर हो लेकर घूमते रहे,जब इस भूखंड पर आये तो ऋषि ने कहा कि इस शिखर को यहीं स्थापित करों। चित्रकेतु ऋषि के नाम से ही इस शिखर को नाम चित्रकूट गिरि पडा था। महंत श्री बताते है कि कामदगिरि पर्वत के नीचे क्षीरसागर है। जिसके अंदर उठने वाले ज्वार-भाटा से कभी-कभार कामतानाथ भगवान के मुखार बिंद से दूध की धारा प्रवाहित होती है। कोरोना लाक डाउन के कारण चित्रकूट के मंदिरों के कपाट बंद है। जिसकी वजह से धर्म नगरी में सन्नाटा पसरा हुआ है। जबकि लाक डाउन से पहले कामदगिरि पर्वत के दर्शन और परिक्रमा के लिए प्रत्येक माह अमावस्या पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का जमावडा लगता था। दीपदान मेले में यह संख्या 50 से 60 लाख तक पहुंच जाती थी। कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत मदन गोपाल दास महाराज ने बताया कि पांच अगस्त को जन्मभूमि अयोध्या में होने जा रहे राम मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम को लेकर तपोभूमि चित्रकूट में भारी उत्साह है। उन्होंने बताया कि सैकडों वर्षो के संघर्ष के बाद राम मंदिर निर्माण का शुभ दिन आया है। उन्होने बताया कि 5 अगस्त हो चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत एवं मंदाकिनी के रामघाट तट पर घी के दीपक जलाकर खुशी का इजहार किया जायेगा। हिन्दुस्थान समाचार /-hindusthansamachar.in

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