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हिन्दी में दिए जाएं न्यायालय में निर्णय : न्यायमूर्ति गौतम चौधरी

मां, मातृभूमि और मातृभाषा का विकल्प नहीं - प्रो केएन सिंह प्रयागराज, 22 फरवरी (हि.स.)। न्यायालय के निर्णयों में आज हिन्दी का समय है। जब प्रथम सूचना रिपोर्ट हिन्दी में, बयान हिंदी में तो फिर पिटीशन अंग्रेजी में क्यों? ज्ञान महत्वपूर्ण है सूचना महत्वपूर्ण है, उसकी भाषा नहीं। न्यायालय में निर्णय हिन्दी में दिए जाएं। यह बातें इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने कही। भारतीय भाषा अभियान उत्तर प्रदेश की ओर से हिंदुस्तानी एकेडमी में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आयोजित गोष्ठी ‘न्याय की भाषा मातृभाषा’ विषय पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने भारतीय भाषा में ही न्याय की वकालत करते हुए कहा कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय और उसके निर्णय उसकी अपनी मातृभाषा में पहुंचना चाहिए। बांग्लादेश में हुए मातृभाषा आंदोलन की स्मृति में मनाया जाने वाला यह मातृभाषा दिवस आज बेहद महत्वपूर्ण है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने कहा कि न्यायालयों में भी भारतीय भाषाओं में कार्य को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारतीय भाषाओं का वर्चस्व बढ़ेगा। वैसे-वैसे अंग्रेजी का प्रभाव अपने आप कम होता जाएगा। अध्यक्षता कर रहे राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो केएन सिंह ने कहा कि आम आदमी ही इस देश की वास्तविक ताकत है। मां मातृभूमि और मातृभाषा का विकल्प नहीं हो सकता। उस आम आदमी की भाषा में केवल न्याय ही नहीं शिक्षा की भी आवश्यकता है। अंग्रेजी में दवा, शिक्षा, तकनीकी की व्यवस्था ने देश की प्रगति में बाधा उपस्थित की है। इसके लिए अब संकल्प लेने का समय है। विषय परिवर्तन इविवि हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रो राजेश कुमार गर्ग ने कराया। संचालन डॉ मुदिता तिवारी ने एवं धन्यवाद ज्ञापन अखिलेश मिश्र ने किया। इस अवसर पर अधिवक्ता परिषद के महामंत्री शीतल प्रो एमपी तिवारी, पूर्णेंदु मिश्र, गौरव तिवारी, पवन श्रीवास्तव, सीपी दुबे आदि उपस्थित रहे। हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त

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