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जमा रकम की जकात अदा करना भी लाजिम है : मुफ्ती इकबाल अहमद कासमी

- जिंदा इंसान पर नमाजों का फिद्या अदा करना मोतबर नहीं कानपुर, 12 मई (हि.स.)। रमजान का यह पाक महीना अगर आज ईद का चांद निकल आया तो हम सबसे रुखसत हो जाएगा। ऐसे में हमसे जो भी इस पवित्र माह को गुजारने में रोजे व इबादत में जो भी कोताही हुई हो रब उसे माफ फरमाए। रमजान में तमाम सवालों के माकूल जवाब अल-शरिया हेल्पलाइन के जरिए मुफ्ती इकबाल अहमद कासमी ने दिए। उन्होंने बताया बताया हुकूमत की गाइड लाइन के अनुसार जिस तरह पिछले वर्ष ईद की नमाज़ हमने अपने घरों में अदा की है। कोरोना महामारी के मद्देनजर हमे इस साल भी अपने घरों पर ही ईद की नमाज का एहतमाम करना होगा। जिन्दगी और सेहत की हिफाजत करना शरई फरीजा है। कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी कानपुर की अल-शरिया हेल्पलाइन से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर। प्रश्न:- रमजान में हिन्दुस्तान से सऊदी अरब चले जाने वाले पर रोजों का क्या हुक्म है? उत्तर:- अगर कोई शख्स रमजान शुरू होने के बाद हिन्दुस्तान से सऊदी अरब या किसी दूसरे देश में चला जाये और वहां उसके 28 रोजे होने के बाद ही ईद का चांद नजर आ जाये तो वह ईद में शरीक होगा और ईद के बाद एक रोजा कजा कर लेगा क्योंकि किसी भी सूरत में शरअन महीना 29 दिन से कम नहीं होना चाहिए, एहतियात का तकाजा यही है। प्रश्न:- मकान बनाने के लिये जमा हुई रकम पर जकात का क्या हुक्म है? उत्तर:- अगर किसी शख्स ने मकान बनाने के लिये रकम जमा कर रखी है, इस दरमियान जकात की अदायगी का वक्त आ गया तो उस पर इस जमा रकम की जकात अदा करना भी लाजिम है। प्रश्न:- मेरी तबीयत खराब रहती है तो क्या मरने से पहले अपनी नमाजों का फिद्या अदा कर दूं? उत्तर:- अगर कोई व्यक्ति नमाज पढ़ने से आजिज हो जाये और उसके जिम्मे बहुत सी नमाजें कजा हों तो जब तक भी वह जिन्दा है उसकी तरफ से नमाजों का फिद्या अदा करना मोतबर नहीं है बल्कि अगर हो सके तो कजा कर ले और अगर मरने से पहले तक कजा का मौका ना मिले तो फिद्या की वसीयत करे। प्रश्न:- नफिल नमाज बिना परेशानी के बैठकर पढ़ना कैसा है ? उत्तर:- नफिल नमाज किसी परेशानी के बगैर बैठकर पढ़ना जायज है, अलबत्ता बिना किसी परेशानी के बैठकर नमाज पढ़ने की स्थित में आधा सवाब मिलेगा। हिन्दुस्थान समाचार/ महमूद

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