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राष्ट्र को समझना है तो उसकी संस्कृति को समझना होगा : श्रीश देवपुजारी

मेरठ, 10 फरवरी (हि.स.)। संस्कृति भारती के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री श्रीश देवपुजारी ने कहा कि शिक्षा में भारतीयता न होने के कारण हम भारत को समझ नहीं पाते हैं, क्योंकि हम भारत को अंग्रेजी में समझने की कोशिश करते हैं। यदि किसी राष्ट्र को समझना है तो उसकी संस्कृति को समझना होगा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि पर चैधरी चरण सिंह विवि के राजनीति विज्ञान विभाग की पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ ने बुधवार को गोष्ठी का आयोजन किया। मुख्य वक्ता श्रीश देवपुजारी ने कहा कि संस्कृति का अनुवाद कल्चर ठीक नहीं है। कल्चर को संस्कृति नहीं कहा जा सकता है। संस्कार से ही संस्कृति उत्पन्न होती है। मानवदर्शन सबके लिए समान था श्रीश देवपुजारी ने कहा कि पंडित दीनदयाल ने भारतीय परंपरा को आगे बढाने का काम किया। उन्होंने समाज को बहुत बारीकी से निरीक्षण किया था। समाज में दो प्रकार के लोग होते हैं। एक चिंतक और दूसरे संगठक, पंडित दीनदयाल जी संगठक थे। उनके जीवन से हम प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। उनका एकात्म मानव दर्शन सबके लिए समान था। पर्यावरण की समस्या विज्ञान की देन मुख्य वक्ता ने कहा कि पर्यावरण की समस्या विज्ञान की देन है। हमने संसाधनों के चक्कर में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। यदि पर्यावरण को सुरक्षित रखना है तो सीमित संसाधनों का प्रयोग करना चाहिए। हम यह ठान लें कि अपने संस्कारों को नहीं छोड़ेंगे। अपने कार्यों के द्वारा एक्टिविस्ट थे दीनदयाल कार्यक्रम के अध्यक्ष चौधरी चरण सिंह विवि के कुलपति प्रो. एनके तनेजा ने कहा कि बुद्धिवाद के हम सब लोग अनुज्ञापी हैं। पंडित दीनदयाल अपने कार्यो के द्वारा एक्टिविस्ट थे। उन्होंने पश्चिम संस्कृति को विकल्प के रूप में मानते हुए कल्याण व्यवस्था का प्रतिपादन किया। पश्चिमी की संस्कृति व्यक्तिवादी है। पंडित दीनदयाल जी ने व्यक्तिवाद को धकेला नहीं बल्कि कहा कि परिवार, समाज, राष्ट्र, सृष्टि के एकात्म होना चाहिए। कुलपति ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जितनी भी योजनाएं चलाई जा रही हैं चाहे फिर वह जनधन योजना हो, स्किल डेवलपमेंट, मेक इन इंडिया, सब अंत्योदय पर आधारित हैं। मिलकर चलेंगे तो समाज का भला होगा विवि की प्रति कुलपति प्रो वाई विमला ने कहा कि पंडित दीनदयाल जी एकात्म मानव दर्शन पर विश्वास रखते थे। पूरे समाज में सब मिलकर चलेंगे तो समाज का भला होगा। प्यार से रहेंगे तो समाज का उत्थान होगा। इस अवसर पर एक नवीन वैज्ञानिक शोध पत्रिका एकात्ममानव दर्शन त्रिमासिकी के प्रवेश अंक का विमोचन भी किया गया। यह त्रिमासिक शोध पत्रिका तीन भाषाओं और ऑनलाइन रूप में प्रकाशित होती है। इसका मूल हेतु एकात्म मानव दर्शन के उपागम द्वारा ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले शोध एवं लेखन के प्रकाशन का माध्यम प्रदान करना है। शोधपीठ के निदेशक व राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. पवन शर्मा ने सभी स्वागत किया तथा कार्यक्रम की रूपरेखा रखी। प्रो. राजेंद्र पांडे ने सभी का धन्यावाद ज्ञापित किया। इस दौरान कुलानुशासक प्रो. बीरपाल सिंह, प्रो. एके चैबे, प्रो. दिनेश कुमार, प्रो. नवीन चंद्र लोहानी, प्रो. नीलू जैन गुप्ता, प्रो. बिन्दु शर्मा, प्रो. स्नेहलता जायसवाल, डाॅ. विवेक त्यागी, प्रेस प्रवक्ता मितेंद्र गुप्ता, डाॅ. धमेंद्र कुमार, डाॅ. नरेंद्र पांडे, डाॅ. रवि कुमार, संतोष त्यागी आदि मौजूद रहे। हिन्दुस्थान समाचार/कुलदीप-hindusthansamachar.in

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