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जापान की मियावाकी पद्धति से निखरेगी कुशीनगर की हिरण्यवती

- ज्वाइंट मजिस्ट्रेट पूर्ण बोरा की पहल कुशीनगर, 13 जून (हि.स.)। बौद्ध जगत में विशेष आस्था प्राप्त कुशीनगर की हिरण्यवती नदी के किनारों (वेट लैंड) को जापान की मियावाकी पद्धति से रमणीक व हरा भरा बनाया जाएगा। शुरुआती दौर में 1.5 किमी क्षेत्र को विकसित करने की योजना बन रही है। इसके मूर्त रुप लेने के बाद नदी तट पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन जायेगा। नदी किनारे बने करुणासागर घाट, बुद्ध घाट से लेकर देवरिया रोड पर स्थित मुक्तिधाम घाट तक मियावाकी तकनीक के तहत विशेष प्रकार के पौधे रोपित किए जायेंगे। इसके लिए बाहर से विशेषज्ञ बुलाए जायेंगे। यह अभिनव योजना ज्वाइंट मजिस्ट्रेट पूर्ण बोरा ने तैयार की है। इस कार्य को सम्पन्न कराने के लिए उनकी वन विभाग, नगरपालिका, पर्यटन, विकास प्राधिकरण व टेम्पल एरिया मैनेजमेंट कमेटी के अधिकारियों व निजी क्षेत्र के लोगों से बातचीत चल रही है। साल 2020 में असम निवासी आईएएस बोरा की पहली नियुक्ति यहां हुई तो उन्होंने पर्यटन विकास के कार्य को पहली प्राथमिकता बताया था। एक साल की अवधि में हेरिटेज जोन को हरा भरा, स्वच्छ व सुंदर बनाए जाने के उनके प्रयासों के तहत बुद्धघाट नौकायन, उद्यान, पार्क, वाल पेंटिंग, पौधरोपण की मुहिम में जन सामान्य भी सहज रुप से जुड़ता चला जा रहा है। पर्यटकों को चाहिए सुकून ज्वाइंट मजिस्ट्रेट पूर्ण बोरा बताते हैं कि कुशीनगर बौद्ध पर्यटन स्थली है। पर्यटकों को यहां शहरों का कोलाहल नहीं, बल्कि असीम शांति व सुकून चाहिए होता है। हम प्रकृति के माध्यम से ही उन्हें प्रदान कर सकते हैं। हिरण्यवती किनारे मियावाकी पद्धति से घना वन क्षेत्र विकसित करने की योजना इसी मूलभूत सोच को केंद्र में रखकर बनाई गई है। क्या है मियावाकी पद्धति नेचर एक्टिविस्ट रंजन दुबे बताते हैं कि इस तकनीक में महज आधे से एक फीट की दूरी पर पौधे रोपे जाते हैं। इसमें जीव अमृत और गोबर खाद का इस्तेमाल किया जाता है। इस पद्धति में जलवायु अनुकूल पौधे सघन रुप से लगाए जाते हैं। सघनता की वजह से ये पौधे सूर्य की रौशनी को धरती पर आने से रोकते हैं, जिससे धरती पर खरपतवार नहीं उग पाता है और पौधे लम्बाई में बढ़ते हैं। तीन वर्षों के बाद इन पौधों को देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है। पौधे की वृद्धि 10 गुना तेजी से होती है, जिसके परिणामस्वरूप वृक्षारोपण सामान्य स्थिति से 30 गुना अधिक सघन होता है। जंगलों को पारम्परिक विधि से उगने में लगभग 200 से 300 वर्षों का समय लगता है, जबकि मियावाकी पद्धति से उन्हें केवल 20 से 30 वर्षों में ही उगाया जा सकता है। बौद्ध जगत में पूज्यनीय है हिरण्यवती देश विदेश के बौद्ध अनुयाइयों में नदी पूजनीय है। दरअसल बुद्ध ने यहां देह त्याग के पूर्व इसी नदी का जल सेवन किया था। दुनिया भर के बौद्ध पर्यटक यहां आकर नदी का दर्शन करते हैं और जल से आचमन करते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/गोपाल/विद्या कान्त

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