साहित्यकार संजीव की पुस्तक 'वह हंस दिया' का इंडोनेशियाई भाषा में हुआ अनुवाद
साहित्यकार संजीव की पुस्तक 'वह हंस दिया' का इंडोनेशियाई भाषा में हुआ अनुवाद

साहित्यकार संजीव की पुस्तक 'वह हंस दिया' का इंडोनेशियाई भाषा में हुआ अनुवाद

-संजीव की पुस्तक 'वह हंस दिया' का सौ भाषाओं में हो चुका है अनुवाद लखीमपुर-खीरी, 06 जुलाई (हि.स.)। धौरहरा कस्बे के मोहल्ला शुक्ला वार्ड निवासी वरिष्ठ साहित्यकार संजीव जायसवाल 'संजय' की चित्र पुस्तक 'वह हंस दिया' का इन्डोनिशिया भाषा में अनुवाद हुआ है। पुस्तक का अब तक विश्व की 100 भाषाओं में अनुवाद पूरा हो चुका है। संजीव की इस अनोखी उपलब्धि का साहित्यजगत में भरपूर स्वागत किया जा रहा है। यह जानकारी संजीव जयसवाल ने सोमवार की शाम पत्रकारों को दी। धौराहरा कस्बे के एक सभ्रांत परिवार में जन्मे संजीव आरडीएसओ के निदेशक पद से सेवानिवृत हुए पर उनकी साहित्य में रुचि ने उन्हें बैठने नहीं दिया और उन्होंने एक पुस्तक लिख डाली। अपनी पुस्तक के बारे में बताते हुए संजीव जयसवाल ने बताया कि उनकी पुस्तक 'वह हंस दिया' का इंडोनेशिया भाषा में अनुवाद रविवार को हुआ है। इसके साथ ही अब यह पुस्तक सौ भाषाओं में अनुवाद होने का रिकॉर्ड बना चुकी है। संजीव बताते हैं कि उन्होंने यह पुस्तक तीन से चार वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए तैयार की थी और इसमें सिर्फ सकारात्मक बातें कहीं गई हैं। इसीलिए इसे पूरे विश्व में लोकप्रियता मिल रही है। विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं के साथ-साथ इस पुस्तक का जन-जातियों और कबीलों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं तक में अनुवाद हो रहा है। इस पुस्तक की लोकप्रियता और उपयोगिता देखते हुए बिहार सरकार द्वारा इसकी 75 हजार प्रतियां खरीद कर सभी स्कूलों में भेजी जा चुकी हैं। इससे पहले भी संजीव की कई पुस्तकों का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। पर्यावरण पर आधारित उनके लोकप्रिय उपन्यास 'होगी जीत हमारी' को भारत-सरकार द्वारा 15 भाषाओं में प्रकाशित किया गया है। सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए साहित्य रचने वाले संजीव को दिसम्बर 2019 में उप्र हिंदी संस्थान द्वारा दो लाख रुपये का 'बाल साहित्य भारती' सम्मान प्रदान किया गया था। इससे पहले भी हिंदी संस्थान द्वारा उन्हें 'अमृत लाल नागर कथा सम्मान', 'सूर पुरस्कार' और 'सोहन लाल द्वेदी सम्मान' प्रदान किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार का प्रतिष्ठित 'भारतेन्दु हरीश्चन्द्र सम्मान' दो बार मिला है जो कि एक रिकॉर्ड है। संजीव लखनऊ के अनुसंधान संगठन आरडीएसओ निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए हैं और अब पूरी तरह से साहित्य सेवा के लिए समर्पित हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने सोशल मीडिया पर लगातार अपनी कहानियां सुनाई थीं। जिन्हें काफी लोकप्रियता मिली थी। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में संजीव की अब तक 1,050 कहानियां और 55 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दुस्थान समाचार/देवनन्दन/संजय-hindusthansamachar.in

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