दलितों, पिछड़ों और गरीबों को नहीं पढ़ने देना चाहती है सरकार: डॉ अनुराग मिश्र
दलितों, पिछड़ों और गरीबों को नहीं पढ़ने देना चाहती है सरकार: डॉ अनुराग मिश्र जौनपुर, 17 जनवरी (हि.स.)। आम आदमी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ अनुराग मिश्र ने उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 15 जनवरी 2021 को जारी शासनादेश के द्वारा राजकीय महाविद्यालयों को सेल्फ फाइनेंस के अंतर्गत चलाने के निर्णय का जमकर विरोध किया है,और कहा है कि सरकार की ऐसी नीतियों से समाज के दबे, कुचले, दलित, पिछड़े ,गरीब और असहाय परिवारों के बच्चे पढ़ने से वंचित रह जाएंगे। आरोप लगाया है कि प्रदेश सरकार उच्च शिक्षा को पूरी तरह से निजी हाथों में सौंपने जा रही है। डॉ मिश्र ने कहा कि समाज के अंतिम छोर पर खड़ा हर व्यक्ति का आखिरी आसरा यही होता है कि वह अपनी प्रतिभा के बल पर सरकारी स्कूलों में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगा और तमाम कठिनाइयों के बावजूद समाज में अपना स्थान बना लेगा। उक्त बातंे रविवार को हिन्दुस्थान समाचार प्रतिनिधि से बात करते हुए अनुराग मिश्रा ने कही। साथ ही कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 15 जनवरी 2021 को एक शासनादेश जारी कर दलितों, पिछड़ों, गरीबों और असहायों के अंतिम आस पर भी पानी फेर दिया है। प्रदेश सरकार नई शिक्षा नीति का बहाना बनाकर राजकीय महाविद्यालयों को बाजार आधारित सेल्फ फाइनेंस व्यवस्था में चलाने और शिक्षा से अपना हाथ खींचने का मुकम्मल इंतजाम कर दिया है। सरकार ने यह निर्णय लिया है कि आगामी सत्र 2021-22 से प्रदेशभर में निर्माणाधीन 74 राजकीय महाविद्यालय अब संबंधित राज्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से सेल्फ फाइनेंस व्यवस्था के तहत चलाए जाएंगे। सरकारी कागजों में किस तरह से झूठ बोलना है यह भाजपा सरकार बहुत अच्छी तरह से जानती है। निर्माणाधीन की सूची में कई ऐसे राजकीय महाविद्यालयों को शामिल कर दिया गया है, जो पिछले कई वर्षों से संचालित हो रहे हैं जिसमें स्थाई शिक्षक और प्राचार्य हैं। तस्वीर पूरी तरह से साफ है कि प्रदेश की लगभग 95 प्रतिशत उच्च शिक्षा निजी हाथों के माध्यम से चल रही थी। सरकार शेष बची 05ः उच्च शिक्षा जहां प्रदेश के दलित, पिछड़े, गरीब और असहाय परिवारों के प्रतिभावान छात्र पढ़ रहे थे, उसे भी सरकार निजी हाथों में देने की शुरुआत कर दी है और नई शिक्षा नीति तथा तीन हजार छात्रों के क्लस्टर योजना के बहाने प्रथम चरण में राजकीय महाविद्यालयों को, फिर द्वितीय चरण में प्रदेश के एडेड महाविद्यालयों को भी सेल्फ फाइनेंस बनाने का कुचक्र रच रही है। जिन राजकीय महाविद्यालयों में अभी तक छात्र मात्र पन्द्रह सौ से लेकर ढाई हजार रुपया देकर बीए, बीएससी और बीकॉम कर ले रहे थे, अब उन्हें यही डिग्री लेने के लिए 5 हजार से लेकर ₹15 हजार रुपए देने होंगे। इसी प्रकार जो छात्र अभी तक मात्र ढाई हजार से पैंतीस सौ रुपया देकर एमए, एमएससी व एमकाम कर ले रहे थे, अब उन्हें यही डिग्री लेने के लिए 6 हजार से लेकर ₹35 हजार तक देने होंगे। इसी प्रकार जो छात्र अभी तक बीएड राजकीय महाविद्यालयों से मात्र 5000रुपया देकर कर लेते थे ,उन्हें अब ₹51250 देना होगा। इस तरह से व्यवसायिक पाठ्यक्रमों जिसे पढ़कर छात्रों को नौकरी मिलनी है वह तो उत्तर प्रदेश के दलितों, पिछड़ों और गरीब परिवारों के लिए केवल और केवल सपना बनकर रह जाएगा। हिन्दुस्थान समाचार/विश्व प्रकाश-hindusthansamachar.in