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तारों का अध्ययन करने के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षकों को मिली 10.04 लाख की शोध राशि

- 'सम न्यू फैक्ट्स ऑन ग्रेविटेशनल कोलैप्सिग स्टार एंड देयर मैथेमेटिकल एनालाइसिस' शीर्षक पर होगा शोध कार्य - गणित विभाग के प्रो. डॉ सुधीर कुमार श्रीवास्तव और डॉ राजेश कुमार करेंगे शोध गोरखपुर, 13 (हि.स.)। गोरखपुर विश्वविद्यालय के गणित विभाग दो शिक्षकों को तारों के अध्ययन के लिए 10.04 लाख की शोध परियोजना प्रदान की गई। गणित विभाग के प्रो. डॉ सुधीर कुमार श्रीवास्तव और डॉ राजेश कुमार इस शोध कार्य को करेंगे। जिसका शीर्षक 'सम न्यू फैक्ट्स ऑन ग्रेविटेशनल कोलैप्सिग स्टार एंड देयर मैथेमेटिकल एनालाइसिस' है। अंतरिक्ष में टिमटिमाते तारों की दुनिया रहस्य से भरी हुई है। वैज्ञानिक प्रगति के अब तक के चरण में बहुत कुछ जान समझ लेने के बाद भी ब्रह्मांड की बहुत सी जानकारियों से हम अभी भी अनभिज्ञ हैं। अंतरिक्ष अध्ययन आधुनिक विज्ञान का बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। ब्रह्मांडीय अध्ययन का महत्व इसी से समझा जा सकता है। भौतिकी नोबेल प्राइज अधिकांश ब्रह्मांडीय अध्ययन के क्षेत्र में दिया दिया गया है। हाल ही में घोषित वर्ष 2020 का नोबेल प्राइज के किसी तारे में ब्लैक होल के अध्ययन के लिए प्रदान किया गया। इसी क्रम में गोरखपुर विश्वविद्यालय के गणित विभाग के प्रोफेसर्स डा सुधीर कुमार श्रीवास्तव एवं डॉ राजेश कुमार भी इसी क्षेत्र में शोध कार्य कर रहे हैं। अभी हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद, उत्तर प्रदेश द्वारा गणित विभाग के इन दो शिक्षकों को शोध परियोजना दी गयी है। उन्होंने बताया किसी तारे के जीवनचक्र को समझना आज भी हम वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। किसी तारे का जन्म ब्रह्मांड में मौजूद विशालकाय वैश्विक धूलों (नेबुला) के संगठन से होता है। अंतरिक्ष में मौजूद तारें अधिकांशतः हाइड्रोजन, हीलियम से बने विशालकाय पिंड होते हैं और उनकी केंद्र में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। तारों में समय के साथ भौतिक एव्ं ज्यामितीय परिवर्तन होते रहते हैं। इस प्रक्रिया को ग्रेविटेशनल कोलेप्स कहा जाता है। इन प्रक्रियाओं के दौरान तारे व्हाइट होल, न्यूट्रांन स्टार, ब्लैक होल के रूप मे परिवर्तित होते रहते हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक आज तारों में ग्रेविटेशनल कोलेप्स के भौतिक एवं ज्यामिति गुणों का अध्ययन कर रहे हैं। डॉ. राजेश ने बताया कि पिछले तीन सालों से वे तारों की एक विशेष गति का अध्ययन कर रहे हैं और उनके शोध के अनुसार यदि कोई तारा नियत दर से संकुचित(कोलप्से) हो रहा हो तो उसके केन्द्र में एक वैक्युम निर्मित हो जाता है और ऐसे तारें कभी भी ब्लैक होल नहीं बनाते है। उन्होंने बताया कि वर्तमान सैद्धांतिकी भौतिकी के अनुसार इस ब्रह्मांड का लगभग 96 प्रतिशत भाग अदृश्य एवं अज्ञात पदार्थ से निर्मित है जिन्हें हम डार्क एनर्जी, डार्क मैटर, घोस्ट मैटर, इत्यादि के रूप में जानते हैं। ये अज्ञात पदार्थ अदृश्य रूप में प्रकृति में हमारे चारों तरफ विद्यमान है और इनका प्रभाव हम सब के जीवन पर पड़ता रहता है। इसी क्रम में डॉ. राजेश ने बताया की वर्तमान में उनकी टीम किसी तारे के जीवन चक्र पर इन अदृश्य व अज्ञात पदार्थों का क्या प्रभाव होता है, पर शोध कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया की उनके अध्ययन का आधार डिफरेंशियल ज्योमेट्री एवं आइंस्टीन थ्योरी ऑफ ग्रेविटेशन (जनरल रिलेटिविटी सिद्धांत) है। यह सिद्धांत भौतिकी विज्ञान के विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1915 में प्रतिपादित किया था जोकि भौतिकी का सबसे अनोखा एवं उपयोगी सिद्धांत रहा, जिसके प्रयोग से हम ब्रह्मांड के बहुत से रहस्यों को हल करने में सफल रहे हैं। प्रोफेसर श्रीवास्तव ने बताया की इस विषय की उपयोगिता को देखते हुए विभाग में स्नातकोत्तर (गणित) के तृतीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर में जनरल रिलेटिविटी सिद्धांत वैकल्पिक पेपर के रूप में पढ़ाया जाता है। उन्होंने बताया कि यह शोध परियोजना सीएसटी,उत्तर प्रदेश को भेजी गयी थी और मार्च 2021 मे यह मंजूर हो गयी और शोध हेतु 10.04 लाख की राशि भी स्वीकृति हुई। गणित विभाग के इन दो शिक्षकों की इस उपलब्धि पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह, विज्ञान संकायाध्यक्ष् प्रो. शांतनु रस्तोगी, विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विजय वर्मा समेत अन्य शिक्षको ने बधाई एवं शुभकामानयें दी। हिन्दुस्थान समाचार/पुनीत

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