गोरखनाथ ने योग को लोक से जोड़ा: प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित
गोरखनाथ ने योग को लोक से जोड़ा: प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित

गोरखनाथ ने योग को लोक से जोड़ा: प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित

-श्रीकृष्ण प्रताप सिंह स्मृति आनलाइन वेबिनार में सम्मानित की गईं 11 विभूतियां लखनऊ, 10 जुलाई (हि.स.)। सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने शुक्रवार को यहां कहा कि भारतीय साधना में योग व्यक्ति की चेतना के अभ्युत्थान का एक सशक्त माध्यम है। इसमें हठयोग अपेक्षाकृत विरक्ति और वैयक्तिक साधना पर बल देता है। उन्होंने कहा कि गुरु गोरखनाथ ने इस योग को लोक से जोड़ा और उसे उपयोगी बनाया। प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित श्रीकृष्ण प्रताप सिंह स्मृति अध्यात्म चिंतन व्याख्यानमाला के सत्रहवां संस्करण में ‘नाथपंथ का लोक अवदान’ विषय पर आयोजित वेबिनार को आज संबोधित कर रहे थे। इस दौरान लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने योगी बने राजाओं गोपीचन्द व भरथरी की लोक व्याप्ति बताते हुए नाथपंथी योगियों की सुदीर्घ श्रृंखला का उल्लेख किया तथा जंतसारी गीत ‘थार भर मोती लेके निकरी बहिनियां, देखिन गोपीचन्द सुरतिया हो राम’ भी सुनाया। कृष्णप्रताप-विद्याविन्दु लोकहित न्यास, शिव सिंह सरोज स्मारक समिति, अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा धर्म भारती राष्ट्रीय शान्ति विद्यापीठ, लोक संस्कृति शोध संस्थान तथा शांति सेवा एवं संस्कृति जागरूकता मिशन के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत में वरिष्ठ साहित्यकार डा. विद्याविन्दु सिंह ने आयोजन की पृष्ठभूमि और स्वरूप पर प्रकाश डाला। श्री कृष्ण जुगुनू के बीज वक्तव्य से आरम्भ हुए व्याख्यान में डाॅ. कैलाष देवी सिंह, डाॅ. पूर्णिमा पाण्डे, डाॅ. पूरन सहगल, डाॅ .महेन्द्र भानावत डाॅ एस. शेषाारत्नम, डाॅ. मौलि कौषल, डाॅ. दाऊजी गुप्त, के. विक्रम राव आदि ने अपनी बातें रखीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के अध्यक्ष प्रो. सदानन्द प्रसाद गुप्त ने की। संचालन डा. करुणा पाण्डे तथा आभार ज्ञापन विजय त्रिपाठी ने किया। लोकार्पित हुई पांच कृतियां इस अवसर पर नाथपंथ का लोक अवदान विषयक संत विवेक स्मारिका के साथ ही पांच कृतियों का लोकार्पण भी किया गया। इनमें शिव सिंह ‘सरोज’ की कृति आर्ष परम्परा और आधुनिक बोध, डाॅ. विद्या विन्दु सिंह के अवधी कविता संग्रह फुलवा बरन मन सीता, विद्याविन्दु सिंह के साक्षात्कारों पर केन्द्रित पुस्तक संवाद परिक्रमा और नाथ योगियों के जीवन पर केन्द्रित शषि कान्त गोपाल की नाट्य कृति ‘तुम चींटी हम कुंजर’ शामिल रहे। इनका हुआ सम्मान कार्यक्रम के दौरान साहित्य, पत्रकारिता, कला, संगीत, चिकित्सा, पर्यावरण आदि विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाली 11 विभूतियों को सम्मानित भी किया गया। सम्मानित होने वालों में शिव सिंह सरोज स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी सम्पादक मनीषी सम्मान आनन्द वर्द्धन सिंह को, डाॅ. विद्यानिवास मिश्र स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी चिन्तक मनीषी सम्मान सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी प्रवीण चन्द्र शर्मा को, श्रीकृष्ण प्रताप सिंह स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी ऋषि सम्मान कोच्चि के स्वामी डाॅ. सच्चिदानन्द भारती को, दिल बहाल सिंह स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी देशभक्त सम्मान धर्म कुमार सिंह, देवनारायण सिंह स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी साहित्य मनीषी शिक्षक सम्मान आजमगढ़ के डाॅ. कन्हैया सिंह को, श्रीमाँ प्रभु देवी स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी लोक संगीत मनीषी सम्मान वरिष्ठ संगीतज्ञ केवल कुमार को, श्रीमाँ प्राण देवी स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी लोक कला मनीषी सम्मान श्रीमती कुसुम वर्मा को, प्रो. शिवमंगल सिंह स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी पर्यावरण संरक्षक सम्मान गौरव मिश्र को, डाॅ. कुँवर यशवीर सिंह स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी स्वास्थ्य सेवा सम्मान हरदोई के डाॅ. सत्येन्द्र कुमार सिंह को, राजेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव ‘भइयाजी’ स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी समाजसेवी सम्मान डाॅ. सुशील चन्द्र त्रिवेदी ‘मधुपेश’ को तथा रामकृष्ण खत्री स्मृति श्रीवत्स कर्मयोगी शहीद स्मृति संरक्षक सम्मान उदय खत्री को प्रदान किया गया। हिन्दुस्थान समाचार/ पीएन द्विवेदी/राजेश-hindusthansamachar.in

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