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रूढ़िवादी छवि से ही पनपती है लैंगिक असमानता: प्रो.भारती

-वैदिक काल से ही महिलाएं सशक्त:प्रो.शिरीन मूसवीं जौनपुर, 17 मार्च (हि.स.)। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रायोजित एवं व्यवसाय प्रबंधन विभाग, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय और सेंटर फॉर एकेडमिक लीडरशिप एंड एजुकेशन मैनेजमेंट,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के द्वारा सात दिवसीय ऑनलाइन एकेडमिक नेतृत्व प्रशिक्षण कोर्स के दूसरे दिन बुधवार को लैंगिक रूढ़िबद्ध धारण छवि एवं भारतीय महिलाओं के इतिहास पर चर्चा हुई। पहले सत्र में मद्रास विश्वविद्यालय की अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर भारती हरिशंकर ने कहा कि महिलाओं की रूढ़िबद्ध धारणा से उनकी नकारात्मक छवि बनती है। जिससे लैंगिक असमानता पैदा होती है। यह रूढ़िबद्ध धारण छवि को कुछ समय बाद सामान्य छवि के रूप में प्रक्षेपण किया जाता है और महिलाएं हमेशा इसी रूढ़िबद्ध धारण छवि में कैद हो जाती हैं। प्रोफेसर भारती ने उदाहरण के साथ बताया कि गृहणी के कामकाज का कोई आर्थिक मूल्य नहीं दिया जाता है। जातिवाद, भाषावाद, शहरी-ग्रामीण भिन्नता आदि भी महिलाओं के रूढ़िबद्ध धारण छवि को प्रोत्साहित करती हैं। वित्तीय सहायता, कौशल विकास प्रशिक्षण, कानूनी प्रावधान आदि से महिलाओं को रूढ़िबद्ध धारण छवि से मुक्ति मिल सकती है एवं लैंगिक समानता की राह में एक सफल प्रयास होगा। दूसरे सत्र में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की इतिहास की प्रोफेसर शिरीन मूसवीं ने भारतीय महिलाओं के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत में वैदिककाल से हीं महिलाएं सशक्त थी। भारत में जहां दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती को पूजा जाता है, वहीं इतिहास ने रानी लक्ष्मी बाई, रजिया सुल्तान, मदर टेरेसा जैसे शख्शियत को भी नवाज़ा है। अगर समाज की सोच महिलाओं के प्रति सकारात्मक हो तो, हम हर घर से इंद्रा नूयी, किरण मजूमदार शा, सानिया मिर्ज़ा जैसे बेटियां को समाज में ला सकते हैं, जिससे लैंगिक समानता हासिल करने में मदद मिलेगी। संचालन सैय्यद मजहर जैदी एवं कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. मुराद अली ने धन्यवाद ज्ञापन किया। हिन्दुस्थान समाचार/विश्व प्रकाश/संजय

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