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विकास भवन में 'बिजूका' से कम नहीं है अग्निशमन यंत्र, अनहोनी को लेकर बेफिक्र डीडीओ

अजय सिंह — करीब आठ साल पहले पूरे परिसर में सिर्फ लगे थे आठ अग्निशमन यंत्र, रिफलिंग पर नहीं है कोई जवाब — डीडीओ के मुताबिक अग्निशमन यंत्र का विकास भवन में नहीं है कोई बजट कानपुर, 30 मार्च (हि.स.)। फसलों की रखवाली करने के लिए किसानों द्वारा खेत में लगाये गये बिजूका (मानवरुपी पुतला) को तो शायद आपने देखा होगा, लेकिन विकास भवन में लगे अग्निशमन यंत्र किसी बिजूका से कम नहीं है। यह यंत्र बिजूका इसलिए बन गये कि विकास भवन परिसर की जिम्मेदारी संभालने वाले जिला विकास अधिकारी (डीडीओ) बेफिक्र हैं। पूरे परिसर में सिर्फ आठ अग्निशमन यंत्र लगे हैं और इनमें कब रिफलिंग हुई किसी को पता नहीं है। ऐसे में बढ़ रही गर्मी के दौरान अगर कोई अनहोनी हो जाए तो अधिकारी सिर्फ जांच रिपोर्ट के अलावा शायद ही कोई जवाब दे सकें। हालांकि ईश्वर ऐसा न करें पर जिस प्रकार से जिम्मेदार बेफिक्र हैं उससे यह समझा जा सकता है कि विकास भवन में बैठने वाले करीब दो दर्जन से अधिक राजपत्रित अधिकारियों में दूरदर्शिता का पूर्णतया आभाव है। या यूं कहें कि लापरवाही की सारी सीमाओं को पार कर चुके हैं। कानपुर परिक्षेत्र के प्रमुख कॉर्डियोलॉजी अस्पतालों में से एक रावतपुर स्थित लक्ष्मीपत सिंघानिया हृदय रोग संस्थान में रविवार को भीषण आग लग गई थी। हादसे का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संज्ञान लिया तो लखनऊ से डीजी फायर से लेकर प्रमुख सचिव चिकित्सा भागे—भागे कॉर्डियोलॉजी पहुंचे और कहा कि कहीं न कहीं अस्पताल की लापरवाही सामने आ रही है। पूरे मामले की जांच कर जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। जांच रिपोर्ट अभी आई ही नहीं है कि मंगलवार को हृदय रोग संस्थान में दो बार फिर आग लग गई। मौसम में हो रहे बदलाव से आग की घटनाएं बढ़ना तो लाजिमी है, पर सरकारी संस्थानों में आग बुझाने के क्या इंतजाम है और फायर विभाग के मानकों पर संस्थान खरा उतर रहे हैं कि नहीं। इसको लेकर मंगलवार को जनपद की सभी विकास परक योजनाओं से संबंधित भवन रावतपुर स्थित विकास भवन को परखा गया। यहां पर आग से बचने का कोई भी ठोस इंतजाम नहीं दिखा। सबसे बड़ी ताज्जुब की बात यह सामने आई कि 19 विभागों वाले विकास भवन परिसर में सिर्फ आठ अग्निशमन के यंत्र लगे हैं, वह भी पांच किग्रा के और इनकी कब से रिफलिंग नहीं हुई किसी को पता नहीं है। इससे आमजनमानस खुद तय करें कि जिम्मेदार अधिकारियों को जिम्मेदारी के लिए कितने अंक देना चाहिये। डीडीओ के पास है विकास भवन की जिम्मेदारी विकास भवन परिसर में फायर के मानकों की अनदेखी को लेकर जब सीडीओ के वैयक्तिक सहायक कलीम हैदर रिजवी से बात की गयी तो उन्होंने कहा इस पर डीडीओ ही जवाब देंगे, क्योंकि विकास भवन परिसर की जिम्मेदारी उन्ही के पास है। वहीं जिला पंचायत राज अधिकारी कार्यालय में कार्यरत संदीप निगम ने भी यही बात कही कि अग्निशमन यंत्रों को लेकर डीडीओ ही कुछ बता सकते हैं। अग्निशमन यंत्र का नहीं है कोई बजट विकास भवन परिसर की जिम्मेदारी रखने वाले जिला विकास अधिकारी जीपी गौतम से जब इस बाबत बात की गयी तो उन्होंने कहा कि अग्निशमन यंत्र के लिए विभाग के पास कोई बजट नहीं है। जब पूछा गया कि वर्तमान में जो आठ अग्निशमन यंत्र लगे हैं इन पर कब से रिफलिंग नहीं हुई तो कहा कि दो साल से मैं इस पद पर हूं, मेरे सामने तो एक बार भी नहीं रिफलिंग नहीं हुई और शायद जहां तक मेरी जानकारी है तो जब से यह लगे तब से कोई रिफलिंग नहीं हुई है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि विकास भवन में किस कदर लापरवाही सुरक्षा को लेकर की जा रही है। हालांकि जब बार—बार यह पूछा गया कि ऐसे कैसे हो सकता है कि आपातकाल के लिए कोई बजट न हो तो इस पर कहा कि अपने विभाग के आलाधिकारियों को बजट के लिए लखनऊ पत्र भेजा जाएगा। 2012 में लगे थे अग्निशमन यंत्र जिला विकास अधिकारी भले ही यह कह रहे हों कि मुझे जानकारी नहीं कि कब अग्निशमन यंत्र लगे है, पर अग्निशमन यंत्र में जो तिथि लिखी है उसके अनुसार 2012 में आठ अग्निशमन यंत्र विकास भवन में लगे थे। जबकि नियमत: हर साल अग्निशमन यंत्र की रिफलिंग होनी चाहिये और विकास भवन का जितना बड़ा परिसर है उसके अनुसार आठ अग्निशमन यंत्र नाकाफी हैं। मनरेगा में तो एक भी नहीं है अग्निशमन यंत्र विकास भवन की मुख्य बिल्डिंग के बाहर मनरेगा का कार्यालय बना हुआ है और यहां पर तो एक भी अग्निशमन यंत्र नहीं लगा है। मनरेगा का कार्यालय करीब एक दशक पहले बना था। इससे साफ होता है कि विकास भवन में जो अग्निशमन यंत्र लगे हैं वह एक दशक से पहले के हैं। यही नहीं आग बुझाने के लिए जो बाल्टियां रखी हैं वह नीचे से पूरी तरह से खोखली हैं, जिससे मौरंग भरे होने का सवाल ही नहीं है। 19 विभागों के हैं कार्यालय विकास भवन परिसर में 19 विभागों के कार्यालय हैं और पूरे जनपद की योजनाओं से सबंधित दस्तावेज रखे हैं। इतने महत्वपूर्ण परिसर में अग्निशमन यंत्रों को लेकर हो रही लापरवाही किसी अचरज से कम नहीं दिखती। यहां पर मुख्य विकास अधिकारी सहित करीब दो दर्जन से अधिक राजपत्रित अधिकारी तैनात हैं। इसके अलावा करीब पौने दो सौ कर्मचारी भी कार्यरत हैं और रोजाना सैकड़ों लोग अपनी शिकायतें लेकर आते हैं। वाहनों की तो लंबी कतारें लगती हैं और सभी में ज्वलनशील पदार्थ भरा रहता है। आईजी फायर ने काटा फोन विकास भवन में अग्निशमन यंत्रों को लेकर जब जिला अग्निशमन अधिकारी एमपी सिंह को फोन किया गया तो उनका फोन ही नहीं उठा। करीब 10 बार फोन किया गया पर लोगों के मुताबिक सरकारी अधिकारियों का सीयूजी नंबर उठता ही नहीं है, इस पर भी मुहर लग गई। इसके बाद आईजी फायर को फोन किया गया तो पहले तो पूरी बात सुनते रहे जब जवाब देने का नंबर आया तो कहा कि फायर डीजी इसका जवाब देगें और फोन काट दिया। डीजी फायर आर.के. विश्वकर्मा से बात करने का प्रयास किया गया तो उनका फोन किसी कर्मचारी ने उठाकर यह कहते हुए काट दिया कि साहब अभी बाहर निकले हैं। यही हाल मुख्य विकास अधिकारी डा. महेन्द्र कुमार का रहा और उनका भी फोन किसी कर्मचारी ने उठाया और यह कहते हुए फोन काट दिया कि साहब अभी बात नहीं कर पाएंगे। हिन्दुस्थान समाचार/

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