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सीएए विरोध व किसान आंदोलन के पीछे चीन की भूमिका - पूर्व राॅ अधिकारी

मेरठ, 16 जून (हि.स.)। रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (राॅ) के पूर्व अधिकारी एनके सूद ने बुधवार को कहा कि देश में सीएए के विरोध से लेकर किसान आंदोलन के पीछे चीन की भूमिका थी। यह बातें उन्होंने गलवान विजय दिवस के अवसर पर भारत-तिब्बत समन्वय संघ (बीटीएसएस) द्वारा आयोजित वेबिनार में कही। उन्होंने कहा कि चीन की साजिश को समझने की आवश्यकता है। तिब्बत ही एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर हम चीन को हरा सकते हैं। अब सरकार के साथ-साथ यहां की जनता को भी आक्रामक होने की जरूरत है। कर्नल डीआर सेमवाल ने कहा कि सेना को सेना की तरह रहने दें, महात्मा गांधी न बनाएं। बिना हथियार के सेना क्या काम करेगी। पिछली सरकारों ने चीन के साथ तिब्बत सीमा पर बिना हथियार के रहने का जो एग्रीमेंट 1993 व 1996 में किया है, आज उसको खत्म करने का समय है। इसी गलत एग्रीमेंट के कारण पिछले साल गलवान में हमने 20 जवानों को खोया है। इसको नहीं बदला गया तो वह दिन दूर नहीं जब गलवान जैसी घटना की पुनरावृति हो जाये। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार से अपेक्षा है कि वह स्कूली पाठ्यक्रमों में बांग्लादेश विजय, कारगिल विजय के साथ गलवान विजय दिवस को भी शामिल करें। ताकि आने वाली पीढ़ी अपने देश और सेना के शौर्य के बारे में विस्तार से जान सके। उन्होंने कहा कि अब भारत की सेना मजबूत स्थिति में है। आज भारतीय सेना घाव लेने के बजाय घाव देने को तैयार रहती है। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते ही चीन ने तिब्बत सहित भारत की बहुत सारी जमीन पर कब्जा किया, लेकिन आज राजनीतिक परिदृश्य बदल रहा है। आज वैश्विक स्तर पर भारत जितना मजबूत होकर उभरा है उसके चलते आज चीन भारत पर सीधे आक्रमण करने की स्थिति में नहीं है। मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) संजय सोई ने कहा कि गलवान की घटना के बाद हमारे देश में जिस प्रकार सभी लोग शहीदों के साथ खड़े हुए, उससे चीन घबरा गया और उसी के चलते वह अपने सैनिकों की संख्या बताने को तैयार नहीं हुआ। सच यह है कि चीन अपने सैनिकों का भी कभी सम्मान नहीं करता। शिक्षाविद प्रो मनोज दीक्षित ने कहा कि तिब्बत पर आज वैश्विक जनमत व जनदबाव बनाने की आवश्यकता है। जितना जल्दी बना ले जाएंगे, तिब्बत उतनी जल्दी आजाद होगा। उन्होंने कहा कि इस संघ की स्थापना ही तिब्बत को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नैरेटिव बनाने को लेकर हुई है, क्योंकि हम मानते हैं कि तिब्बत वास्तव में हमारी सांस्कृतिक पहचान का एक हिस्सा है। इंडो-तिब्बत कोऑर्डिनेशन ऑफिस (इटको) के वरिष्ठ अधिकारी जिग्मे सुल्ट्रीम ने अपने संस्मरणों के साथ कहा कि भारत में रहते हुए 60 साल हो गए। आज तिब्बत और भारत की संस्कृति में कोई अंतर नहीं नजर आता। उन्होंने कहा कि 2008 से लेकर अभी तक बड़ी मात्रा में तिब्बत में आत्मदाह करने वालों की संख्या क्यों बढ़ रही है, क्योंकि चीन वहां की धर्म-संस्कृति से उनको वंचित कर रहा है। हिन्दुस्थान समाचार/कुलदीप/विद्या कान्त

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