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नव संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों मंगल, होंगे कई परिवर्तन: स्वामी नरेन्द्रानंद

वाराणसी, 02 अप्रैल (हि.स.)। सनातनी नव वर्ष (नव संवत्सर) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 13 अप्रैल से शुरू हो रहा है। सनातनी नववर्ष के राजा और मंत्री दोनों मंगल ग्रह है। मंगल के राजा होने से देश में कई परिवर्तन भी देखने को मिलेगा। ज्योतिषविदों का मानना है कि देश में रोजगार के अच्छे अवसर युवाओं के सामने आयेंगे। लोगों के जीवन शैली में फिर बदलाव आयेगा। अस्सी डुमरावबाग कालोनी स्थित काशी सुमेरूपीठ के पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती ने बताया कि चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि प्रतिपदा को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हमारा सनातनी नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही आरंभ होता है। इस दिन ग्रह और नक्षत्र में भी बड़ा परिवर्तन होता है। चैत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के समय जो वार होता है वह ही वर्ष में संवत्सर का राजा कहा जाता है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते है। इस दिन से ही पूरे वर्ष भर के अनुष्ठानों, पर्वों आदि के शुभ मुहूर्त तय किए जाते हैं। चैत्र माह में ही प्रकृति जड़ जीव पेड़-पोधों में भी बदलाव होता है। पेड़ों में नये पत्ते,फूल और कली खिलते है। पूरे वातावरण मे एक नया उल्लास और उमंग होता है जो मन को आह्लादित करता है। इन दिनों में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है। स्वामी नरेन्द्रानंद ने बताया कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। चैत्र नवरात्र की शुरूआत भी इसी दिन से होती है। पूरे 09 दिन तक सनातनी गृहस्थ के साथ उपवास रख आदि शक्ति की आराधना करते है। उन्होंने बताया कि चैत्र माह में किसानों की पकी फसल घर आती है। नई फसल देख किसान में आत्मबल आ जाता हैं। स्वामी नरेन्द्रानंद ने सनातनी समाज से आह्वान किया कि नवसंवत्सर चैत्र नवरात्र का शुद्ध मन से उपवास रख स्वागत करे,कल्याण होगा। -कैसे हुई विक्रम संवत की शुरुआत विक्रम संवत् का आरंभ 57 ई. पू. में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ था। उस समय राजा विक्रमादित्य के शासन से पहले उज्जैन पर शक राज्य करते थे। शक बेहद क्रूर तरीके से प्रजा को दंडित करते थें । विक्रमादित्य ने उज्जैन राज्य को शकों के अत्याचार से मुक्ति दिलाई। तब राजा विक्रमादित्य के विजय पर विक्रम संवत पंचांग का निर्माण किया गया था। -चैत्र नवरात्र इस बार पूरे नौ दिन का चैत्र नवरात्र इस बार पूरे नौ दिन का है। इसकी शुरुआत 13 अप्रैल से हो रही है। ज्योतिषविद मनोज उपाध्याय ने बताया कि चैत्र नवरात्र में कलश स्थापना प्रात: काल 5:28 से लेकर दिन में 8:46 बजे तक है। अभिजीत मुहूर्त का समय 11:36 से 12:24 तक रहेगा। इस समय पर श्रद्धालु आदि शक्ति के आराधना के लिए कलश स्थापित कर सकते है। उन्होंने बताया कि नवरात्र में आदिशक्ति के गौरी स्वरूप की आराधना होती है। माता रानी का आगमन अश्व पर हो रहा है। प्रस्थान मानव के कंधे से होगा। आदि शक्ति का घोड़े पर आना देश में विषम परिस्थितियों का संकेत है। कोरोना का उफान भी ये संकेत दे रहा है। उन्होंने बताया कि माता का जाना राष्ट्र के लिए सुख समृद्धि देने वाला है। चैत्र नवरात्र में गौरी स्वरूप की आराधना से कई पुण्य फल प्राप्त होता है। 21 अप्रैल को महानवमी के साथ रामनवमी भी मनाई जाएगी। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/संजय

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