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बिरहा, नौटंकी विधा का आविष्कारक है अवधी : प्रो. सदानंद गुप्त

लखनऊ, 10 मार्च (हि.स.)। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो.सदानन्द गुप्त ने बुधवार को एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्राचीन काल में अवधी साहित्य केवल पद्द के रूप में फला फूला है। अवधी लोक गायकी भी प्राचीन काल से ही चली आ रही है। अवधी कलाकारों को बिरहा, नौटंकी नाच, अहिरवा नृत्य, कंहरवा नृत्य, चमरवा नृत्य, कजरी आदि नाट्य विधाओं का आविष्कारक है तथा इसमें इन्हें अभी भी महारत हासिल है। वे अन्तरराष्ट्रीय भाषा संस्थान सूरत और हिंदी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित ‘भाखा महोत्सव-2021’ को सम्बोधित करते हुए कही। प्रो.सदानंद प्रसाद गुप्त ने कहा कि अवधी की गारी तो पूरे अवध में प्रसिद्ध है, इसे शादी-ब्याह में महिलाओं द्वारा गाया जाता है। विश्व भर में 6 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा अवधी को अभी तक भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह नहीं मिल सकी है। इसी प्रकार फिजी में अवधी भाषा को फिजी हिंदी के रूप में प्रस्तुत करके भारत सरकार ने फिजी में भी अवधी के अस्तित्व को मानने से इंकार कर दिया है। किन्तु इन्हीं सब के बीच नेपाल ने प्रांत संख्या 05 में अवधी को आधिकारिक भाषा का दर्जा प्रदान करके अवधी साहित्यकारों की कलम में जान फूंकने का कार्य किया है। इससे भारत के अवधी भाषी भी काफी उत्साहित हैं। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने अवधी के विकास की विभिन्न रूप-रेखाओं की चर्चा की. साहित्य और लोक जीवन परस्पर सापेक्ष है। लोक का ध्वन्यार्थ नितांत व्यापक है। साहित्य सर्जक कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक आदि विविध विधाओं में सृजन करते हुए लोक से असंपृक्त नहीं रह सकता। रचनाकार लोकानुभवों और जीवनानुभवों को रचना का प्रतिपाद्य बनाता है और साहित्य में लोक रचनाकार की समग्र दृष्टि बन कर अभिव्यंजित होता है। साहित्य मूलतः भाषा के माध्यम से जीवन की अभिव्यक्ति है। विशिष्ट अतिथि पद्मश्री प्रो. बृजेश शुक्ल ने कहा कि अवधी का प्राचीन साहित्य बड़ा संपन्न है। इसमें भक्ति काव्य और प्रेमाख्यान काव्य दोनों का विकास हुआ। अवधी सिर्फ एक बोली नहीं, अपितु भारत की सांस्कृतिक धरोहर भी है। इस बोली भाषा का अपना एक अलग सामाजिक सरोकार है। ‘भाखा महोत्सव -2021’ के अवसर पर अवधी के विकास, परिवर्धन और संवर्धन के लिए कार्य करने वाले अवधि सेवियों को सम्मानित किया गया. सम्मनित होने वाले प्रमुख नामों में डॉ.राम बहादुर मिश्र, सतीश आर्य, डॉ. विनय दास, प्रोफेसर पवन अग्रवाल और प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह है। अवधी और बुन्देली लोक साहित्य और संस्कृति के लिए व्यापक शोध और कार्य करने हिंदी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के प्रो. पवन अग्रवाल को महाकवि जगनिक सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान के साथ सतीश आर्य कृत महुआरी, अजय प्रधान कृत ठकुराईन कै समोसा और नंदीलाल निराश कृत आंगन की दीवारों से पुस्तक का भी विमोचन हुआ। हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र

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