पांच अगस्त को मुख्य चांद्रमासानुसार श्रावण होने से भूमि पूजन मुहूर्त में कोई दोष नहीं : गणेश्वर शास्त्री
पांच अगस्त को मुख्य चांद्रमासानुसार श्रावण होने से भूमि पूजन मुहूर्त में कोई दोष नहीं : गणेश्वर शास्त्री

पांच अगस्त को मुख्य चांद्रमासानुसार श्रावण होने से भूमि पूजन मुहूर्त में कोई दोष नहीं : गणेश्वर शास्त्री

-32 सेकेंड के समय माहेन्द्र मुहूर्त और अमृत मुहूर्त में मंदिर निर्माण कार्य वाराणसी, 25 जुलाई (हि.स.)। अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन मुहूर्त को 'अशुभ' बताने वाले संतों और ज्योतिषियों के दावों को भूमि पूजन मुहूर्त निकालने वाले काशी के दिग्गज विद्यान आचार्य पण्डित गणेश्वर शास्त्री द्रविड ने खारिज करते हुए कहा कि सवाल उठाने वाले महर्षि वेद व्यास से बड़े नहीं है। महर्षि वेद व्यास का लेखन यदि मान्य है तो पांच अगस्त को श्रावण मास मान्य करना ही पड़ेगा। आचार्य द्रविण ने शनिवार को मुहूर्त पर सवाल उठाने वालों और शास्त्रार्थ की चुनौती देने वाले संतों को बिंदूवार जबाब दिया है। आचार्य द्रविण ने 'हिन्दुस्थान समाचार' से बातचीत में सारी आशंकाओं को सिरे से खारिज कर दो टूक कहा कि पांच अगस्त को मुख्य चांद्रमासानुसार श्रावण होने से भूमि पूजन मुहूर्त में कोई दोष नहीं है। 32 सेकेंड के समय माहेन्द्र मुहूर्त और अमृत मुहूर्त में भूमि पूजन कर मंदिर निर्माण कार्य आरम्भ होने से सबकी रक्षा होगी। पांच अगस्त को महर्षि वेद व्यास जी के मत से श्रावण है। ऐसे उत्तम मुहूर्त में मंदिर निर्माण का कार्य शुरू होने पर कार्य शीघ्रातिशीघ्र निर्विध्न एवं यशस्वी रूप से सम्पन्न होगा। उन्होंने कहा कि लोगों का सवाल है कि तुला लग्न चर लग्न है, इसमें मंदिर निर्माण के लिए मुहूर्त कैसे दिया। जबाब है पहले तो दिन शुद्धि नहीं मिलती, लग्न शुद्धि देखकर मुहूर्त निकालना कठिन कार्य है। इसमें कई चीजों पर विचार करना पड़ता है। ज्योतिष परम्परा में स्थिर लग्न में मुहूर्त न मिलने पर संकटकाल में चर लग्न को लेने की परिस्थिति आने पर नवांश स्थिर लेते हैं। आचार्य द्रविण ने शास्त्रों और पुराणों का संदर्भ देकर कहा कि ज्योतिषियों के व्यवहारानुसार मुहूर्त दिया गया है। राज मार्तण्ड में कहर है-'' निदिंता अपि शुभांशसमेतास्तौलिमेषमकरा:सकुलीरा:। कर्तृभोपचयगाश्च विलग्ने राशय:शुभफलाय भवन्ति।। उन्होंने पियूषधारा का उल्लेख कर कहा कि गृह प्रवेश में वर्णित नियम '' एकत्र निर्णीत:शास्त्रार्थ:अन्यत्र यूज्यते'' इस न्याय से भी मंदिर निर्माणारम्भ में लागू होता है। इसी लिए पांच अगस्त को तुला लग्न (चरलग्न) में वृषनवांश (स्थिरवांश) में मुहूर्त दिया गया है। ऐसे दिया मुहर्त आचार्य पण्डित गणेश्वर शास्त्री द्रविड ने बताया कि चांद्रमास में पूर्णिमांत मास एकेदेशी है। अमांत मास सार्वदेशिक है। अतएवं पंचागों में पूर्णिमा के दिन 15 तथा अमावस्या के दिन 30 लिखा जाता है। 30 मास के समाप्ति का द्योतक है। तदनुसार अमांत श्रावण को लेकर पांच अगस्त 2020 को मुहूर्त दिया गया। उस दिन बुधवार है। अत: मुहूर्त अभिजीत के बाद दिया गया। आचार्य द्रविण ने बताया कि तुला लग्न गुणवत्तर होने से उसमें वृषनवांश में मुहूर्त राजमार्तण्ड में वर्णित प्रकार से दिया गया। 12 घंटा 34 मिनट के पूर्व अभिजीत समाप्त होता है। उसके बाद वृषनवांश में मुहूर्त दिया गया है। वृषनवांश का प्रारम्भ 12 बजकर 35 मिनट 20 सेकेंड के बाद होता है। इसी वृषनवांश में बीच में 32 सेकेंड का मुहूर्त खास महत्व रखता है। जिसमें लग्न होरा, देष्क्राण, चर्तुथांश, सप्तमांश, नवमांश, दशमांश, द्यादशांश, षोडशांश, विंशांश, चर्तुविशांश, सप्तविशांश, त्रिशांश, चत्वारिंशांश एवं षष्टयंश ये 15 वर्ग शुभ मिल रहे है। कुल 16 वर्ग होते है। जिसमें 1 पंच्चचत्वारिशांश को छोड़कर सभी वर्ग शुभ मिलते है। अतएवं 32 सेकेण्ड का आदर करके मुहूर्त दिया गया है। उन्होंने कहा कि अपना अनुभव है कि 16 वर्गो में से 15 वर्ग शुभ सहसा नही मिलते। ये तो रामजी के कृपा से ही मिले है। माहेन्द्र मुहूर्त होने से रामजी की जय होगी आचार्य द्रविड ने बताया कि भूमि पूजन 32 सेकेंड के समय माहेन्द्र मुहूर्त होने से रामजी की जय होगी। कार्यारम्भ के समय अमृत मुहूर्त होने से सबकी रक्षा होगी। अष्टवर्गानुसार कुंभ का चंद्र 5 रेखा से युक्त होने के कारण मंदिर निर्माण के लिए शुभ है। इसके बावजूद ऐसे उत्तम मुहूर्त को न समझ कुछ लोग भ्रम फैला रहे है। शास्त्रार्थ में सर्वमान्य अध्यक्ष बताने वाले बताये कि कौन सर्वमान्य है अयोध्या में भव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन मुहूर्त को लेकर शास्त्रार्थ की चुनौती में जगह, व्यवस्था देने और अध्यक्षता की बात करने वालों पर तंज कसते हुए आचार्य द्रविड ने कहा कि शास्त्रार्थ में सर्वमान्य विद्यान के अध्यक्षता करने की बात सामने आई है। जिन्होंने ये बात उठाई है, वे ही बताये कि कौन सर्वमान्य विद्यान है। नाम के आने पर वे यदि वस्तुत: सर्वमान्य होंगे तो उनकी अध्यक्षता मान्य है। मैने सर्वमान्य भगवान वेदव्यास को मान मुहूर्त दिया है। जिस पर संत निष्पक्ष होकर विचार कर सकते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दीपक-hindusthansamachar.in

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