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बाबा विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मामले में न्यायालय के फैसले से संतों में हर्ष

वाराणसी,08 अप्रैल (हि.स.)। स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) और ज्ञानवापी मामले में गुरुवार को सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) आशुतोष तिवारी की अदालत के फैसले का काशी में संतों ने स्वागत किया है। गुरुवार की शाम न्यायालय के फैसले पर हर्ष जताते हुए अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने उम्मीद जताई कि अब काशी विश्वनाथ के साथ मथुरा में श्रीकृष्ण भगवान जन्मस्थान के मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा। उन्होंने वीडियो संदेश में कहा कि मुकदमें में जो बाबा विश्वनाथ का स्थान है।आदिविश्वेश्वर महादेव जिन्हें अविमुक्त काशी विश्वनाथ कहते है। इस संदर्भ में न्यायालय के द्यारा फैसला इसका एक सर्वे हो। इस सर्वे का क्या स्वरूप है कौन सा धार्मिक स्वरूप है। न्यायालय द्यारा पुरातात्विक सर्वे कराने और इसका खर्च राज्य सरकार वहन करे ऐसा फैसला दिया गया है। संत समाज इस फैसले का स्वागत करता है। बताते चलें, काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। माना जाता है कि इस मंदिर में आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास ने भी काशी विश्वनाथ के दर्शन किए थे। काशी विश्वनाथ के वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने यहां सोने के द्वार बनवाए थे। ऐसी पवित्र नगरी को मुगल शासक औरंगजेब की धर्मांधता का शिकार बनना पड़ा। उसने हिंदू धर्म के अन्य पवित्र स्थानों की भाँति काशी के भी प्राचीन मंदिरों को विध्वस्त करा दिया। सनातन धर्म में माना जाता है कि मूल काशी विश्वनाथ के मंदिर को तुड़वाकर उसके स्थान पर उसने एक बड़ी मसजिद बनवाई जो आज भी वर्तमान है। आदि विश्वेश्वर मन्दिर के मूल अहाते में देवी श्रृंगार गौरी की पूजा निरंतर होने के भी प्रमाण पुराण बताते हैं। औरंगजेब ने श्रृंगार गौरी मंदिर के एक बड़े हिस्से को भी ध्वस्त करा दिया था। मान्यता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के चारों ओर पांच कोस के दायरे में काशी अविमुक्त क्षेत्र है,जहां की अधिष्ठात्री देवी श्रृंगार गौरी स्वयंभू हैं। स्कन्द पुराण और शिव महापुराण में इसका वर्णन है। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर

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