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औरैया : शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है टीबी का हमला : डॉ. एके राय

- बिगड़ी हुयी टीबी के लिए बीडाक्वीलिन और डेलामानिड दवा सहायक टीबी के उपचार में हीलाहवाली खतरनाक हो सकती है - विश्व क्षय रोग दिवस पर बुधवार को होगी गोष्ठी औरैया, 23 मार्च (हि. स.)। विश्व क्षय रोग दिवस के अवसर पर जिला क्षयरोग अधिकारी डॉ. एके राय ने बताया की टीबी/क्षय रोग एक संक्रामक बीमारी है जो माइक्रो बैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु से होता है। कहा कि जागरूकता के अभाव के कारण टीबी मरीजों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हालांकि क्षय रोग राष्ट्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत टीबी के मरीजों के मृत्य दर में कमी आई है तथा आधुनिक जांच प्रणाली सिबिनेट/जिन एक्सपर्ट द्वारा क्षय रोगी साथ ही एमडीआर टीबी रोगियों की पकड़ बहुत जल्द एवं आसानी से हो पा रही है। डॉ. राय ने बताया कि बिगड़ी हुयी टीबी के लिए बीडाक्वीलिन और डेलामानिड दवा सहायक है। उन्होंने बताया कि विश्व क्षय रोग दिवस के अवसर बुधवार को क्षयरोग विभाग द्वारा एक गोष्ठी का आयोजन किया जायेगा। सही इलाज के अभाव में बदत्तर हो सकती है स्थिति डॉ. राय ने बताया कि टीबी आमतौर पर फेफड़ों से शुरू होती है। लेकिन यह ब्रेन, हड्डी, लिम्फ नोड (गांठ), पेट, जननांग, गुर्दे, हृदय एवं फेफड़े की झिल्ली, त्वचा और आंख आदि शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। जिन्हें एक्स्ट्रा-पल्मोनरी टीबी कहते है। यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो जाती है यदि मरीज इसका पूरी अवधि का सही इलाज लेता है। सही इलाज न होने की दशा में रोग बद से बदतर होकर भयावह रूप ले लेता है। इसके बाद एमडीआर यानि मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंस एवम एक्सडीआर यानि एक्सटेंसिव-ड्रग रेजिस्टेंस टीबी यानि दूसरे शब्दों में हम लोग इसे बिगड़ी हुई टीबी कह सकते है हो जाता है इसका इलाज बहुत ही जटिल एवं लंबी अवधि का हो जाता है। देश में प्रतिदिन 1200 मरीजों की मौत विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकड़ों के अनुसार अनुमानित तौर पर लगभग 28 लाख टीबी के मरीज सिर्फ भारत में ग्रसित है जिनमें से प्रतिवर्ष लगभग 4.2 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इस प्रकार प्रतिदिन लगभग 1200 लोगों की मौत टीबी से हो रही है। इस बीमारी की भयावह परिणाम को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत से वर्ष 2025 तक टीबी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है। निदान एवं उपचार शरीर के जिस हिस्से की टीबी है, उसके मुताबिक टेस्ट होता है। फेफड़ों की टीबी के लिए बलगम जांच होती है, जो कि सरकारी अस्पतालों और डॉट्स सेंटर पर यह नि:शुल्क की जाती है। अगर बलगम में टीबी पकड़ नहीं आती तो आइ कल्चर कराना होता है। लेकिन इनकी रिपोर्ट छह हफ्ते में आती है। ऐसे में अब सीबीनेट/ जिन-एक्सपर्ट जांच की जाती है, जिसकी रिपोर्ट दो घंटे में आ जाती है। इस जांच में यह भी पता चल जाता है कि किस लेवल की टीबी है और दवा असर करेगी या नहीं। किसको खतरा ज्यादा - अच्छा खान-पान न करने वालों को टीबी ज्यादा होती है क्योंकि कमजोर इम्यूनिटी से उनका शरीर बैक्टीरिया का वार नहीं झेल पाता। - जब कम जगह में ज्यादा लोग रहते हैं तब इन्फेक्शन तेजी से फैलता है। - अंधेरी और सीलन भरी जगहों पर भी टीबी ज्यादा होती है क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया अंधेरे/सीलन में पनपता है। - ध्रूमपान करने वाले को टीबी का खतरा ज्यादा होता है। - डायबीटीज के मरीजों, स्टेरॉयड लेने वालों, कैंसर और और एचआईवी मरीजों को भी खतरा ज्यादा। - कुल मिला कर उन लोगों को खतरा सबसे ज्यादा होता है जिनकी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कम होती है। जनपद में हैं 957 एक्टिव टीबी मरीज जिला समन्वयक श्याम ने बताया कि फिलहाल जनपद में 957 एक्टिव मरीज हैं, जिनमें 74 एमडीआर के मरीज हैं। हिन्दुस्थान समाचार / सुनील

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