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अस्थमा से पीड़ित सरोज सिंह ने योग का लिया सहारा, बीमारी से मिली ​मुक्ति

अब प्रशिक्षक बन योग की सुगंध मध्यप्रदेश रीवा में फैला रही वाराणसी, 17 जून (हि.स.)। आत्मबल और हिम्मत के साथ किसी भी कठिन परिस्थिति असाध्य बीमारियों से लड़ने और उससे जीतने का जज्बा हो तो सफलता मिलते देर नहीं लगती। आत्मबल,संयम के आगे बीमारी भी बौना साबित हो जाती है। कुछ ऐसी ही बात आजमगढ़ की मूल निवासी सरोज सिंह में है। अस्थमा का अटैक होने के बाद सरोज सिंह ने आत्मबल के साथ योगाभ्यास का भी सहारा लिया। इस कठिन बीमारी से उबरने के बाद सरोज ने योग को अब अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया है। खुद योग प्रशिक्षक बन लोगों को स्वस्थ रखने के साथ तनाव से मुक्ति भी दिला रही हैं। गुरुवार को 'हिन्दुस्थान समाचार' से बातचीत में सरोज सिंह ने बताया कि मेरी शिक्षा प्राथमिक से लेकर स्नातक तक आजमगढ़ में ही हुई। पति बैंक में मुख्य प्रबंधक पद पर है। वर्ष 2002 में मुझे अस्थमा ने जकड़ लिया। फिर मैने आयुर्वेद, होम्योपैथ के बाद एलोपैथी में भी इलाज का सहारा लिया। लेकिन मुझे कहीं आराम नहीं मिला। जीवन कठिन होता जा रहा था। लेकिन हिम्मत से जूझती रही। वर्ष 2010 में पति का तबादला वाराणसी में हो गया। बच्चों की शिक्षा के लिए मैं भी बनारस आ गई। पति और परिवार के अन्य सदस्य योग करते हैं। बनारस में आने के बाद मैंने पहले योग की कक्षा कहां चलती है पता किया। फिर सुन्दरपुर ब्रिज एनक्लेव कॉलोनी में मुंशी प्रेमचंद पार्क में योग की कक्षा में शामिल हुई। बताया कि सुबह 5:00 से 6:45 तक योग प्रशिक्षक रासबिहारी तिवारी के सानिध्य में लगातार योगाभ्यास किया। इससे मेरी अस्थमा, सर्वाइकल की सारी बीमारी दूर हो गई। सरोज बताती हैं कि मैंने जो भी सीखी थी गुरु जी से आशीर्वाद लेकर अपनी नई योग की क्लास डीएलडब्लू परिसर में शुरू की। परिसर स्थित न्यू कॉलोनी में निरंतर योग की क्लास चलाती रही। यहां रहने वाली सभी बहनें इससे लाभान्वित भी हुईं। सरोज सिंह ने बताया कि वर्तमान समय में मैं मध्य प्रदेश के रीवा शहर में रह रही हूं। यहीं अब मेरी योग की कक्षा निरंतर चल रही है। बहनें योग शिविर में योगाभ्यास कर स्वस्थ जीवन जी रही हैं। उन्होंने कहा कि योग स्वस्थ जीवन जीने की कला हैं इसे सबको अपनाना चाहिए। योग में अनुलोम, विलोम, कपालभाति आदि आसनों प्राणायामों का अभ्यास कर शरीर को स्वस्थ रख सकते है। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर

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