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समाचार में विचार का मिश्रण पत्रकारिता को कठघरे में खड़ा कर रहा है - प्रो. सुरेश

उदयपुर, 19 जून (हि.स.)। पत्रकारिता में समाचार और विचार दोनों अलग-अलग हैं। पत्रकारिता का बुनियादी सिद्धांत है कि समाचार वह है जिसमें जैसा देखा वैसा लिखा जाता है, लेकिन आजकल समाचारों में ही अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने की होड़ मची हुई है। पत्रकार फैसले सुनाने लगे हैं जो लोकतंत्र और समाज के लिए घातक है। यदि पत्रकार को विचार लिखना ही है तो उसके लिए सम्पादकीय - लेख जैसे विकल्प हैं, लेकिन समाचार में ही विचार का मिश्रण पत्रकारिता को कठघरे में खड़ा कर रहा है। पत्रकारों को पत्रकारिता करनी चाहिए, पक्षकारिता नहीं। यह बात माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने शनिवार को उदयपुर के प्रताप गौरव केन्द्र की ओर से चल रहे महाराणा प्रताप जयंती समारोह की संवाद श्रंखला में कही। ‘राष्ट्र के निर्माण में मीडिया की सकारात्मक भूमिका’ विषय पर आयोजित इस संवाद में कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि पत्रकार फैसले करने बैठ जाते हैं जो काम न्यायपालिका का है, पत्रकार कानून बनाने लग जाते हैं जो काम विधायिका का है, पत्रकार की जिम्मेदारी इतनी ही है कि जैसा देखा वैसा प्रस्तुत करें, उस पर जनता स्वयं अपनी-अपनी राय बनाती रहेगी। जनता पर घटना की रिपोर्टिंग के साथ ही अपना विचार थोपना पत्रकारिता नहीं है। उन्होंने कहा कि आलोचना अपनी जगह है, लेकिन फैसले सुनाना पत्रकार का काम नहीं। उन्होंने कहा कि ऐसा दौर आ गया है कि मीडियाकर्मी अब मीडियाकर्मी नहीं होकर मीडिया एक्टिविस्ट हो गए हैं। जो जर्नलिस्ट है वह घटना को जैसा देखता है वैसा लिखता है, जो एक्टिविस्ट हैं उनका एजेंडा तय होता है कि उन्हें दिखाना क्या है। वे यह सोचकर ही कार्य करते हैं कि उन्हें घटना को किस स्वरूप में प्रस्तुत करना है। कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि एक्टिविस्ट नहीं फेक्टिविस्ट बनिये, सत्य का अन्वेषण कीजिये और सत्य को प्रस्तुत कीजिये। पैड न्यूज से लेकर फेक न्यूज तक की यात्रा पर प्रो. सुरेश ने कहा कि अब लोग समझने लग गए हैं। फेक नरेटिव यानी भ्रमित करने वाले विमर्ष लोगों की समझ में आने लगे हैं। शब्दों के खेल भी लोगों की समझ में आने लगा है। गोदी मीडिया शब्द पर उन्होंने कहा कि मीडिया में एक वर्ग ऐसा हो गया है कि जो वह कहे वही सत्य माना जाए। प्रो. सुरेश ने कहा कि यह कैसे संभव हो सकता है कि वह वर्ग जो कह रहा है वही सत्य है, और जब फैक्ट पर सवाल उठने लगते हैं तो असहिष्णुता का शब्द गढ़ लिया जाता है। यानी वे कहें वही उदारवाद है, उन्हें प्रतिवाद स्वीकार नहीं है, यदि आप उनके विचार के समर्थन में नहीं हैं तो आप असहिष्णु हो जाएंगे। कुलपति प्रो. सुरेश ने पत्रकारों व पत्रकारिता के विद्यार्थियों से कहा कि उन्हें गहन अध्ययन पर भी ध्यान देना होगा। जब आपको सही तथ्य मालूम होंगे तभी आप सटीक समाचार जनता तक पहुंचा पाएंगे, अध्ययन का अभाव उसी तथ्य को स्वीकार करने को मजबूर कर देगा जो फैलाया जा रहा है, यदि अध्ययन होगा तो आप मजबूती से पैड व फेक न्यूज से लड़ पाएंगे। डिजिटल मीडिया के बढ़ते चलन में कुलपति प्रो. सुरेश ने कंटेंट के नियमन की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि नियमंन होना चाहिए, नियंत्रण नहीं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कंटेंट का जवाब कंटेंट ही होता है। यदि किसी ने कोई पुस्तक किसी विचार विशेष को स्थापित करने के लिए गलत तथ्यों के आधार पर लिखी है तो उस पुस्तक का विरोध करने से ज्यादा जरूरी यह है कि उसी के जवाब में एक पुस्तक और लिखी जाए जिसमें संदर्भों के साथ सटीक तथ्यों का प्रस्तुतीकरण हो ताकि जनता के समक्ष सत्य अन्वेषण पहुंच सके। प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा कि पत्रकारिता के लिए उत्सुक छात्रों को किसी विचार विशेष से प्रभावित नहीं होना चाहिए। वे गहन अन्वेषण स्वयं करें और सटीक तथ्यों के साथ जो बात राष्ट्रहित, समाजहित में हो उसे जनता तक पहुंचाने की प्रतिबद्धता का पालन करें। विरोधी विचार का भी स्वागत होना चाहिए और उसका विरोध भी सटीक संदर्भों व तथ्यों के साथ होना चाहिए। विभिन्न विचारों के मंथन से अंततः निकलने वाला मक्खन लोकतंत्र के लिए हितकारी ही होता है। हिन्दुस्थान समाचार/सुनीता कौशल / ईश्वर

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