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राजस्थान विधानसभा सचिवालय परिसर में स्थापित हो महाराणा प्रताप की मूर्ति

उदयपुर, 07 जून (हि.स.)। देश के कई शिक्षाविदों व प्रबुद्धजनों ने राजस्थान विधानसभा सचिवालय परिसर में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की प्रतिम स्थापित करने का समर्थन दिया है। यह बात सोमवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संघटक माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के अन्तर्गत संचालित इतिहास विभाग की ओर से वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती के उपलक्ष्य में ‘‘महाराणा प्रताप और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं मानवाधिकारों की रक्षा तथा भागवत गीता’’ विषयक पर एक दिवसीय ऑनलाइन संगोष्ठी में उभर कर आई। इस गोष्ठी में देश के विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं इतिहासविदों ने भाग लिया। संगोष्ठी में सभी वक्ताओं ने एक स्वर से राजस्थान के विधानसभा सचिवालय में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की प्रतिमा स्थापित करने का पुरजोर समर्थन किया। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि इसके लिए आगामी दिनों में राजस्थान के सभी सांसद एवं विधानसभा सदस्यों को आग्रह पत्र भी प्रेषित किया जाएगा। महाराणा प्रताप किसी समाज विशेष के न हो कर जननायक थे, उन्होंने जो युद्ध लड़े वे किसी राज्य को प्राप्त करने के लिए नहीं अपितु स्वाभिमान के लिए थे। उन्होंने मानवाधिकारोें की रक्षा के लिए महलों को छोड़ दिया। प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि महाराणा प्रताप ने पराधीनता को मृत्यु तथा स्वतंत्रता को जीवन की चेतना माना। यही मूल हमें भगवद गीता से भी प्राप्त होता है और इसी मानवीय मूल्य की स्थापना के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया। महाराणा प्रताप का बलिदान मात्र मुगलों से स्वतंत्रता तक सीमित नही था अपितु उनका त्याग 1857 से लेकर 1947 भारत की आजादी तक देश के हर कोने में राष्ट्रीय उत्साह के साथ प्रेरक बना रहा। मुख्य अतिथि डॉ. बी. नाग रमेश आईपीएस पुलिस महानिदेशक, पश्चिम बंगाल ने कहा कि महाराणा प्रताप एक कुशल प्रशासक थे। वे सादा जीवन, स्त्री रक्षा, औचित्य के साथ शासन व्यवस्था, क्षेत्रीयता की संक्रीणता से दूर, चरित्रवान, गुलामी को न स्वीकार करने वाले, निष्ठावान, वीर, जननायक, युगदृष्टा, कुशल यौद्धा के गुणों से परिपूर्ण थे। उन्होंने कहा कि उनके जीवन को चिर स्थायी बनाये रखने के लिए केन्द्र सरकार को महाराणा प्रताप के नाम से 100 अथवा 200 रुपये का नोट जारी करना चाहिए। विशिष्ठ अतिथि महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ला ने कहा कि महाराणा प्रताप राज्याभिषेक के नाते महाराणा नहीं बने अपितु वे उन भारतीय पुत्रों में से एक थे जिन्होंने आदर्श एवं मानवीय मूल्य स्थापित किये जिससे वे राष्ट्र के महाराणा कहलाए। उन्हांेने कहा कि मेवाड़-मुगल संघर्ष दो सभ्यताओं का युद्ध था। हल्दीघाटी का युद्ध भी उन्होंने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए लड़ा। मुख्य वक्ता भारतीय चरित्र निर्माण समिति के संस्थापक रामकृष्ण गोस्वामी ने कहा कि महाराणा प्रताप ने गीता के आदर्शों का पालन करते हुए, एकलिंगनाथ को शासक मान, प्रधानमंत्री या दीवान के रूप में शासन की व्यवस्था का पालन किया। अपनी माता जयवंती बाई से गीता के उपदेश सुन एवं चिंतन कर स्वधर्म एवं स्वाधीनता के लक्ष्य का निर्धारण किया। अकबर की दासता जीवनभर स्वीकार न कर राष्ट्र एवं मानव धर्म की रक्षा की। महाराणा प्रताप के कर्म एवं विचार आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने सभी विश्वविद्यालयों में प्रताप की शासन व्यवस्था को पाठ्यक्रम से जोड़ने की जरूरत बताई। डॉ. चन्द्रशेखर ने विषय की उपयोगिता एवं उपादेयता बताते हुए कहा कि मेवाड़ की जनता ने अपने मानवाधिकार का प्रयोग करते हुए महाराणा प्रताप को पदस्थापित किया। हिन्दुस्थान समाचार/सुनीता कौशल/संदीप

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