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राजस्थानी भाषा को मिले संविधान की 8वीं अनुसूची में मान्यता . सांसद भागीरथ चौधरी

अजमेर, 17 मार्च(हि.स.)। राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित कर संवैधानिक मान्यता दिलाने की मांग एक बार फिर लोकसभा में उठी। अजमेर सांसद भागीरथ चौधरी ने बजट सत्र में यह मांग रखी। उन्होंने कहा कि राजस्थान प्रदेश के करोड़ों लोगों की भावना का सम्मान हो। सदन में उन्होंने बोला कि राजस्थान प्रदेश के 10 करोड़ लोग जो राजस्थानी भाषा को अपने दैनिक बोलचाल में उपयोग करते हैं पिछले 70 वर्षों से अपनी मायड़ भाषा राजस्थानी को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए प्रयत्नशील हैं । विधानसभा से लेकर राज्यसभा एवं लोकसभा में चर्चा भी हो चुकी है, समय समय पर धरने प्रदर्शन के साथ . साथ संगोष्ठियों का आयोजन भी किया जा चुका है, लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण यह मुद्दा आज तक कागजों तक ही सीमित है। भारत के सबसे बडे़ प्रदेश में बोली जाने वाली इस भाषा का अपना समृद्ध इतिहास एवं साहित्य है। पडौसी देश नेपाल में तो राजस्थानी भाषा में शपथ लेने की छूट भी है। हमारी राजस्थानी भाषा राजस्थान के आमजन की भाषा है इसे संवैधानिक मान्यता मिलने पर राष्ट्रभाषा हिन्दी और मजबूत होगी यह इसकी पूरक भाषा ही है, साथ ही इसकी लिपि भी देवनागरी है जो कि संविधान में मान्यता प्राप्त एकाधिक भाषाओं की लिपि भी है। एक और जहां विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा भी मान्यता प्राप्त होने से भी प्रदेश के कई विश्वविद्यालयों में इस भाषा के साहित्य में एमफिल एवं पीएचडी शोध कार्य हो रहे है तो दूसरी ओर आकाशवाणी और विभिन्न चैनलों पर प्रतिदिन राजस्थानी भाषा में समाचार प्रकाशित होते हैं। देश मे हिन्दी भाषा को छोडकर सिर्फ 4 भाषाएं यथा बांग्ला, मराठी, तमिल एवं तेलगू ही ऐसी है जिनकों बोलने वालों की संख्या राजस्थानी से अधिक है जबकि देश की बहुत कम बोली जाने वाली भाषाएं भी संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित है। जिसके चलते राजस्थान प्रदेश के हम वाशिंदों को अपनी मायड़ भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं दिए जाने से असंतोष हो रहा है। हिन्दुस्थान समाचार/संतोष/ ईश्वर

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