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पीएफओ क्लोजर तकनीक कम उम्र के रोगियों को बार-बार के लकवे से बचाने में कारगर

जयपुर, 04 फरवरी(हि.स.)। राजस्थान के प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट डॉ रविंद्र सिंह राव का कहना है कि पेटेंट फोरामेंन ओवेल (पीएफओ) एक ऐसी स्थिति है जिसमें कम उम्र के लोगों में बार बार लकवा होने की शिकायत होती है। ऐसी स्थिति में मरीज को पीएफओ क्लोजर तकनीक के माध्यम से बार बार होने वाले लकवे से बचाया जा सकता है। डॉ राव ने ऐसे ही एक 47 वर्षीय महिला मरीज को जयपुर के राजस्थान अस्पताल में इस प्रोसीजर के माध्यम से नई जिंदगी दी। इस प्रकार का यह राजस्थान में पहला केस है। राजस्थान अस्पताल में हार्ट सेंटर के चेयरमैन के तौर पर हाल ही में ज्वाइन करने वाले चीफ इंटरनेशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ रविन्द्र सिंह राव ने बताया कि हर व्यक्ति के हार्ट में 4 चेंबर होते हैं। ऊपर के दोनों चैम्बर के बीच में छिद्र होता है, जो जन्म के तुरंत बाद बंद हो जाता है। यदि किसी व्यक्ति में यह छेद बंद नहीं हो तो इस छेद के माध्यम से हार्ट के दाएं हिस्से से क्लॉट बाएं हिस्से में आकर ब्रेन में पहुंचकर लकवा की शिकायत पैदा कर देता है। और यह शिकायत जब तक यह छेद बंद नहीं हो जाता, तब तक बार बार हो सकती है। डॉ. राव ने बताया कि इस महिला को दो साल पहले लकवा हुआ था। जिसमें कई निजी अस्पतालों में इलाज लिया लेकिन इसकी बीमारी का पता नहीं लगाया जा सका। हाल ही में 10 जनवरी को दोबारा लकवे की शिकायत होने पर इस महिला के परिजनों ने उनसे कंसल्ट किया। बबल स्टडी इकोकार्डियोग्राफी से चला बीमारी का पता डॉ राव ने बताया कि इस महिला की बबल स्टडी इकोकार्डियोग्राफी कराने से पता चला कि इसके हार्ट में छेद है। इस जांच से यह कंफर्म हुआ कि इसी छेद के कारण इसे बार-बार लकवा हो रहा है। डॉ. राव ने बताया कि इसके उपचार के लिए उन्होंने मरीज के पैर की नस के रास्ते डिवाइस क्लोजर के माध्यम से हार्ट में जाकर इस छिद्र को बंद किया। उन्होंने बताया कि बबल स्टडी इकोकार्डियोग्राफी पुनः कराके यह कंफर्म किया कि प्रोसीजर के बाद दाएं से बाएं चेंबर में कोई शंट मौजूद नहीं है। इसके बाद मरीज को दूसरे दिन ही अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। उन्होंने बताया कि इस संपूर्ण क्रिया को पीएफओ क्लोजर कहा जाता है। इसमें कोई चीर-फाड नहीं होती। और मरीज जल्दी रकवरी करता है। हिन्दुस्थान समाचार/संदीप/ ईश्वर-hindusthansamachar.in

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