people-drinking-neem-giloy-in-sariska-villages-even-eight-villages-could-not-touch-the-corona-due-to-the-consumption-of-indigenous-spices
people-drinking-neem-giloy-in-sariska-villages-even-eight-villages-could-not-touch-the-corona-due-to-the-consumption-of-indigenous-spices

सरिस्का के गांवों में नीम गिलोय पी रहे लोग, देसी मसालों के सेवन से आठ गांवों को कोरोना छू भी नहीं पाया

अलवर, 22 मई (हि.स.)। देश समेत प्रदेश में कोरोना बेकाबू हो रहा है। शहरों के साथ ही कोरोना संक्रमण ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेजी से फैल रहा है। इन सबके बीच सरिस्का बाघ परियोजना में बसे ग्रामीणों को इस बीमारी से बचाने में कुदरत ढाल बन गई है। जंगल की शुद्ध आबोहवा और मेहनतकश ग्रामीणों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होने के कारण सरिस्का के घने जंगल में बसे गांवों में बीमारी पांव नहीं पसार सकी है। सरिस्का क्षेत्र के आठ गांवों में अब तक कोरोना का एक भी संक्रमित नहीं मिला है। अलवर के सरिस्का क्षेत्र में बसे गांवों में अभी भी कोरोना की नो एंट्री है। संक्रमण के फैलाव के बाद भी कोरोना जैसी महामारी की चपेट में अब तक एक भी व्यक्ति नहीं आया है। इन गांवों के लिए प्रकृति ही ढाल बनी हुई है। गांव की शुद्ध हवा व दिनभर की मेहनत से यहां के लोगों की इम्युनिटी पावर इतनी मजबूत है कि बीमारी इन्हें छू भी नहीं पा रही है। शहरी क्षेत्र के लोगों की तुलना में गांव के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के बिगड़ते हालात को देखते हुए सरिस्का के इन गांवों के लोगों ने बाहरी लोगों के संपर्क में नहीं आने का फैसला किया था। बाहरी लोगों के आने पर भी रोक लगा दी गई। साथ ही गांव के लोग भी बाहर नहीं गए। स्थानीय निवासी रामफूल एवं धारा सिंह गुर्जर बताते हैं कि कुछ लोग घरेलू सामान लेने के लिए जाते हैं जो वापस लौटने के बाद तुरंत नहाते हैं। अपने कपड़े साफ करते हैं व उसके बाद गांव में प्रवेश करते हैं। पूरे गांव का सामान भी एक साथ ही आता है। अलवर जिले के शहर एवं कस्बों से सटे गांव में बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन सरिस्का की वादियों में बसे 8 गांवों में अभी तक एक भी कोरोना पॉजिटिव मामला नहीं आया है। वैसे तो सरिस्का क्षेत्र में कुल 29 गांव बसे हुए हैं, लेकिन 6 गांव को शिफ्ट कर दिया गया है. कुछ गांव सरिस्का के बाहरी क्षेत्र में बसे हैं, लेकिन 8 से 10 गांव घने जंगल क्षेत्र में हैं। इन गांवों के लोगों की मुख्य आजीविका खेती व पशुपालन है। जंगलों में भेड़, बकरी व मवेशी चराते हैं तो कुछ लोग खेती-बाड़ी के काम में लगे हैं। अरावली की पहाडिय़ों से घिरे घने जंगलों में ग्रामीण पूरे प्राकृतिक आवास में जीवन यापन कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां अभी तक किसी का भी वैक्सीनेशन नहीं हुआ है। न ही कोई मेडिकल टीम गांव में पहुंची है। क्षेत्र में किसी तरह की दवा का छिडक़ाव भी नहीं किया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि हम अपने बलबूते ही अभी तक स्वस्थ हैं। देशी काढ़ा व अन्य चीजों से खुद की इम्युनिटी बढ़ा रहे हैं। गांव के लोग गिलोय का पानी गरम करके पीते हैं। मसाले का उपयोग ज्यादा करते हैं। काली मिर्च, लॉन्ग, हल्दी सहित अन्य घरेलू चीजों का उपयोग खाने में अधिक कर रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण अभी तक सुरक्षित हैं और प्राकृतिक हवा और देसी खानपान के साथ स्वस्थ हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वे दिन भर पेड़ों के ही नीचे रहते हैं। ऐसे में शुद्ध हवा और भरपूर ऑक्सीजन मिलती रहती है। कोरोना संक्रमण इंसानों के साथ जानवरों में भी है। ऐसे में सरिस्का प्रशासन लगातार क्षेत्र में बसे गांवों में लोगों को जागरूक कर रहा है। सरिस्का की तरफ से 24 घंटे ग्रामीण क्षेत्र में टीम लगाई गई है जो लगातार लोगों को जागरूक कर रही हैं। जंगल क्षेत्र में आने-जाने वाले लोगों पर नजर रखी जा रही है। बाहरी लोगों को आने जाने की अनुमति नहीं है। सरिस्का के मुख्य द्वार पर आने- जाने वाले सभी लोगों की जांच की जा रही है। बिना पहचान पत्र के लोगों को प्रवेश नहीं दिया जा रहा। ग्रामीणों को अपने पालतू जानवर भी गांव में ही रखने की सलाह दी जा रही है जिससे संक्रमण एक जगह से दूसरी जगह न फैल सके। हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/ ईश्वर

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in