संवैधानिक मान्यता नहीं मिलने के कारण राजस्थानी साहित्य का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया : माली

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बीकानेर, 28 अप्रैल (हि.स.)। वरिष्ठ कवि आलोचक कुंदन माली ने कहा है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलने के कारण इस भाषा के साहित्य का अपेक्षाकृत दूसरी संवैधानिक मान्यता प्राप्त भाषाओं जैसा विकास नहीं हुआ है। अगर राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता मिली होती तो इस भाषा के साहित्य का रूप ही दूसरा होता और इस तरह आलोचना परंपरा का भी विकास होता। माली ने यह उद्गार साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा आयोजित वर्चुअल ऑनलाइन शृंखला में व्यक्त किये। यह वेबलाइन शृंखला राजस्थानी आलोचना : वर्तमान व भविष्य विषय पर आयोजित की गई। उन्होंने कहा कि राजस्थानी साहित्य में आलोचना का व्यवस्थित रूप सामने नहीं आता। यही वजह है कि आलोचना को लेकर किताबें भी बहुत कम आई हैं। माली ने कहा कि राजस्थानी आलोचना को एक विधा मानते हुए इस दिशा में लोग आएं और सृजित साहित्य पर अपनी दृष्टि प्रदान करें। माली ने कहा कि इस बात की जरूरत है कि राजस्थानी भाषा में सभी विधाओं पर एक दृष्टिकोण के साथ काम हो ताकि भाषा की मान्यता का मार्ग प्रशस्त हो सके। कार्यक्रम के प्रारंभ में राजस्थानी भाषा परामर्शक मंडल के संयोजक मधु आचार्य 'आशावादी' ने कहा कि ऐसा दूसरी बार हुआ है कि आलोचना जैसे विषय पर एक वेबिवान की योजना बनाई गई है, क्योंकि किसी भी भाषा में रचे जाने वाले साहित्य की गुणवत्ता का सबसे बड़ा आधार आलोचना ही होती है। नाटक व बाल.साहित्य विधा में आलोचना की संभावना पर बात कर हुए कवि-पत्रकार हरीश बी शर्मा, पत्रकार.व्यंग्यकार कृष्णकुमार आशु, कवि.कथाकार मदनगोपाल लढ़ा, कवि.आलोचक डॉ नीरज दइया, कवि.समीक्षक राजेश कुमार व्यास ने भी विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी की कार्यक्रम अधिकारी ज्योतिकृष्ण वर्मा ने किया। इस अवसर पर प्रख्यात लेखक और साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य प्रो मनोज दास के देहावसान पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। -हिन्दुस्थान समाचार/राजीव/संदीप

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