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कोर्ट ने शून्य घोषित किया बाल विवाह: निरस्त करवाने बालिका वधू ने लड़ी जंग

जोधपुर, 25 मार्च (हि.स.)। पारिवारिक न्यायालय ने वर्ष 2013 में हुए एक बाल विवाह को निरस्त घोषित कर बालिका वधू बनी युवती को राहत प्रदान की है। सात वर्ष पूर्व हुए इस बाल विवाह के खिलाफ अब बालिग हो चुकी युवती ने वाद दायर किया था। बाल विवाह निरस्त होने से खुश युवती ने कहा कि मैं सभी लड़कियों से अपील करती हूं कि वे इस प्रथा का विरोध करें। साथ ही उन्होंने अपने जीवन के लिए जो सपने देख रखे है उन्हें बाल विवाह की बेडिय़ों में टूटने न दे। जोधपुर जिले के पीपाड़ तहसील के सिलारी गांव में वर्ष 1999 में जन्मी छोटा देवी का विवाह वर्ष 2013 में खेजड़ला निवासी महेन्द्र के साथ हुआ। उस समय वह कक्षा नौ की छात्रा थी। वर्ष 2016 में जबरन उसका गौना कर दिया गया। एक दिन ससुराल रहकर वापस अपने पीहर लौट आई। उसका कहना है कि उसका पति नशेड़ी है। ऐसे में उसके साथ जीवन यापन करना बेहद मुश्किल है। इसके अलावा वह पढ़ाई पूरी होने तक पुलिस में नौकरी करने की इच्छुक है। युवती ने बताया कि उसे बाल विवाह निरस्त करने की कहीं से जानकारी मिली। ऐसे में उसने कुछ लोगों के सहयोग से वाद दायर किया। कोर्ट में वाद दायर करते ही उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। ससुराल पक्ष से रोजाना धमकियां मिलने लगी। धमकियों से परेशान घरवालों ने भी उस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हर तरफ से पड़े सामाजिक दबाव के बीच वह अपने निर्णय पर अडिग रही। तब बताया इस बीच उसे न्यायमित्र राजेन्द्र कुमार सोनी का साथ मिला। उन्होंने हिम्मत बंधाई। पारिवारिक न्यायालय में ससुराल पक्ष की तरफ से उसको बालिग बताने का भरसक प्रयास किया गया। वर्ष 2013 में बाल विवाह होने के कारण किसी प्रकार की फोटोग्राफी भी नहीं की गई। आखिरकार पीठासीन अधिकारी रूपचंद सुथार ने वर्ष 2013 में विवाह के समय युवती को नाबालिग मानते हुए उसके विवाह को शून्य घोषित कर दिया। हिन्दुस्थान समाचार/सतीश/संदीप

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