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‘मायड़’ भाषा राजस्थानी को पहचान दिलाना लक्ष्य, अभी संघर्ष लम्बा : डॉ. शेखावत

पाली, 26 जनवरी (हि. स.)। इतिहासकार डॉक्टर अर्जुन सिंह शेखावत का कहना है कि राजस्थानी भाषा को पहचान दिलाने और इसी भाषा में रचनाएं लिखने के लिए उन्हें पद्मश्री दिया जा रहा हैं, लेकिन उनका लक्ष्य यह सम्मान नहीं है। जब तक मायड़ भाषा राजस्थान को अपनी पूरी पहचान नहीं मिल जाएं, तब तक उनका संघर्ष जारी रहेगा। संस्कृति और शिक्षा के फैलाव के क्षेत्र में इतिहासकार डॉक्टर अर्जुन सिंह शेखावत को मंगलवार को राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया है। अवार्ड प्राप्त करने के बाद ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से खास बातचीत में शेखावत ने कहा कि जिस राजस्थानी भाषा के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा जा रहा है, उसे आगे ले जाने के लिए उन्हें अभी लंबा संघर्ष करना है। उनके 7 साल के संघर्ष को अभी सरकार पहचान नहीं पाई है। अभी हमारी मायड़ भाषा सूनी है और उनके सपूतों को सम्मान दिया जा रहा है। यह समान तब पूरी तरह से फलीभूत होगा, जब राजस्थानी भाषा को भारतीय संविधान के 8वें अनुच्छेद में शामिल कर लिया जाएगा। यह सम्मान तब चरितार्थ होगा, जब राजस्थान में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में राजस्थानी भाषा को भी शामिल कर उसे सम्मान दिया जाएगा। डॉक्टर शेखावत ने बताया कि उन्होंने मायड़ भाषा के संघर्ष की शुरुआत पाली जिले के आदिवासी क्षेत्र से की थी। उन्होंने पाली जिले के बाली क्षेत्र में फैले गोरिया भीमाना क्षेत्र में बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं दी थी। क्षेत्र ऐसा था जहां 5 बजे के बाद लोग निकल नहीं सकते थे। उनकी भाषा को समझना किसी के लिए संभव नहीं था। वहां से उन्होंने बतौर इतिहासकार के रूप में अपनी शुरुआत की और अपनी रचनाएं लिखना शुरू की, उसके बाद उन्होंने राजस्थानी भाषा को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष शुरू किया। उन्होंने बताया कि वे राजस्थानी भाषा में अबतक करीब 50 से ज्यादा रचनाएं लिख चुके हैं। कई रचनाओं के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुका है। उनका कहना था कि राजस्थान में हर कोस पर बोली बदल रही है, लेकिन वह सब बोली है और राजस्थानी भाषा एक है। राजस्थानी भाषा को सम्मान दिलाना ही उनका प्राथमिक लक्ष्य है। हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/ ईश्वर-hindusthansamachar.in

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