‘मियावाकी’ पद्धति से पौधों का होगा विकास, कलेक्टर ने दिये कार्ययोजना बनाने के निर्देश
‘मियावाकी’ पद्धति से पौधों का होगा विकास, कलेक्टर ने दिये कार्ययोजना बनाने के निर्देश

‘मियावाकी’ पद्धति से पौधों का होगा विकास, कलेक्टर ने दिये कार्ययोजना बनाने के निर्देश

उज्जैन, 07 अगस्त (हि.स.)। जिले में हरियाली बढ़ाने और पौधों को जल्द विकास करने के उद्देश्य से पौधारोपण की ‘मियावाकी’ पद्धति अपनाई जायेगी। इस पद्धति से देशी प्रजाति के पौधे लगाये जायेंगे, जिससे कम जगह में पौधों की वृद्धि होगी और इन पौधों की देखभाल भी कम समय करना होगी, जबकि सामान्य पौधे लगाने पर अधिक समय तक देखभाल करने की जरूरत पड़ती है। इस पद्धति से कम समय में जंगल को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है। इसी उद्देश्य से कलेक्टर आशीष सिंह ने शुक्रवार को अधिकारियों एवं पर्यावरणविदों की बैठक ली और उन्हें कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिये। कलेक्टर आशीष सिंह ने निर्देश दिये कि कार्य योजना तैयार करते समय मास्टर प्लान का ध्यान रखा जाये। नगरीय सीमा क्षेत्र में शिप्रा नदी के किनारे लगी जमीन के किसानों की सूची तैयार की जाये और उन्हें पौधा रोपने के लिए जागृत किया जाये। उन्होंने निर्देश दिये कि मियावाकी पद्धति में आमजन को जोड़ा जाये, ताकि अधिक से अधिक नगर निगम सीमा क्षेत्र के साथ-साथ जिले के ग्रामीण अंचलों में कम समय में बेहतर प्राकृतिक वन विकसित करने की कार्य योजना तैयार कर पौधारोपण किया जाये। उन्होंने कहा कि पर्यावरण सुधार के लिये हम सब मिलकर कार्य करें। शिप्रा नदी के दोनों तटों को कैसे हरा-भरा किया जाये, जिससे शिप्रा नदी भविष्य में सदा प्रवाहमान बनी रहे और भविष्य में पडऩे वाले सिंहस्थ में बाहर से पानी न लाना पड़े और नदी प्रवाहमान बनी रहे, इस पर हम सबको मिलकर अधिक से अधिक प्लांटेशन करने की जरूरत है। शहरी क्षेत्र में समस्त बगीचों आदि स्थानों पर मियावाकी पद्धति का इस्तेमाल किया जाये, जिससे घना जंगल बन सके। उन्होंने जिला पंचायत सीईओ को निर्देश दिये कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी कार्य योजना तैयार की जाये। मनरेगा में भी इस सम्बन्ध में कार्यवाही की जाये। इस संबंध में शीघ्र आयोजित की जायेगी और इसके बाद प्रत्येक माह के प्रथम शुक्रवार को कार्यवाही की समीक्षा की जायेगी। कलेक्टर आशीष सिंह ने बताया कि जापान के वनस्पति वैज्ञानिक डॉ.अकीरा मियावाकी ने मियावाकी पद्धति की शुरूआत की। इस पद्धति से बहुत कम समय में जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है। इस योजना के अन्तर्गत घरों के आगे अथवा पीछे खाली पड़े स्थान में छोटे बागानों में बदलकर शहरी वनीकरण की अवधारणा में क्रान्ति लाई जा सकती है। कम समय में बेहतर प्राकृतिक वन विकसित किये जा सकते हैं। इस तकनीक में छोटे पौधों से लेकर बड़े पौधे एक ही स्थान पर रोपित किये जाते हैं। एक पौधे की आड़ में दूसरा पौधा जल्दी विकसित हो जाता है क्योंकि यह तकनीक पूरे इकोलॉजिकल सिस्टम पर निर्भर करती है। मियावाकी पद्धति में देशी प्रजाति के पौधे एक-दूसरे के समीप लगाये जाते हैं जो कम स्थान घेरने के साथ ही अन्य पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं। हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/राजू-hindusthansamachar.in

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