सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में स्वास्थ्य विभाग फिसड्डी
सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में स्वास्थ्य विभाग फिसड्डी

सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में स्वास्थ्य विभाग फिसड्डी

गुना, 17 अक्टूबर (हि.स.)। आमजन के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार हर साल विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग पर है। लेकिन जिम्मेदारी अधिकारी व मैदानी अमले के उदासीन रवैए के कारण न तो जनता को स्वास्थ्य योजनाओं का संपूर्ण लाभ मिल पा रहा है और न ही निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति हो पा रही है। सरकार की स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी योजनाओं व कार्यक्रमों की जमीनी हकीकत क्या है, इसे खुद विभाग के आंकड़े ही बयां कर रहे हैं। अप्रैल से 19 जून तक के जो आंकड़े स्वास्थ्य विभाग ने दिए हैं उसमें पूरा विभागीय अमला फिसड्डी नजर आ रहा है। हालांकि इसमें पिछडऩे की वजह विभाग के अधिकारी कोरोना संक्रमण को बता रहे हैं। जबकि हकीकत में स्वास्थ्य विभाग ने स्वास्थ्य अमले का उपयोग ठीक ढंग से किया ही नहीं है। जिस डॉक्टर व स्टाफ की जरूरत जहां सबसे ज्यादा थी, उसे वहां तैनात न करते हुए अन्य काम में लगा दिया। जिससे सरकार की जनहितैषी व महत्वपूर्ण योजनाओं व कार्यक्रमों में विपरीत असर पड़ा है। किस योजना की क्या है हकीकत टीकाकरण : स्वास्थ्य विभाग के अप्रैल से 16 जून तक के आंकड़े बताते हैं कि टीकाकरण का वार्षिक लक्ष्य 37 हजार 900 था लेकिन टीकाकरण मात्र 3 हजार 956 हितग्राहियों को ही हो सका। - आयुष्मान भारत योजना : वर्ष 2019-20 में कुल 4300 प्रकरण आए लेकिन स्वीकृत 4211 ही हो सके। 2020-21 में 117 प्रकरण आए जिनमें 107 स्वीकृत हुए। - अंधत्व निवारण : इस योजना में वार्षिक लक्ष्य 10500 था जबकि लाभ मात्र 51 व्यक्तियों को ही मिला। - मलेरिया नियंत्रण : आमजन के स्वास्थ्य से जुड़ा महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। जिसके तहत रोगियों की लक्षण के आधार पर रक्त पट्टिकाएं (स्लाइड टेस्ट) बनाई जाती हैं। यह कार्यक्रम एक मई से शुरू होता है। जिसका लक्ष्य 184786 दिया गया था लेकिन 28846 रोगियों की रक्त पट्टिकाएं बनाई जा सकीं। इतने टेस्ट होने के बाद भी पीएफ (फैल्सीफेरम) का एक भी पॉजिटिव मरीज सामने नहीं आ सका। - परिवार कल्याण ऑपरेशन : जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार का यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। इसके क्रियान्वयन पर हर साल बड़ा बजट खर्च करने के साथ हितग्राहियों की सुविधा के लिए जिला अस्पताल सहित अंचल के स्वास्थ्य केंद्रों पर भी नसबंदी शिविर लगाए जाते हैं। जिनमें ड्यूटी देने वाले डॉक्टर व सहयोगी स्टाफ को अलग से प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। इस कार्यक्रम के तहत 8554 का लक्ष्य निर्धारत था लेकिन मात्र 28 हितग्राहियों की नसबंदी हो सकी। इसी तरह आईयूडी का लक्ष्य 11 हजार था जबकि उपलब्धि मात्र 39 ही रही। पीपीआईयूसीडी में 3500 के लक्ष्य की तुलना में उपलब्धि 261 ही रही। - आरबीएसके : राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम सरकार की प्राथमिकता में है। इसके क्रियान्वयन के लिए सरकार ने जिला मुख्यालय से लेकर अंचल के स्वास्थ्य केंद्रों पर अलग से स्टाफ तैनात किया है। जिला अस्पताल में तो जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र नाम से अलग से इकाई भी संचालित है। इसके बावजूद ढाई महीने में एक भी रोगी को इस योजना का लाभ नहीं मिल सका है। - कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम : इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में मात्र दो रोगियों को ही चिन्हित किया गया है। जिसमें तहत पीबी के केवल दो रोगी को ही लाभ मिल सका। एमबी का कोई रोगी नहीं मिला। - यह बोले जिम्मेदार मार्च माह की शुरूआत से ही कोरोना शुरू हो गया था, इसके बाद विभाग का पूरा अमला सहित डॉक्टर्स कोरोना संक्रमण को कंट्रोल करने में लग गया था, इसी वजह से हमारे यहां अन्य जिलों की तुलना में भी काफी कम मरीज सामने आए हैं। वहीं स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी योजनाओं व कार्यक्रमों में लक्ष्य से काफी कम उपलब्धि हासिल होने की मुख्य वजह कोरोना काल में स्कूल, आंगनबाड़ी बंद होना भी एक कारण है। डॉ पुरुषोत्तम बुनकर, सीएमएचओ हिन्दुस्थान समाचार / अभिषेक-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in