महाकाल मंदिर स्थित नागचंद्रेश्वर के दर्शन होंगे ऑनलाइन
महाकाल मंदिर स्थित नागचंद्रेश्वर के दर्शन होंगे ऑनलाइन

महाकाल मंदिर स्थित नागचंद्रेश्वर के दर्शन होंगे ऑनलाइन

उज्जैन, 24 जुलाई (हि.स.)। शनिवार को नागपंचमी पर्व है। महाकालेश्वर मंदिर के तृतीय तल पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट वर्ष में एक बार नागपंचमी पर खुलते हैं। हजारों श्रद्धालु देशभर से दर्शन करने आते हैं। इस बार कोरोना महामारी के चलते दर्शन पर प्रतिबंध रहेगा। प्रशासन द्वारा वर्ष में एक बार पट को परंपरानुसार आज रात्रि में खोला दिया गया। शनिवार को दोपहर में विधि विधान से शासकीय पूजन होगा। लेकिन श्रद्धालुओं को ऑनलाइन दर्शन करवाए जाएंगे। सीधा प्रसारण केबल नेटवर्क पर भी प्रारंभ हो गया है। कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष नागपंचमी पर्व पर श्रद्धालु महाकालेश्वर मंदिर के तृतीय तल पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन नहीं कर पाएंगे। इस बार मंदिर प्रबंध समिति ने बतोर सावधानी दर्शन प्रतिबंधित कर दिए हैं। गत वर्ष भी करीब 2 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन किए थे। मंदिर प्रबंध समिति ने दर्शन के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की है। घर बैठे इंटरनेट के माध्यम से दर्शन किए जा सकते हैं। इधर शहर में केबल नेटवर्क के माध्यम से भी व्यवस्था की गई है। रात्रि में पट खुले, आज रात्रि में होंगे बंद शुक्रवार रात्रि को 12 बजे पंयाचती महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत विनित गिरिजी ने विधि विधान से पूजन किया और पट खोले गए। शनिवार रात्रि 12 बजे परंपरागत पूजन पश्चात एक वर्ष के लिए पट बंद कर दिए जाएंगे। शनिवार को शासकीय पूजन/तहसील पूजन भी सम्पन्न होगा। नहीं सुनाई देगी सपेरों की बीन कोरोना संक्रमण के चलते सख्ती के कारण इस बार कालबेलिये नहीं दिखाई देंगे। सपेरो की बीन सुनाई नहीं देगी। महिलाओं को घर में ही नागदेवता का पूजन करना होगा। नाग देवता को अंध विश्वास के तहत दूध पिलाया जाता है। ज्ञात रहे मालवा में यह परंपरा है कि नागपंचमी को घरों में दाल-बाटी बनती है और नाग देवता का पूजन करने के बाद परिवार भोजन करता है। 11वीं शताब्दी की परमारकालीन प्रतिमा लाई गई थी नेपाल से नागचंद्रेश्वर मंदिर में दिवार पर स्थापित पाषाण प्रतिमा 11 वी शताब्दी की परमारकालीन है। प्रतिमा में नाग के आसन पर शिव पार्वती परिवार के साथ विराजीत है। छत्र के रूप में शेष नाग का फन फैला हुआ है। इस प्रतिमा के दर्शन के बाद यहीं समीप स्थित कक्ष में नागचंद्रेश्वर महादेव (शिव लिंग)स्थापित है। उक्त शिवलिंग एवं दिवार पर स्थापित प्रतिमा के दर्शन वर्ष में एक बार होते हैं। महाकालेश्वर मंदिर के भू-तल में जहां महाकालेश्वर विराजीत है। प्रथम तल पर ओंकारेश्वर विराजीत है। दूसरे तल पर शिवलिंग वाला कक्ष है। कक्ष के प्रवेश द्वार के दोनों ओर की दिवार पर दो प्रतिमाऐं हैं। पहली प्रतिमा में माता लक्ष्मी एवं दूसरी प्रतिमा में शिव-पार्वती तथा समीप में बैठे नंदी है। ये दोनों प्रतिमाऐं भी नेपाल से ही लाई गई थीं। मान्यता है कि यह प्रतिमा नेपाल से यहां लायी गयी थी। नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा के साथ लक्ष्मी माता एवं शंकर-पार्वती की नंदी पर विराजित प्रतिमा भी लायी गयी थीं। ये प्रतिमाएं महाकाल मंदिर शिखर के प्रथम तल पर स्थित है। वर्तमान में दर्शन का जो स्वरूप देखने को मिलता है, वह स्थिति प्राचीन काल में नहीं थी। महाकालेश्वर मंदिर के शिखर को देखें तो बायीं ओर नेवेद्य द्वार के समीप एक रास्ता दिखता है,जिसका दरवाजा अब बंद कर दिया गया है। पूर्व में प्रथम तल पर बांयी ओर से नागचंद्रेश्वर मंदिर में जाने का मार्ग था। पत्थरों से बनी सीढिय़ों से होकर एक बार में एक ही व्यक्ति चढ़-उतर सकता था। सीढिय़ों पर चढ़ते ही सिर के उपर गणेश की प्रतिमा है वहीं पहली मंजील पार करते वक्त मोड़ पर भी एक ओर गणेश प्रतिमा है। इन पाषाण सीढिय़ों पर विद्युत व्यवस्था नहीं है। उस समय कृत्रिम प्रकाश के लिए मशााल जलाई जाती थी। मशालों को रखने के लिए पत्थरों में किए गए खांचे आज भी स्पष्ट दिखाई देते हैं। करीब 25 साल पहले भक्तों की भीड़ बढऩे से लोहे की सीढिय़ां अस्थाई रूप से लगाई गई और भक्तों को सीधे तीसरे तल पर नागचंदे्रश्वर के दर्शन हेतु ले जाया गया। आज भी यही व्यवस्था है। हिन्दुस्तान समाचार / ललित-hindusthansamachar.in

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