चेहरे से नहीं, चरित्र से महान बनता है इंसान : राष्ट्रसंत ललितप्रभ
चेहरे से नहीं, चरित्र से महान बनता है इंसान : राष्ट्रसंत ललितप्रभ

चेहरे से नहीं, चरित्र से महान बनता है इंसान : राष्ट्रसंत ललितप्रभ

इंदौर, 04 अक्टूबर (हि.स.)। राष्ट्र-संत ललितप्रभ महाराज ने कहा है कि अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए स्वयं को स्वस्थ, सुन्दर और सौम्य बनाइये। स्वास्थ्य सुख की कुंजी है, सौन्दर्य हमारा वैभव है और सौम्यता हमारी ताकत। संसार का सारा सुख मनुष्य के स्वस्थ शरीर में समाया है। स्वस्थ जीवन के मालिक बनने के लिए कल से ही सुबह जल्दी उठिए, योगासन, प्राणायाम और ध्यान कीजिए, संतुलित और पौष्टिक आहार लीजिए, स्वयं को प्रसन्न और तनावमुक्त रखिए, हम अनायास स्वास्थ्य और प्रभावी व्यक्तित्वके मालिक बन जाएँगे। याद रखिए - इंसौन चेहरे से नहीं, चरित्र से महान बनता है। यह बातें उन्होंने रविवार को जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के तत्वावधान में एरोड्राम रोड स्थित महावीर बाग में सोशल मीडिया एवं टीवी चैनल पर देशभर के श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। संतप्रवर ने कहा कि पहनावा हमारे सभ्य व्यक्तित्व की पहचान है। पहनावे को देखकर ही लोग कहते हैं- फस्र्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन। पहनावा ऐसा हो जो हमारी पर्सनलिटी को और निखारे। जीवन में जितना महत्व अपने वेष को दें उतना ही अपनी भाषा को भी दें। व्यक्ति की भाषा ही उसके जीवन को परिभाषित करती है। जिन्हें बोलना आता है उनकी मिर्ची भी बिक जाती है, बोली में मिठास और अदब न हो तो मिठाई भी पड़ी रह जाती है। संतप्रवर ने कहा कि स्वयं को सदा मुस्कुराते हुए और सकारात्मक रखिए। मुस्कान से जहां आपका दूसरे पर सीधा पॉजिटिव असर पड़ेगा, वहीं सकारात्मक व्यवहार से आप सीधा दूसरे के दिल में उतर जाएंगे। किसी का सुन्दर चेहरा केवल दो दिन याद रहता है, पर आपके द्वारा किया गया मधुर व्यवहार आपको चिर स्थायी बना देता है। उन्होंने कहा कि जीवन की गाड़ी में विनम्रता का ग्रीस लगाइये। हर सुबह घर के बड़े-बुजुर्गों के चरण-स्पर्श का सौभाग्य प्राप्त कीजिए और सबके साथ प्रेम, सम्मान और विनम्रता से पेश आइये, आपको उनके आशीष, आत्मीयभाव और सहयोग तीनों प्राप्त होंगे। राष्ट्र-संत ललितप्रभ ने कहा कि अनुभवों को अपने जीवन का अध्यापक बनाइए। गलती हो जाने पर महज सॉरी कहकर उसे नजर अंदाज मत कीजिए। गलती को महसूस कीजिए और उससे सीख लेते हुए बेहतर परिणाम के लिए फिर से तत्पर हो जाइये। अपने समान दूसरों से अपेक्षा मत रखिए। दूसरों से उतनी ही अपेक्षाएँ रखिए जितनी उनमें काबिलियत है, अन्यथा आपको उनसे उम्रभर आक्रोश और असंतोष का सामना करना पड़ेगा। मित्रता जीवन में माधुर्य घोलती है। हम नए मित्र अवश्य बनाएं, पर पुराने मित्रों को न भूलें। नए मित्र अगर चांदी हैं तो पुराने मित्र सोना हैं। संतप्रवर ने कहा कि हमें हमेशा उजालों का राहगीर बनना चाहिए। माता-पिता के नाम को वही व्यक्ति रोशन कर सकता है, जो स्वयं रोशनी में जीता है। करोड़पति और रोडपति में केवल ‘क’ का ही फर्क है। जो अच्छा कर्म करे वह करोड़पति और जो गलत कर्म करे वही रोडपति। हमें हमेशा अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने के लिए मधुर वचनों प्रयोग करना चाहिए। मधुर वचन प्रेम का पुल बनाते हैं, वहीं कड़वे वचन द्वेष की दीवारें खड़ी करते हैं। उन्होंने कहा कि मित्रों से प्रेम करने का मतलब यह नहीं है कि आप अपने भाइयों की उपेक्षा करें। माना मित्र हीरे की तरह हैं और भाई सोने की तरह। हीरे की कमी है कि वह एक बार टूट गया तो फिर नहीं जुड़ेगा, पर सोना टूट गया तो भी उसे फिर से साँधा-जोड़ा जा सकता है। असफल होना गुनाह नहीं है। अपनी हीनता और हताशा को घर के अटाले की तरह बाहर निकाल फेंकिए। पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ फिर से लग जाइये, एक-न-एक दिन आप अपने इन्हीं कदमों से एवरेस्ट तक को भी फतह कर लेंगे। हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/राजूू-hindusthansamachar.in

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